पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/६४

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खविता ११४० . खर्चा-संज्ञा पुं० [फा० खह.1 दे० 'खुर्व'।. .. २.काली देवी का वह पाय जिसमें वह रुधिर पान करती हैं। खर्ची-संवा बी• [हिं० खर्च वह धन जो वेश्या आदि को कुकर्म ३. भिक्षापात्र । ४ खोपड़ा। ५. गेर। ६. धूर्त । .. कराने के लिये मिले । कसब कराने का पुरस्कार। खपरिया नामक उपधातु । छाता (को०)! . . क्रि० प्र०-फमाना। . खर्परिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] छतरी। छाता [को०] ! महा०-खी पर चलना या जाना-धन के लिये कुकर्म या खपरी, खरोका--संवा खौ० [सं०] खपरिया नाम की एक उपधातु प्रसग कराना। - [को०] . . . खर्ची-वि० दे० 'खर्चीला'। खर्व -वि० [सं०] छोटा। ल । क्षद्र। २०-खर्व निसाचर खर्चीला-वि० [हिं० खर्व+ईला (प्रत्य॰)] जो बहुत अधिक बाँधेठ नागपास सोइ राम ।-पानस, ७ । ५८ । दे० खर्ध। - व्यय करे । खूब खर्च करनेवाला । . खर-संज्ञा पुं० [सं०] नारियन का छिलका [को०] । खर्जल-संश पुं० [हिं खरज] दे० 'खरज', 'पडज' 1 30-तव खम--संया पुं० [सं०] १. सिल्क 1 रेशम । २.सोज । शक्ति । ३. लीनी कर कंजनि मुरली। खर्जादिक जु सप्त सुरजु रली।- कठोरता । पल्पना [को०] । ... नंद ग्रं॰, पृ० ३१७ । खर्राच-वि० [हिं०] दे० 'खरांच' । खर्जन-संज्ञा पुं० [सं०] डुलाना। खुजलाने की क्रिया या भाव। खर्राट-वि० [हिं०] दे० 'खुटि'। खजरा-संज्ञा स्त्री० [सं०] सज्जो मिट्टी। खरी-संवा पुं० [खर खर मे अनु०] १.वह लंबा या बडा कागज खजिका-संशा . [मं०] १. उपदग या गरमी नाम सा रोंग । २. जिसमें कोई भारी हिसाव या विवरण लिवा हो। २. एक - गजक । चिखना (को०)। प्रकार का रोग जिसमें पीठ पर छोटी छोटी फुसियां निकल खर्जु-संशा सी० [सं०] १. वर का पेड़ ।। २. खजली । ३. धतूर पाती हैं और चमड़ा कड़ा और खूनदुरा हो जाता है। . का पौधा । ४. एक प्रकार का कीड़ा [को०] 1 . " खर्राच-वि० [फा० खर्राचा खर्चीला। उ०-वेशक उसी ने तो खर्जुन--संवा पुं० [सं०] १. चक्रमर्द । चकबड़। २. धतूरा । ३. चोरी लु के रुपए दे देकर मानिक को ऐसा खरांच होने दिया .. मदार । आक [को०] । था।--शराबी, पृ० १५५ ॥ खर्राटा-संञा पुं० [अनु॰] वह प्राब्द जो सोते समय नाक से, विशेषत: खर्जुर-संवा पुं॰ [सं०] १. चाँदी । २. खजूर को०] 1. बलगमी अ'दमी की नाक से, निकलता है। . -खजु-संज्ञा स्त्री० [सं०] १.खुजली । कंड़ । २. एक कोटभेद [को०] 1 महा०-खर्राटा भरना, मारना या लेना=बेखबर सोना । 10- खजूर संज्ञा पुं० [सं०] खजूर । २. चांदी। ३. हरताल । ४. मृगलानियाँ खर्राटे लेती थीं।—फिसाना०,भा०३, पृ० २५ । - विच्छ्र । ५ गर्भ (अनेकार्थ)।६.जराय (अनेकार्थ)। खति-संशा पुं० [अ०] खरग्द का काम करनेवाला व्यक्ति । ७. शूद्र ( अनेकार्थ०)।८. धतूरा (को०)। .. खरादी [को०)। खजूरक-संज्ञा पुं० [सं०] वृश्चिक ! विच्छू [को०] । खजूररस-संश पुं० [सं०] खजूर का रस । ताड़ी। एक · मादक खर्राती--संज्ञा स्त्री० [अ०] खरादी का काम या पेशा [को०] । पेय (को०] ! खरीद-संज्ञा पुं० [फा० खरीद खरादी। खरानी (को०)। खर्व-वि० [सं०] जिसका अग भग्न या अपूर्ण हो । न्यूनांग । २. खजूररसज-संञ्चा पुं० [सं०] खजूर के रस से बनी शर्करा या गुड़ छोटा । लघु । उ०- यहाँ खर्व नर रहते युग युग से अभि शापित !-याम्या, पृ०१६ । ३. वामन । बीना। खारवेध-संश्वा पुं० [सं०] ज्योतिष में एक प्रकार का योग जिसमें खर्व-संज्ञा पुं० १. संख्या का बारहवां स्थान ! सौ अरब । खरख । ... विवाह होना वजित है । इसे एकार्गल भी कहते हैं। - २.वारहवें स्थान की संख्या। ":ख रिका-संथा पुं० [सं०] खजूर के रस से बनी हुई या खजूर के विशेष-वैदिक काल में संख्या का ३५वां स्थान खर्व कह- .. आकार की मिठाई [को०] __ लाता था। खजूरी--स्त्री० संवा [सं०Jखजूर [को०] ३ कुवेर की नौ निधियों में से एक। ४. कजा नाम का वृक्ष । यौ०-खजूरीरसखजूर की ताड़ी। खजूरीरसज= खजूर खर्वट-संशा पुं० [सं०] १. पहाड़ के ऊपर बसा हा गाँ।। २. के रस का बना हुआ गुड़ या मिन्नी। वह गाँव जो चार सौ गांवो के बीच बसा हो। ३. दो सौ खतल-- विहि दे० 'खरतल'। उ०--जब ऐसे खतेल मनुष्य का गांवों के मध्य का प्रमुख ग्राम (को०)। ४ नदी के किनारे अंत में यह भेद खुला तो संसार में धर्मात्मा किस्को कह सकते वमा हा कस्बा और गांवनुमा बस्ती (को०)। ... हैं।-धीनिवास न०, पृ० ३३६ 1. . खर्वशाख-वि० [सं०] ठिंगना । पोर्ट कद का [को०)। ...... खपं संधा पुं० [सं० परJ ३० 'खर' । उ०---नरी · ग्राह पावं . खदित-वि० [सं०1 छोटा या लघू किया या । ख (को०)। -... करंतु जमे ।-ह. रासो, १० १५२ । . . . खविता-संचा बी० [सं०] १. वह प्रमावस्य. जिसमें चर्दशी ली .. खपर-संघा पुं० [सं०] १. तसले के प्रकार का मिट्टी का बरतन। हुई हो । ऐसी अमावस्या बहुत कम होती है । २. वह तिथि शापित .. वह गाव