पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५००

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चेलिका १५७६ चेलिका-संशा सी० [सं०] १ चिउली नाम का रेशमी कपड़ा । २. चोली । अंगिया (को०)। चेलिकाई-संज्ञा श्रो० दे० [हिं० ] दे० 'चेलकाई' या 'चेलहाई। उ.--रैनि दिवस मैं तहवाँ नारि पुरुप समताई हो । ना मैं बालक ना मैं बूढ़ो ना मोरे चेलिकाई हो !--कवीर (शब्द०)। चोलिन, गेली-संज्ञा सी० [हिं० 'वेला फा सी० रूप] शिष्ण । गेलुक-संक्षा पुं० [सं०] एक प्रकार के बौद्ध भिक्षु । चोल्हवा---संशश की. [सं० चिल (-मछली)] एक तरह की छोटी मछली जो चमकीली और पनली होती है। चेल्हा - संज्ञा स्त्री० [हिं० विल्हवा] दे॰ 'चेल्हवा' । गेवारी--- संसा स्त्री (देश.] एक प्रकार का बांस जो दक्षिण और पश्चिम भारत में होता है। विशेष-इसको घटाइयो और टोकरियां बनाई जाती हैं और इसकी पत्तियां चारे के काम में आती हैं। चेवी-संक्षा श्री० [सं०] एक रागिनी का नाम । गेष्ट -संज्ञा पुं० [सं०] १. अंगों की गति । भावभंगी। २. क्रिया (को०] । चेष्टक--संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो चेष्टा करे । चेष्टा करनेवाला। २. एक प्रकार का रतिबंध। चोष्टन-संज्ञा पुं० [सं०] चेष्टा करना । चेष्टा का भाव या स्थिति [को०] 1 चेष्टा-संक्षा सी० [सं०] १. शरीर के अंगों की वह गति या अवस्था जिससे मन का भाव या विचार प्रकट हो । वह कायिक व्यापार जो आंतरिक विचार या भाव का द्योतक हो । २. नायिका या नायक का वह प्रयत्न या उपाय जो नायक नायिका के प्रति प्रेम प्रकट करने के लिये हो । ३. उद्योग । प्रयत्न । कोशिश। ४. कार्य । काम । ५. श्रम । परिश्रम । ६ इच्छा । कामना । ख्वाहिश । ७. मुहै की वह प्राकृति जिससे मानसिक स्थिति प्रकट होती है (को०)। चोष्टानाश-संज्ञा पुं० [सं०] सष्टि का अंत । प्रलय । चोण्टानिरूपण-संशा पुं० [स०] किसी व्यक्ति की चेष्टा को देखना .या लक्षित करना [यो । चेष्टावल-संहा पुं० [सं०] फलित ज्योतिष में ग्रहों का विशेष गति या स्थिति के अनुसार अधिक बलवान् हो जाना । जैसे, उत्तरा- यण में सूर्य या वक्रगामी मंगल अथवा चंद्रमा के साथ संयुक्त .. कोई ग्रह । इससे ग्रह का शुभ या अशुभ फल बढ़ जाता है। चेष्टित' वि० [सं०1 चेष्टायुक्त । सचेष्ट । उ०-आत्मरक्षा के लिये चेष्टित नहीं दिखलाते' -प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ०२१२। चेष्टित–संगा पुं० १. कार्य । व्यवहार । २. गतिविधि (को०)। चेष्टिता-वि० सी० [सं.] गतिवाली। स्थितियुक्त । शियावाली। उ०--जनसिंधु तरंगवेष्टिता। नगरी थी अब द्वीपचेष्टिता। -साकेत, पृ०.३४२ ॥ पैस--संज्ञा पुं० [अ०] १. एकार का लोहे का चौकठा, जिसके , बीच में कंपोज किए हुए टाइप रखकर प्रेस पर छापने के लिये फेरो जाते हैं। जब टाइप इसमें रखकर कस दिए जाते हैं, तब फिर वे कहीं इधर उधर खिसक नहीं सकते । २. शतरंज का । खेल। यो०-स बोर्ड =शतरंज की बिसात। .. चेस्टर---संश म्बी० [अं०] बड़ा और लंवा कोट । उ०-चेस्टर में.. सदी से सिकुड़ता हुआ |---भस्मावृत०, पृ० १७ । चेहरई-वि० [हिं० विहरा हलका गुलावी (रंग)। चेहरई:-मंशा सी० १. चित्रकला में मूर्ति की बनावट । २.। चेहरे मैं रंग भरना। ३. बह छड़ी जिसपर चेहरा बना हो। चेहरा संज्ञा पुं० [फा० बेहह.] १ शरीर का वह ऊपरी गोल और अगशा भाग जिसमें मुह, आँख, माथा, नाक प्राधि सम्मिलित है । 'मुखड़ा । वदन । यो०- वेहरा मोहरा सूरत शकल । प्राकृति। चेहराशाही , वह रुपया जिसपर किसी बादशाह का चेहरा बना हो। हराकुशा-चित्रकार । चेहरानवीश - हलिया लिखनेवाला ।. चोहराचंदी हुलिया। . मुहा. चेहरा उतरना-लज्जा, शोक, चिंता या रोग आदि के कारण चेहरे का तेज जाता रहना । चेहरा जर्द होना= चेहरा सूखना। चेहरे का रंग उतर जाना । उ०--क्या - बताऊँ हाथों के तोते उड़ गए। अरे अब क्या होगा सिपहरमाग का चेहरा जर्द हो गया ।—फिसाना० भा०३, पृ० २६१ । चेहरा तमतमाना-गरमी या क्रोध प्रादि के कारण चहरे का लाल हो जाना । चेहरा बिगड़ना=(१) मार खाने के कारण चेहरे की रंगत फीकी पड़ जाना । । (२) निस्तेज या विवर्ण हो जाना । चेहरा बिगाड़ना=-. इतना मारना कि सूरत न पहचानी जाय । बहुत मारना । चेहरा भांपना- किसी के मन की बात चेहरे से जान लेना। चेहरा होना-फौज में नाम लिखा जाना। चेहरे पर हवाइयां उड़ना घबराहट से चेहरे का रंग उतर जाना। , २. किसी चीज का अगला भाग 1 सामने.का रुख । प्रागा। . ३. कागज, मिट्टी या धातु भादि का बना हुआ 'किसी देवता, दानव या पशु प्रादि की प्राकृति का वह सांचा जो लीला या स्वांग आदि में स्वरूप बनने के लिये चेहरे के ऊपर पहना या बांधा जाता है । प्रायः बालक भी मनोविनोद और . खेल के लिये ऐसा चेहरा लगाया करते हैं। क्रि० प्र०-उतारना ।-बाँधना ।-लगाना। मुहा --चेहरा उठाना=नियमपूर्वक पूजन आदि के उपरांत किसी देवी या देवता फा. चेहरा लगाना । विशेष---हिंदुओं का नियम है कि जिस दिन नसिंह, हनुमान या काली आदि देवी देवताओं का चेहरा उठाना (लगाना) होता। है, उस दिन वे दिन भर उस देवी या देवता के नाम से व्रत : या उपवास करते हैं। और तब संध्या समय 'विधिपूर्वक उस देवी या देवता का पूजन करने के उपरांत चेहरा उठाते हैं। .. चेहल वि० [फा०] चालीस [को०। चहल-संधा श्री[हिं चहल] दे० 'चहल'।