पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४९९

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चेलिका १५७६ विशेष--यह ऊंचाई में ८० या १०० फुट तक होता है और

समस्त भारत में पाया जाता है।

चेय-वि० [सं०] जो चयन करने योग्य हो। जो संग्रह करने योग्य हो । चयनीय 1 . चेय-- संज्ञा पुं०, स्त्री० [सं०] वह अग्नि जिसका विधानपूर्वक संस्कार

. हुमा हो।

चेयर-संक्ष सी० [अं॰] दे० 'चेपर'। चेयरमैन-संचा पुं० अ०] दे० 'चोयरमैन । चे@--संज्ञा पुं॰ [सं० चेड या पेड] दास । सेवक । गुलाम । चेरना--संहा पुं० देश०] एक प्रकार की छेनी जिससे नकाणी करने- वाले सीधी लकीर बनाते हैं । राहु-संज्ञा पुं० [सं० चेटक, प्रा० चेड़, चेड़ा] [स्रो वरी] १. नौकर । दास । सेवक । गुलाम । ७०-करम बचन मन रासर चेरा । राम करहु तेहिके उर डेरा ।-मानस, ...: "२।११। २. चला। शिण्य । शागिर्द । विद्याथीं। चेरा--संवा पु० [देश॰] मोटे ऊन का बना हुआ । गलीचा । चेराईल-सझा मी० [हिं० घेरा+ई ] दासत्व । सेवा । नौकरी। ".... उ०-ऐसे करि मौकों तुम पायो मनो इनकी मैं करों चेराई। याम के दिन विसराये जब वधि तुम कजल लाइ। सूर

(शब्द०)।. .

रायता-संझ पुं० [हिं० चिरायता] दे० 'चिरायता' । चेरि, री@-संवा स्त्री० [सं०वेटि या वैडि अथवा 'बेटी, बडा " : 'त' का हौ रूप। नेरिका-संवा को [सं०] १. ग्राम । गांव । २. तंतुवाय या बुनकरों की बस्ती या मुहल्ला [को॰] । जोरिया--संज्ञा स्त्री० [सं०पेटिका, क्षेडिका, प्रा०डिया] दासी। .:. जैसे- रानी की बात, चेरिया सुभाव नहीं जाता। चेरु-वि० सं० जिसे संग्रह करने का अभ्यास हो । संग्रह करनेवाला। चरुमा-संज्ञा पुं० देश एक खाद्य पदार्थ जो सतुपा सानकर पिठौरा की तरहबनाकर अदहन में पकाने से तैयार होता है। ' पश-संज्ञा स्त्री दिश०] घडे के प्रकार का, पर उस से कुछ बड़ा एक प्रकार का मिट्टी का बरतन । रू-संवा श्री० [सं० सेरु (जकड़ने वाले) अथवा देश०] एक ....... जंगली जाति जिसके रीति रिवाज क्षत्रियों से प्रायः मिलते - जुलते हैं। विशेष-पांच छह सौ वर्ष पहले भारत के अनेक स्थानों में इस जाति का बहुत जोर था, और अनेक प्रदेशों में इसका राज्य - था। कहते हैं, यह नाग जाति के अंतर्गत है। बिहार के अनेक .. स्यानों में इस जाति के लोगों की बनवाई हई बहुत सी पुरानी

"::. इमारतें हैं। आजकल इस जाति के लोग मिरजापुर जिले

तथा दक्षिण भारत में पाए जाते हैं । चल -संज्ञा पुं० [सं०] वस्त्र । कपड़ा। नही जो गोकर्ण के चेल:--- अधम । निकृष्ट । विशेष इसका प्रयोग समस्त पद के अंत में होता है । जैसे,- भार्याचल-अघम या निकृष्ट पत्नी। गेलक:--संज्ञा पु० [सं०] वैदिक काल के एक मुनि का नाम । चलक--संज्ञा पुं० [हिं० गढ़ा या हि वेला] १. बालक । कुमार। शिशु । उ०--गोरि मद्धि इक चेलक वातं । देव सरूप कोटि रवि भासं-पृ० रा०, २४ । ३२१ । २. चेला । शिष्य । चेलकाई-संज्ञा सी० [हिं० घेला] चेलहाई। चेलों का समूह । शिष्यवर्ग। चेलकी--संज्ञा स्त्री० [हिं०घेलक] दे० 'चेटिका' उ०--हास्वारय करे लकी । भोज घणा देसी तेइवहोड़ा-वी० रासो, पृ० २४ । चेलगंगा---संज्ञा स्त्री० [सं०वेलगडा] एक प्राचीन नदी का नाम जो किसी समय गोकर्ण क्षेत्र (वर्तमान मालाबार) मैं बहती थी, और जिसका उल्लेख महाभारत में पाया है। चेलप्रक्षालक'--वि० [सं०] कपड़ा धोनेवाला [को०] । चेनप्रक्षालकर-संज्ञा पुं॰ धोबी को। चेलवा-संज्ञा स्त्री हि० चेल्हवादे० 'चेल्हवा' । चेलहाई-संज्ञा सी० [हिं० घेला+हाई (प्रत्य॰)] चेलों का समह शिष्यवर्ग। महा.--लहाई करना=भेटे और पूजा आदि संग्रह करने के लिये चेलों में घूमना। चेला--संज्ञा पुं० [संवेटकप्रा०पेडन, चेडा] [पी चोलिन, चोलो] १. वह जिसने दीक्षा ली हो। वह जिसने कोई धार्मिक उप- देश ग्रहण क्यिा हो । शिष्य ।। कि० प्र०-करना ।--बनना ।--बनाना 1-होना। महा-वेला मड़ना चेला बनाना। शिप्य बनाना। विशेप-संन्यासियों में दीक्षा के समय दीक्षित का सिर मड़ा जाता है। इसी से यह मुहावरा बना है। २. वह जिसने शिक्षा ली हो। वह जिसने कोई विपय सीखा हो। शागिर्द । विद्यार्थी । छात्र । विशेष-दीना या शिक्षा देनेवाले को गुरु और दीक्षा या शिक्षा लेनेवाले को उस (गुरु) का चेला कहते हैं। यो लाचाटी-चेलों का वर्ग या समूह । चला-सज्ञा पुं० [देश॰] १. एक प्रकार का साँप जो बंगाल में अधिकता से पाया जाता है। २. एक प्रकार की छोटी मछली। वेल्हा । गेलान' संज्ञा पुं० [सं०] तरबूज की लता। गेलान-संज्ञा पुं० [हि० खेला+पान (प्रत्य॰)]त्रिी०लानी] १. चेलों का समूह । २. चेलों की वस्ती या निवास। चेलाल-संज्ञा पुं० [सं०] तरबूज की लता। चेलाशक-संज्ञा पुं [सं०j कपड़े आदि में लगनेवाला कीड़ा। चेलिक-वि० [सं० 'वेटक, हि० ला] शिव्य । शागिर्द । उ०-ढ़. न बार तरुन नहिं पेलिक वाको तिलक लगाई हो।- घरम०, पृ०५०।

समीप है। लचीरा-वस्त्र से फाड़ा हुमा टुकड़ा। चल

चेलनिगडक, खेलप्रक्षालक घोबी। ,