पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५५६

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छायावेष्टित छावना के बीच रीतिकालीन काव्यप्रवृत्तियों के विरोध में इस नवीन छालटो-संज्ञा स्त्री० [हिं० छाल-+-टी ] १. छाल का बना हुमा काव्यधारा का जन्म हुआ। प्राचार्य रामचंद्र शुक्ल के यस्त्र । सन या पाट का बना हुमा कपड़ा। मतानुसार पुराने ईसाई संतों के छायामास (फैटज्मैंटा) तया विशेष-यह पहले प्रलसी की छाल का बनता था और इसी यूरोपी काव्यक्षेत्र में प्रवर्तित आध्यात्मिक प्रतीकवाद को फारसी में कहाँ पाहते थे । २. सन या पाट का बना हुमा (सिबालिज्म) के अनुकरण पर रची जाने के कारण बंगाल एक प्रकार का चिकना पौर फलदार कपड़ा जो देखने में में ऐसी कविताएँ 'छायावाद' कही जाने लगीं। इस धारा का रेशम की तरह जान पड़ता है। हिंदी काव्य अंगरेजी के रोमांटिक कवियों तथा बंगला के रवींद्र छालना-क्रि० स० [सं० चालन] १. छलनी में रख कर (पाटा काव्य से प्रभावित या । अतः हिंदी में भी इस नई काव्यधारा आदि) साफ करना। चालना । छानना। २. छेद करना। के लिये 'छायावाद' नाम प्रचलित हो गया। इस धारा के प्रमुख छलनी की तरह छिद्रमय करना । झंझरा करना। कवि प्रसाद, निराला और पंत आदि माने जाते हैं। बाद में छालना-कि० स० [सं० क्षालन] घोना । साफ करना । स्वच्छंदतावाद का नाम भी अनेक हिंदी मालोचकों ने दिया। पखारना। छायावेष्टित-वि० [सं० छाया+प्रावेष्टित] अस्पष्ट । धुधला। छाला-संक्षा पुं० [सं० छाल] १. छाल या चमड़ा। वर्म । जिल्द । उ०-कौन उसमें ऐसे छायावेष्टित रहा स्थल हैं।- नदी०, जैसे, मृगछाला । २०-(क) जरहि मिरिग बनखंड तेहि पृ०८। छायावान-वि० सं० छायावत् ] [ वि० सी० छायावती] १. ज्वाला । पाते जरहि वंठ तेहि छाला।-जायसी पं०. पृ० छायायुक्त । सायादार । छांहवाला । २. शांतियुक्त । ५६ । (ख) सेस नाग जाके फंठ माला । तनु भभूति हस्ती कर छायाविप्रतिपत्ति-संक्षा ली० [सं०] आयुर्वेद का एक प्रकरण छाला ---जायसी अं०, पृ. ६०1 २. किसो स्थान पर जिसके अनुसार रोगी की कांति, प्राभा, चेष्टा आदि में उलट- जलने, रगड़ खाने या और किसी कारण से उत्पन्न चमड़े फैर या परिवर्तन देखकर यह निश्चय किया जाता है कि अब की ऊपरी झिल्ली का फूलकर उभरा हमा तल जिसके भीतर यह आसन्नभरण है या नहीं अच्छा होगा। एक प्रकार का चेप या पानी भरा रहता है। फफोला। छायासुत-संज्ञा पुं० [सं०] छाया के पुत्र शनैश्चर । प्रावला । झलका । 10-पायन में छाले परे,बाँधिने को नाले परे, छार-संज्ञा पुं० [सं० क्षार] कुछ जली हुई वनस्पतियों या रासायनिक तऊ, लाल, लाले परे रावरे दरस को।-हरिश्चन्द्र (शब्द०)। मिया से घुली धातुओं को राख का नमक 1 क्षार । २. क्रि०प्र०-पड़ना । खारी नमक। ३. खारी पदार्थ । ४. भस्म । राख । खाक । ३. वह उभरा हुमा दाग जो लोहे या शीशे पादि में पड़ उ० - (क) जो निमान तन होइहि छारा। माटी पोखिमरइ जाता है। को भारा-जायसी (शब्द०)। (ख) तुरतहि काम भयो छालित--वि० [सं०क्षालित] घोया हुमा । प्रक्षालित । जरि छारा ।-तुलसी (शब्द०)। छालियो-संज्ञा पुं० [सं० स्याली हि. पाली] कासे का एक वरतन यो०-छार खार करना-भस्म करना । नष्ट भ्रष्ट करना । सत्यानाश करना। उ० --उपजा ईश्वर कोप ते पाया भारत जिसमे घी तेल आदि भरकर छायादान दिया जाता है । छायो- बीच । छार खार सब हिंद करू' मैं तो उत्तम नहिं नीच।-- पात्र । छायादान की कटोरी। हरिश्चंद्र (शब्द॰) । ५. धूल । गर्द । रेणु । उ०-(क) गति छालिया--संझा पुं० [हिं०] १० 'छालो' । तुलसीस की लखै न कोऊ जो करति पर्व ते छार, छार पर्व छाली' - संज्ञा स्त्री० [हिं० छाता] १. काटी हुई सुपारी का चिपटा सो उपलक ही। -तुलसी (शब्द०)। (ख) मूढ़ छार डारे टुकड़ा । सुपारी का फल । २. सुपारी । पूगीफल । गजराजक पुकार कर, पुडरीक वूडची री, कपूर खायो छालोला---संज्ञा पुं० [सं० छागल, प्रा० छाप्रलो, हि० छेलो] [१] कदली |--केशव (शब्द०)। छाली] बकरा। उ०-छाखी हदा कानडा, एवाला छारकर्दम-संथा पुं० [सं० क्षारकर्दम] एक नरक। दे० 'क्षारकर्दम'। माधीन |-बाँकी पं०, भा०२, पृ० ५५ । छारछवीला--मंटा पुं० [हिं०] दे० 'छरीला' । छाल--संशा स्त्री० [सं०छल्ल, छाल अथवा सं० शल्क] १. पेड़ों के धड़ र " छाव-संघा स्त्री० [सं०छाया] १. छाया । साया। जैसे,-बैठ जाता हूँ शाखा, टहनी पौर जड़ के ऊपर का प्रावरण जो किसी किसी जैसे-जहाँ छाँव घनी होती है । २. शरण । पनाह । जैसे-- में मोटा और कड़ा होता है और किसी में पतला और मुलायम । अब तो हम तुम्हारी छाव में प्रा गए हैं, जो चाहो सो करो। वृक्ष की त्वचा । बक्कल । जैसे, नीम की छाल । वल्कल । बबूल ३. प्रतिबिंब । अक्स । वि० दे० 'छोह' । की छाल । २. छाल का वस्त्र, ३. त्वचा । चमड़ा। ४. एक छावन-संक्षा पुं० [सं० छादन, प्रा० छायण, छावरण] १. छाजन । प्रकार की मिठाई । उ०-भई मिठाई कही न जाई। मुख छप्पर । उ०-सुन्न गुफा परि छावन छाया -प्राण, खन मेलत जाइ बिलाई। मतलडु, छाल और मरकोरी । पृ०५६ । २. डेरा । प्राधास । निवास । उ०-दोय मास इत माठ पिराक और बुदौरी । -जायसी (शब्द०)। ५. चीनी ' छावन किज्जय ।-५० रासो, पृ० १८१। । जो खूब साफ न की गई हो। छावना -कि० स० [हिं० छाना ] हे 'छाना'। उ०-चरण