पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४५१

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पिता उनी .. .. . चित्त बिताउनी --संत्रा धी० [हिं० चेतावनी] दे० 'चेताबनी' । उ०- चितिव्यवहार- पुं० [सं०] गणित की वह क्रिया जिसके द्वारा 1. -चलन न देतो देव चंचल अचल करि, चाबुक चिताउनीन किसी दीवार या मकान में लगनेवाली ईटों और पटियों की 'मारि मुंह मोरतो!-पोद्दार अमि० ०, पृ० १६५ । संख्या और नाप आदि का निश्चय होता है। चिताना-क्रि० स० [हिं० चेताना] १.सचेत करना । सावधान विशेप --लीलावती के अनुसार दीवार का क्षेत्रफल निकालकर करना । होशियार करना । खबरदार करना । किसी प्राव उसमें इंटों के क्षेत्रफल का भाग देने से जो फल होगा वही - श्यक विषय की ओर ध्यान दिलाना। ईंटों की संख्या होगी। इसी प्रकार की और और क्रियाएँ . संयो॰ क्रि०-देना। . . स्तर आदि निकालने के लिये हैं। .....३. प्रात्मवोध करना । ज्ञानोपदेश करना। ४. (पाग) जगाना। चितु -संज्ञा पुं० [सं० चित. हिं० चित्त ] दे० 'चित्त' । उ- . मुलगाना । जलाना ।-(साधु)। फिरि फिरि चितु उत ही रहतु, टुटी लाज की लाव :-- विहारी र०, दो० १०॥ चिताप्रताप--संज्ञा पुं० [सं०] जीते ही चिता पर जला देने का दंड। चितेरा-संज्ञा पुं० [सं० चित्रकार वा हिं० चित (=सं० चित्र)+एरा विशेप-जो स्त्री पुरुष का खून कर देती थी उसे चंद्रगुप्त के . (प्रत्य०)। [ली. चितेरिन ] चित्रकार ।, चित्र बनानेवाला । समय जीते जी जला दिया जाता था।-(को०)। तसवीर खींचनेवाला । मुसौवर । कमगर । उ०-चकित - चितापिठ-संज्ञा पुं० [सं० चितापिराड ] श्मशान में शवदाह के भई देखे ढिग ठाढी। मनो चितेरे लिखि लिखि काढ़ी। पूर्व किया जानेवाला पिंडदान । -सूर (शब्द)। - चिताभूमि-संश्वा सी० [सं०] श्मशान। . चितेरिन-- संज्ञा स्त्री० [हिं० चितेरा] १. चित्र बनानेवाली स्त्री। - चितार-वि० [सं० चित्रल] रंग बिरंगा । उ-है यहहीरन सों२ . चित्रकार की स्त्री। जड़ी रंगन ताप करी कछु चित्र चितार सी। देखो जू लालन चितेरो-संवा बी० [हिं] दे० 'चितेरिन। - कंसी बनी है नई यह सुंदर कंचन पारसी।--भारतेंदु ग्र०, चितेला-संशा पुं० [हिं० चितेरा] दे० 'चितेरा' . भा० २, पृ० १४७ । चितौन-संश खी० [हिं० चितवन दे० 'चितवन'। : पितारनाल-क्रि० स० [हिं० चित+धार (प्रत्य०) से नाम०] चितौना-वि० स० [हिं० चितवना दे० 'चितवना'। स्मरण करना। याद में लाना । उ०-औरंग सा पातसाह । चितोनि@-मंशा श्री० [हिं० चितवन] दे० 'चितवन' । उ०-तिरछी पालम फूचित्तारै । अकबर के पास की चितानां विचारे।- चितीनि मैन बरछी सी कोन ।-मति० ग्र०, पृ० ३४५ ॥ .. रा० ३०, पृ० १०१। चितौनी-संज्ञा स्त्री० [हिं० चितावनी] दे० 'चितावनी'। . चितारी --संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'चितेरा। चित्कार-संझा पुं० [सं० चीत्कार] दे॰ 'चीत्कार'। ... ... चिताराहिण-मंशा पुं० [सं०] विधवा का सती होने के लिये चिता चित्त मंधा पुं० [सं०] १. अंतःकरण का एक भेद । अंतःकरण की पर जाना। एक बृत्ति । चितावनी-मंशा ही० [हिं० चिताना चिताने की क्रिया। सतर्क विशेप- वेदांतसार के अनुमार अंतःकरण की चार वृत्तियां हैं- .. या सावधान करने की क्रिया । वह सूचना जो किसी को मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। संकल्प विकल्पात्मक वृत्ति को किसी प्रावश्यक विषय की ओर ध्यान देने के लिये दी जाय । मन, निश्चयात्मक वृत्ति को बुद्धि और इन्हीं दोनों के अंतर्गत सावधान रहने की पूर्वसूचना । चेतावनी। अनुसंधानात्मक वृत्ति को चित्त और अभिमानास्मक वृत्ति को अहंकार कहते हैं । पंचदशी में इंद्रियों के नियंता मन ही को चितासाधन-संहा पुं० [सं०] तंत्रसार के अनुसार निता या श्मशान अंतःकरण माना है। प्रांतरिक व्यापार में मन स्वतंत्र है, पर कळपर बैठकर इप्टमंत्र का अनुष्ठान जो चतुर्दशी या अष्टमी वाह्य व्यापार में इंद्रियाँ परतंत्र हैं। पंचभूतों की गुणसमष्टि को डेढ़ पहर रात गए किया जाता है। से अंतःकरण उत्पन्न होता है जिसकी दो वृतियां हैं मन और - मिति संहा स्त्री० [सं०] १. चिता। २. समूह । ढेर । ३. चुनने या बुद्धि । मन संशयात्मक और बुद्धि निश्चयात्मक है। वेदांत इकट्ठा करने की क्रिया। चुनाई। ४. शतपथ ब्राह्मण के में प्राण को मन का कारण कहा है । मृत्यु होने पर मन इसी अनुसार अग्नि का एक संस्कार। ५. यज्ञ में इंटों का एक प्राण में लय हो जाता है। इसपर शंकराचार्य कहते हैं कि संस्कार । इप्टक संस्कार । ६. दीवार में ईटों की चुनाई। प्राण में मन की वृत्ति लय ही जाती है, उसका स्वल्प नहीं। ईटों की जोड़ाई। .७. चैतन्य । ८. दुर्गा। ६. दे० 'चित्ती'। क्षणिकवादी बौद्ध चित्त ही को यात्मा मानते हैं। वे कहते हैं कि जिस प्रकार अग्नि अपने को प्रकाशित करके दूसरी वस्तु का-संश बी० [सं०] १. करधनी । मेखला। २.० "चिति' । को भी प्रकाशित करती है, उसी प्रकार चित्त भी करता है। तया-वि० [हिं० चित्ती+इया (प्रत्य॰)] जिसपर दाग या बौद्ध लोग चित्त के चार भेद करते हैं-कामावर रूपावचर, - दित्ती पड़ी हो दागवाला । अल्पावर और लोकोत्तर । चार्वाक के मत से मनही पात्मा गृह-संघा पुं० [देश॰] खजूर की चीनी की जूसी से जमाया है। योग के प्राचार्य पतंजलि चित्त को स्वप्रकाश नहीं.स्वीकार मा गुह। .. करते। वे चित्त को दृश्य मोर.जढ़ पदार्थ मानकर सका एक मि०प्र०-देना। - १०. समझा बोध (को०)।