पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५६७

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छोर' १६४५ छुगर उ०--मखमली पेटियों सी लटकी छीमियाँ, छिपाए वीज एक छोटा गड्ढा जो कुएं पर इसलिये बना रहता है कि मोट लड़ी। ग्राम्या, पृ० ३५। २. गाय भैस प्रादि के स्तन के फा पानी उसमें डाला जाय । छिउला । लिलारी। २. छोटा चुचुक जो फली की तरह होते हैं। स्तनों का चूचक । छिछला गड्ढा । तलैया । उ०—(क) कबिरा राम रिझाइ स्तनाग्र । कुचान ।-(प्रशिष्ट)। ले जिह्वा सो करि मित्त । हरि सागर जनि बीसरं छोलर छोर'-संवा पुं० [सं० क्षीर, प्रा० छीर] । उ०--(क) माता अछत देखि अनित्ता-पावीर (शब्द०)। (ख) प्रब न सुहात '.छीर विन सुत मर, अजा कंठ कुच सेई ।-सूर०, १ ।२००। विषय रस छोलर वा समुद्र की ग्रास । -सूर (शब्द०)। (ख) छीर बही भूतल नदी विविध चले पवमान । -प० छीलरी-संशा मी [प्रा० छिल्लरदे० 'छीलर'। उ०-दादू रासो, पृ० १३ । हंस मोती चुण, मानसरोवर जाइ। बगुला छोलरी बापुड़ा, __ छोर-संक्षा [सं० शिरा, प्रा० छिरा, हिं० छोर ] १. कपड़े चुरिण चुणि मछली खाइ ।--दादू०, पृ० ३२३ । आदि का वह किनारा जहाँ लंबाई समाप्त हो। छोर। छीव -संशा पुं० [सं० क्षीब] दे० 'क्षीव' । मुहा०-छोर डालना=धोती श्रादि में किनारे का तागा छीवना -क्रि० स० [सं० स्पर्शन, प्रा० छ वरण, छियण ] दे० निकालकर झालर बनाना । "छूना' । उ0---प्रथिराज दिष्ट पार्वे नहीं चिकट कुभ ज्या २. वह चिह्न जो कपड़ें पर डाला जाय । ३. कपड़े के फटने का जल अभिद । लग्ग न नीर पत्रह कमल । भिदै न मति छोवं उछिद ।—पृ० रा०, २४ 1 ४८४ ।। क्रि० प्र०-पड़ना । छुद्र-वि० [सं० क्षुद्र दे० 'क्षुद्र' । उ०-ये जो छद्र जलाशयों के बचें छीरज --संज्ञा पुं० [सं० क्षीरज दधि । दही। बचाए यत्किचित् शेष जल ।-प्रेमघन॰, भा०२, पृ०६। छीरघि---संघा पु० सं० क्षीरघि] क्षीरसागर । दूध का समुद्र। छुगली -संका गी० [हिं०,गुली] एक प्रकार की अंगूठी जिसमें उ०-- क्षय रही 'मतिराम' कहै छिति छोरनि छोरधि की घुघुरू लगे होते हैं । यह छोटी उंगली में पहनी जाती है । छवि छाजै । --मति० ग्रं॰, पृ०४११ । छुपाना--क्रि० स० [सं० स्पृश, प्रा० छिष, छुत्र ] १. स्पर्श छीरनिधि- संज्ञा पुं० [सं० क्षीरनिधि क्षीरसागर । दूध का करना । छूना । २. चूना पारना । सफेदी करना । समुद्र । उ०—जब वृत्रासुर के भय सों सुर सब भागे, तब छुप्राई--संहा स्त्री० [हिं० छूना छूने, स्पर्श करने का भाव । .छीरनिधि के निकट जाइके यह कहत भए।-पोद्दार छुपाछूत-संजी० [हिं० छूना] १. अछूत को छूने की क्रिया । अभि० ग्रं॰, पृ० ४६२। अस्पृश्य स्पर्श । अशुचि संसर्ग। जैसे,--यहां छुवाछूत मत छोरप -संवा '० [सं० क्षीरप] दुधमुहाँ बालक | दूधपीता बच्चा। करो। २. स्पृश्य अस्पृश्य का विचार । छूत का विचार । __-छोरफेन --संज्ञा पुं० [सं० क्षीरफेन ] दूध की मलाई। उ०- जैसे,--वहां छुमाछूत का बखेड़ा नहीं है। विविध बसन उपधान तुराई। छोरफेन मृदु बिसद सुहाई। छुपाना-नि० स० [हिं० छुलाना ] १. ३० 'छुलाना' । २. दे० मानस, । ६१ 'छुहाना' । छीरसागर-@-संज्ञा पुं॰ [सं० क्षीरसागर] दे० 'क्षीरसागर'। छुई मुई--संज्ञा रसी० [हिं० छूना+मुयना ] एक छोटा केटीला छीरसिंधु-संथा पु० [सं० क्षीर+-सिन्धु ] क्षीरसागर । दूध का पौधा जिसकी पत्तियों बल की सी होती हैं । इसमें यह समुद्र । उ०---क्षीरसिंधु गवने मुनिनाथा । —मानस, १।१२८ । विशेषता है कि जहां पत्तियों को किसी ने छुपा कि वे बंद छीलक -संज्ञा पुं० [हिं० छिला] दे० छिलका'। उ०-दीन हुतो हो जाती हैं और उनके सींके लटक जाते हैं। लज्जालु । बिललात फिर नित इंद्रिन के बस छीलक छोले ।--सुदर. लज्जावंती । लजाधुर । लजारो। वि० दे० 'लज्जावंती'। २. ग्रं॰, भा०१, पृ०५८७ | अत्यंत कमजोर कोई चीज । ३. लजाधुर की तरह स्वभाव- छीलना-कि०म०[हिं० छाल ] १. किसी वस्तु का छिलका या वाला व्यक्ति । नाचुकमिजाज ।। छाल उतारना। लगी हुई छाल या ऊपरी प्रावरण यो काट मुहा०-छुई मुई बनना=संकुचिप होना । नायल होना। मौन फर अलग करना। ऊपरी सतह की मोटाई काटकर अलग हो जाना । उ०--सब बातों में खोज तुम्हारी रट सी लगी करना । जैसे, सेव छीलना, गन्ना छीलना, लकड़ी छीलना, हुई है। कितु स्पर्श से तक फरों बनता छुईमुई है।- पेंसिल छीलना । २. ऊपर लगी हुई या जमी हई वस्तु को कामायनी, पृ० १११। खुरचकर अलग करना। जैसे, चाकू से हरफ छीलना, पास छुगुनी--संघा पुं० [ अनु० धुनछुन ] घु.पुरू। उ०-- काटि करधन छीलना । ३. खुरोचना। खरोंटना। ४. गले के भीतर धुगनू छजत श्यामल बदन सुहाय । मनहु नीलमणि मंदिर चुन चुनाहट या खुजली सी उत्पन्न करना । जैसे,--- सूरन ने बसेउ वासुकी नाय ।- सत० (शब्द०)। गला छील डाला। छग्गर संक्षा पुं० [सं० घ्यदएड ] छाता। छ। उ०-पान छोलर--संज्ञा पुं॰ [प्रा० छिल्लर, हि० छिछला अथवा सं० क्षीण] १. सु पात तुम्है गर चल्लिय । भट्ट फहै कर गर झल्लिय |---- पृ० रा०, ६१ १८१८॥