पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५६५

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कोटाकसी छौंदा . जो किसी को लक्ष्य करके कही गई हो। हलका आक्षेप । छीछालेदर-संज्ञा स्त्री० [हिं० छी छो] दुर्दशा। दुर्गति । खरायो । छिपा हुआ ताना । - फजीहत। क्रि० प्र०-कसना ।-छोड़ना।—देना । क्रि० प्र०-करना ।- होना। यौ०-छींटाकसी। छोछी- संशा स्त्री० [हिं०] मल । गू। विष्ठा । छिया । उ०-धाएं ६. किसी चीज पर पड़ा हुआ कोई छोटा दाग । जैसे,—इस यच्चों को कमरों और प्रांगों के फर्श पर जहां तहाँ छीछी नग पर कुछ छींटे हैं। करा देती थीं।-जनानी०, पृ० १४७ । . छी'टाकसी-पंथा स्त्री० [हिं० छोटा+कसना] आक्षेप करने की छीज-संज्ञा श्री [हिं० छोजना] ह्रास । घटाव । घाटा । कमी। - क्रिया । छिपा हुपा ताना देने की बान । उ.-रातहि दिवस रहै सब भीजा। लाभ न देखत देखी छोदा-संज्ञा पुं॰ [ सं० छिद्र, हिं० छेद ] छिद्र। छेद । सूराख ।। छोजा ।—जायसी (शब्द०)। - - -७०–कुम तुम्हार जहाँन जहाँ ले काल कुबुद्धिहि कीन्ही छीजन-संशा स्त्री० [हिं० छीजना दे० 'छीज'। - छौंद।-० दरिया पृ० ११८ । छीजना --कि० अ० [सं० क्षयरण या क्षीण क्षीण होना । घटना । कम होना । ह्रास होना । अवनत होना । 30-(क) छीजहि छोदा मंचा स्त्री० [म० शिम्मो, हि छोमी] छीमी । फली। निशिचर दिन घौ राती। निज मुख कहे सुकृत जेहि भांती। छी'-प्र०प० [सं० छि:] घृणापूर्वक शब्द । घिन प्रकट करने का ----तुलसी (शब्द०) (ख) लहर झकोर उड़हि जल भीजा। ' शब्द । अनादर या अरुचिव्यंजक शब्द । जैसे,--छी ! तम्हें तह रूप रंग नहिं छीजा ।-जायसी (शब्द०)। (ग) सखि! जा दिन ते परदेस गए पिय ता दिन ते तन छीजत - ऐसा करते लज्जा नहीं पाती। महा.-छी छी करना=घिनाना । अनादर, अरुचि या घृणा हैं। सुदरीसर्वस्व (शब्द०)। . प्रगट करना । उ०-वेष भये विष भावे न भूपन भोजन की संयो० कि० जाना। ... कछ ही नहि ईछी । मीच के साधन सोंध सुधा, दधि दूध प्रौ। छीट -संशा श्री० [हिं०] दे॰ 'छींट'। माखन आदिहु छो ! छी ।-(शब्द०)। छीटना- क्रि० स० [हिं०] दे० 'छींटना'। ' वह शब्द जो घाट पर कपडा धोते समय छीटा-संज्ञा पुं० [सं० शिश्य, हिंछीका] [श्री. प्रफा० छिटन. धोवियों के मुह से निकलता है। उ० -घाट पर ठाढ़ी बाट १, बाँस की कमचियों या पतली टहनियों को परस्पर जाल पारति बटोहिन की चेटकी सी डीठ मन काको न हरति है। की तरह बुनकर बनाया हुप्रा टोकरा । खाँचा। लटकि लटकि 'छी' करति खुले भुजमूल झुकि झुकि स्वेद ०-छटा गोला-ढोल या पीपे के प्राकार का बना हुमा .. करण फुल से झरति है।-देव (शब्द०)। टोका। छी उला-संज्ञा पुं० [देश॰] पलाश । ढाक । २. चिलमन । छीका संज्ञा पुं० [सं० शिक्य, हिं० सीका] १. गोल पात्र के आकार छोड:--संवा स्त्री० [सं० क्षीण] आदमियों की कमी। भीड़ का का रस्सियों का बुना हुमा जाल जो छत में इसलिये लटकाया अभाव। जाता है कि उसपर रखी हुई खाने पीने की चीजों (जैसे, छीत-संज्ञा स्त्री० [सं० क्षिति] दे० 'छति' । उ०-तव नहि दूध, दही प्रादि ) को कुत्ते, बिल्ली प्रादि न पा सके । सीका छीत न सेस महेसू ।–६० सागर, पृ०६३। सिफहर। अत्र कहि देउ कहत किन यों कह मांगत छीतना-क्रि० स० [सं० छिद+हिं० ना (प्रत्य०)] १. विच्छ, भिड़ दही धरयो जो है छीके। सूर (शब्द०)। प्रादि का डंक मारना । २. मारना। कूटना । - मुहा०-छोक टूटना--अनायास ऐसी घटना होना जिससे किसी छीतस्वामी-मंचा पं० [हिं०] अष्टछाप के एक वैष्णव भक्त । ये को कुछ लाभ हो जाय । जैसे-बिल्ली के भाग से छी का टूटा। वल्लभाचार्य जी के शिष्य थे। इनके कृष्ण संबंधी रचे पद २.जालीदार खिड़की या झरोखा । ३. रस्सियों का जाल जो इनके संप्रदाय के लोग अबतक गाते हैं । ... काम लेते समय बलों के मुह में इसलिये पहनाया जाता है छोता- देश॰] बह के मायके या ससुराल जाने की जिससेवे कुछ खाने के लिये इधर उधर मुह न चला सकें। जाबा । मुसका। साइत। क्रि० प्र०--देना।--लगाना। . छीति --संघा सी० [सं० क्षति] १. हानि । घाटा । २. बुराई। .४. रस्सियों का बना हुमा झलनेवाला पुल । सूला। ५. उल-तेरो तन घन रूप महागुन सुदर श्याम सुनी यह कीति । बस या पतली टहनियों को चुनकर बनाया हुपा टोकरा . सु करि सूर जिहि भांति रहै पति, जनि बल बाँधि बढ़ावह जिसमें बड़े बड़े छेद छूटे रहते है। छिटनी। खचिया । छीति ।-सूर०, १०।२७७५ ॥ छोछड़ा-संवा '० [सं० तुच्छ, प्रा० छुछ ] १. मांस का तुच्छ छीतीछान-वि० [सं० क्षति+छिन्न या छन] छिन्न भिन्न । तितर ... और निकम्मा टुकड़ा। मांस का वेकाम लन्छा । जैस,-बिल्ली वितर । उ०-वह सब सेना असुरों की छीतीछान हो वहीं को छीछड़े ही भाते हैं । २. पशुमों की अंतड़ी का वह भाग . की वही विलाय गई।-लल्लू (शब्द॰) । ... जिसमें मल भरा रहता है । मल की थली। छोटा-वि० [सं० टि] 1. जिसमें बहुत से छेद हों। जिसके तंतु छोला-वि: [हिं॰ [ दे० 'छिछला'। दूर दूर पर हों। जिसकी ननावट पनी न हो । झाझरा । वर