पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५६४

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छिलना १६४२ छोटा छिलना कि० म० [हिं० छीलना] १. इस प्रकार कटना जिसमें विशेष-यह स्फोट नाक की झिल्ली में चुनचुनाहट होने से, ऊपरी सतह या प्रावरण निकल जाय । छिलके या चमडे का या प्रांख में तीक्षण प्रकाश पड़ने के कारण तिलमिलाहट कटकर अलग होना । उघड़ना । २. रगड़ या आंघात से ऊपरी होने से होता है । इसमें कभी कमी नाक और मुंह से पानी चमड़े का कुछ भाग कटकर अलग हो जाना । खरोंच जाना। या श्लेष्मा भी निकलता है। हिंदुनों में एक प्राचीन रीति है जैसे,—पैर में जरा सा छिल गया है। ३. गले के भीतर कि जब कोई छींकता है तब कहते हैं 'शतं जीव" या "चिर चुनचुनाहट या खुजली सी होना । जैसे,- सूरन से सारा जीव' । यह प्रथा यूनानियों, रोमनों और यहूदियों में भी थी। गला छिल गया । अँगरेजों में भी जब कोई छींकता है. तब पुरानी परिपाटी के . संयो॰ क्रि०-उठना ।-जाना। लोग कहते हैं कि 'ईश्वर कल्याण करें। हिंदुओं में किसी कार्य छिलर:-वि० [हिं० छिछला या सं० क्षीण] कृश । दुर्वल । उ०- के प्रारंभ में छींक होना अशुभ माना जाता है । छिनु छिनु बाढ़ छवि, कैसे कह कोउ कवि, तन के छिलर क्रि० प्र०-पाना |---होना ।-मारना । -लेना। मानों भए हैं कामरहित ।-नंद ग्रं॰, पृ. ३७७ } मुहा०-छींक होना=बुरा शकुन होना। छिलवा-संशा पुं० [हिं०छलना] वह मनुष्य जो ईख के खेतों में छी कना-कि० अ० [हिं० छींक] नाक और मुह से वेग के. साथ ईख काटकर उसकी पत्तियों को छीलकर दूर करता है। वायु निकालना जिससे शब्द होता है । 30-जसुमति चली छिलवाना--क्रि० स० [हिं० छिलना' का प्रे० रूप] छीलने के रसोई भीतर तबहिं ग्वालि इक छींकी -सूर०, १० । ५४०॥ मुहा०-छींकते नाक काटना-थोड़ी थोड़ी वाप्त पर चिढ़ना लिये प्रेरित करना । छीलने का काम कराना जैसे, पास या दंड देना । अत्याचार करना। छिलवाना। छी'का--संक्षा पुं० [हिं० छोका ] दे॰ 'छीका' । उ०-कस कहति छिलहिंड-संज्ञा पुं० [सं० छिलहिण्ड] छिरहटा । छिरेटा। छिलाई-संथा स्त्री० [हिं० छीलन] १. छीलने का काम । २. लियो छींक ते ग्वाल कंध दै लात ।-सूर०, १० । २६० ! छीट-संवा स्त्री० [सं० क्षिप्त, प्रा०छित्त] १. पानी या और किसी छीलने की मजदूरी । . द्रव पदार्थ की महीन वू'द । जलकण । सीकर । उ०--राधे छिलाना -क्रि० स० [हिं० छिलना] दे० 'छिलवाना' ।। छिरकति छौंट छबीली। कुछ कुकुम कंचुकि बंद टूटे, लटकि छिलाव--संझा पुं० [हिं० छीलना ] छीलने का भाव या क्रिया । रही लट गीली।-सूर (शब्द०)। २. पानी आदि की पड़ी छिलाई। हुई बूद या करण का चिह्न जो किसी वस्तु पर पड़ जाय । छिलावट-संशा स्त्री॰ [हिं०] दे छिलाव । ३. वह कपड़ा जिसपर रंग बिरंग के बैल बूटे रंगों से छापकर . छिलोरी-संवा स्त्री० [हिं० छाला छोटा छाला। प्राबला। बनाए गए हों । उ० - संध्या धनमाना की सुदर ओढ़े रंग कि० प्र०-पड़ना। विरंगी छोट-कामायनी, पृ०३०। छिल्लड़ परंडा ० [हिं० छिलका छिलका । भूसी ।। विशेष प्राचीन काल में कपड़े पर रंग बिरंग के छोटे डालकर छिहत्तर'--वि० [सं० षटसप्तति, प्रा० छसत्तत्ति, पा. छसत्तरि, छौंट बनाते थे। छहत्तरि] जो गिनती में सत्तर से छह अधिक हो। छह और यौ०--मोमी छौंट - एक प्रकार का छपा हुआ कपड़ा जो स्त्रियों सत्तर । के पहरावे के काम में आता है। छिहत्तर-संक्षा बी०१. छह और सत्तर की संख्या । २, उक्त संख्या छीटना -क्रि० स० [संक्षिप्त, प्रा०छित्त+हिना (प्रत्य॰)] को सूचित करनेवाला अंक जो इस प्रकार लिखा जाता किसी वस्तु के कणों को इधर उधर गिराकर फैलाना। बिखराना । छितराना । छिहरना-क्रि० [हिं० छितरना ] बिखरना। फैलना । संयो.क्रि०--देना । छितराना । वि० दे० 'छहराना'। .. छोटा--संशा पुं० [सं० क्षिप्त, प्रा० छित्त, हि० छींटना ] १. पानी छिहराना-- क्रि० स० [हिं० छहराना] दे० 'छहराना। (या और किसी द्रव पकार्थ) की महीन बूद जो पानी को छिहाई-संका बी० [हिं० छिहाना] १. छिहाने का काम । २. उछालने या जोर से फेंकने से इधर उधर पड़े। जलकण । चिता। सरा । ३. मरघट । सीकर। छिहाना-कि० स० [सं० चयन ] [ संवा छिहानी] किसी वस्तु क्रि० प्र०--उडना । -पड़ना। को तले ऊपर रखकर राशि या ढेर लगाना । गाँजना । ढेर यौ---छींटा गोला-तोप का गोला, जिसके भीतर बहुत सी लगाना। __ छोटी छोटी गोलियां या कील कोटे आदि भरे होते हैं। छिहानी संज्ञा पुं० [हिं० छिहाना] श्मशान । मशान । मरघट । २. महीन महीन बूदों की हलकी बुष्टि । भड़ी। जैसे,-मैंह का .. छिहारना--कि०स० [म क्षरण; क्षार] दे० छहराना'। - एक छोटा प्राया था। ३. किसी द्रव पदार्थ की पड़ी हुई बूद . छोक-संवा सी० [सं० छिक्का नाक और मुह से वेग के साथ का चिह्न । जैसे, इन स्याही के छींटों को धोकर छुड़ा लो।' सहसा निकालनेवाला वायु का झोंका या स्फोट । ४. मंदक या चंडू की एक मात्रा । दम । ५. व्यंगपूर्ण उक्ति ..