पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५५७

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छावनी छिकनी . घोड चरणोदक लीनों मागि देउ मनभावन । तीन पेंड़ बसुधा जिंकाना-क्रि० स० [हिं० छींकना का प्रे० रूप] छी ने की क्रिया हो चाहीं परण कुटी को छावन !- सूर (शब्द०)। कराना । छौंक लाना । "कावनी-संज्ञा स्त्री० [हिं० छाना अथवा देशी छायरिणया,छायण] छिगनिया.छिंगनी---संक्षा श्री० [हिं० दे० छिगुनी'। १. छप्पर । छाना। छिंगुलिया, छिंगुलो- मंचा श्री० [हिं०] दे० 'छि गुनी' । क्रि० प्र०-छाना। .. २. डेरा। पड़ाव। छिटुमा, छिंटुबा-संवा पुं० [हिं० छींटना] बीज बोने का एक क्रि० प्र०--डालना ।—पड़ना । ढंग जिसमें बीज को हाथों में लेकर खेत में बिखराते हैं । - ३. सेना के ठहरने का स्थान । फौज की बारिक । छींटा । छावद-संशा पुं० [सं० शावक] मछलियों के छोटे छोटे बच्चे जो छिड़ाना---क्रि० स० [हिं० छीनना ] जबरदस्ती ले लेना। झुड बांधकर एक साथ तैरते हैं। छीनना । उ०—(क) श्याम सखन सों कहेउ टेर दै घेरौ छाबरा -मंज्ञा पुं० [सं० शावक] [श्री. छावरी] छौना । सब अब जाय । बहुत ढीठ यह भई ग्वालिनी मटकी लेहु जानवर का बच्चा । उ० भूषन भनत कीजै उत्तरी भुवाल छिड़ाय ।- सूर (शब्द॰) । (ख) गोरस लेहु री कोउ प्राय । ब्स पूरब के लीजिए रसाल गज छावदे ।-भूषन (शब्द०)। "डर नि तुम्हरे जाति नाही लेत दहिउ छिड़ाय 1--सूर छावला-वि० [प्रा० छविल्ल, छइल्ल हिं० छला] सुरूप । सुडौल । (शब्द॰) । रूपवान । उ०-देह इसकी गोरी-मानो छोटे छावले की छिः, छि---अग० [ अनु०] १. घृणासूचक शब्द । घिन जताने का छोरी हो 1--श्याम०, पृ० ३१ । प्राब्द । जैसे, छि, छि ! देखी तो तुम्हारे हाथ मे कितनी छावा-संवा पुं० [सं० शावक] १. बच्चा 1 शिशु । २. पुत्र । बेटा-- मैल लगी है । २. तिरस्कार या अरुचिसूचक शब्द । जैसे,-- - (दि०)। ३.१० से २० वर्ष तक का हाथी । जवान हाथी । छि! तुम्हे मांगते लज्जा नहीं पाती। छास-वि० [सं० पटषष्टि, प्रा. छछठि] जो गिनती में साठी छिउ कहा--वि० [हिं० छिउका] [स्त्री० छिउकही लकडी, पेड़, और छह हो। पेड़ की डाल ग्रादि जिसमें छिउके लगे हों या जिसे छिकों ने छासठर-संघा पुं० साठ और छह की संख्या तया उसका सूचक प्रक जो इस प्रकार लिखा जाता है--६६ । खा लिया हो। राह -संचारली० [हिं०] दे० 'छाछ' । छिउका--संह पुं० [हिं० चिउटा] [ी छिपी, वि० छिउ कहा ] छाह-संक्षा नी० [हिं०] ३. छांह' । 30-माह छाह ककरो एक प्रकार का चिटा जो साधारण चिउटे से छोटा और नहि भावय ग्रीसम प्रान पियारा ।--विद्यापति, पृ० १०० । पतला तथा भूरे रंग का होता है और बड़े जोर से काटता छाहर'--संका पुं० [सं० छाया] छाया । उ०--चाहने छाहर पावहि है। यह प्रायः पड़ों पर होता है। वाहर गालिम गराएरण पारीमा --फीति०, पृ. ४६। छिउ की--संक्षा स्त्री० [हिं० चिउँटी] १. एक प्रकार की छोटी छाहर---वि० [सं० उत्साह, प्रा० उच्छाह+ड. (प्रत्य०)] मत्त । चींटी जो बड़े जोर से काटती है । २. एक छोटा उड़नेवाला मतवाला। उ--हय हथ्थिन घन हंकि बीर छूटयो छकि कीड़ा जिसके काटने से बडी जलन होती है। ३. लोहे का छाहर । मरदन सों मिलि मरद मरद वुल्ल्यो मुख नाह।- एक औजार जो छ वाली से छोटा होता है और धंधार में पृ० रा०,७। ११५ लगाया जाता है । यह लकडी उठाने के काम में प्राता है। ___ छाहांगीर -संज्ञा पुं० [हिं० छाह- फा० गीर (प्रत्य॰)] छत्र । ४. रस्सी की वह मुद्धी जो बोरों में इसलिये लगी रहती है कि छाता । उ० --मुकुट को छाहाँगीर कियं ब्रज निधि । ठ.ढ़ो, घोड़े की पीठ पर लादने पर उनमें एक लकड़ी फैसा दी जाय। मूख की छटा की छवि छ।कनि छकै रह्यो ।-- ज० ग्रं, छिउल-संघा पुं० [देश॰] पलाश । छीउल । ढाक। पृ०१४७। छि उला--संज्ञा पुं० [सं० क्षु प, हिं० छुप+ला (प्रत्य॰)] छोटा पेड़ । छिछ, छिछि --संवा पी० [अनु०] छोटा । धार । फौवारा। पौधा । 3.-(क) स्रोनित छिछ उछरि पाकासहि गज ब्राजिनि छिकनी-मंद्या खी० [सं० छिरफनी] एक प्रकार की बहुत छोटी सिर लागि ।-सूर०, ९१५८ । (ख) शोन छिछि छुटत घास या बूटी का फूल जिसे सू'घने से छौंक पाती है। बदन भीम भई तेहि काल । मानो कृत्या कुटिलयुत पावन विशेष--यह जमीन ही पर फैलती है, ऊपर नहीं बढ़ती। इसमें ज्वाल कगल ।-केशव (शब्द०)। (ग) अति उच्छलि छिछि छोटी छटी घुड़ियों की तरह के मग के दाने के बराबर गोल . त्रिकूट छायो। पुर रावण के जल जोर भयो ।-केशव फूल लगते हैं जिन्हें स घने से बहुत छौंक प्राती हैं यह घास (शब्द०)। प्रायः ऐसे स्थानों पर अधिक होती है जहाँ कुछ दिनों तक ..छिकना-क्रि०अ० [हिं० ,कना] छेका जाना। रोका जाना। पानी जमा रहकर सूख गया हो: जैसे छिछ ले ताल प्रादि । उ०-जो छि के जी की कचाई से नहीं । छेकने से छोंक के वे यह प्रौपध के काम में आती है और वैद्यक में गरम, कब छिके ।-चुभते०, पृ० ४१ रुचिकारक अग्नि दीपक तथा श्वेत कुष्ठ प्रादि त्वचा के रोगों