पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/६३

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खरीदारी . . . खर्चना खरीदारो--संक्षा सी० [फ' खेरीगरी] मोल लेने की क्रिया । श्राप । खरोरी-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० खड़ा] छकड़ा गाड़ी में दोनों प्रोर के ने. खरीफ-सी० [मर ख़रीफ] वह फसल जो आपाढ़ से प्राधे खूटे जिन पर रोक के लिये बांस बंधे रहते हैं ।.. . अगहन के बीच काटी जाय । इस फसल में धान, मकई, खरोश-संथा पुं० [फा० खरोश जोर की बावाज । हता। शोर। . बाजरा, उर्द, मोड, मूग प्रादि अन्न होते हैं । उ०-मुसलमान खरोष्ट्री-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] दे० 'खरोष्ठी। रब्धी मेरी हिंदू भवा खरीफ :--पनटर, पृ० ११७ । खरोष्ठी-संशा नौ [सं०] एक प्रकार की लिपि । खरीम--संवा स्त्री० [दिश०] मुर्गी की जाति की एक चिड़िया जो प्रयः विशेष--प्रशोक के समय में यह लिपि भारत की पश्चिमोत्तर पानी के किनारे रहत है। इसके पर तीतर की तरह चितले सीमा की योर प्रचलित थी। यह लिपि फारमी की तरह होते हैं। दाहिने से वाएं को लिखी जाती थी। इसे गांधार लिपि भी खरील-संक्षा पुं० [देश॰] एक प्रकार का जेवर जिसे स्त्रियां दी की कहते हैं। खरौंट, खरोट - संज्ञा सी० [हिं० खरोंच] खरोष । खराश ! उ.--. भांति सिर पर पहनती हैं। मैं बरजी के वार तू उत कित लेति करौंट । पखरी गई गुलाब ख -संज्ञा पुं० [सं०] १. अश्व । घोड़ा। दांत । ३. गर्व । शान । ४. कामदेव । ५. शिव का एक नाम । ६. श्वेत वर्ण । ७. की परिहै गात वर्गट।--बिहारी (शब्द०)। (च) कौन .:. वजित वस्तुयों को लेने की आकांक्षा [को०] साँच करि मानि है अलि अचरज की बात । ये गुलाब की । खरु-संशा लो० अपना पति स्वयं चुननेवाली कुमारी । पतिवरा पांखरी परी खरोटे गात 1--भिखारी० ०, भा० . कन्या [को०] 1. १, पृ० १४। खर-वि०१. श्वेत । सफेद । २. मूर्ख । झगड़ालू । ३ क्रूर । कठोर। खराद खरीटना--क्रि० स० [हिं० खरी] दे. 'खरोंचना' । ४. बजित वस्तुओं को लेने का इच्छुक । खरौंहा-वि० [हिं० खारा+खौहा-(प्रत्य॰)] कुछ कुछ खारा। खरे-संहा पुं० देशा] एक पाने प्रति रुपए की दलाली ।-(दलालों कुछ नमकीन'। उ० स्याम सूरति करि राधिका तकति की बोली)। सरनिजा तीर । सुमन करति तरीस को छिनक दरौंहो । नौर।-विहारी (शब्द०)। खरेठ---भदा पुं० [देश॰] एक प्रकार का धान जो अगहन में तैयार खरोटा -संज्ञा श्री० [हिं०] ३. 'खरीट'। उ०—पकरि मोहि जल , होता है। खरेडी@-वि० स्त्री० [हिं० दे० 'खरहरी' । उ०-भाजद तो बीच हिलोरयो तोरचो गर को दाम। लरि कंकन को दियो खरीटा मेरे मुख सुनु वाम ।-भारतेदु ग्र०, भा० २, पृ०११३ । मृत्तिका के फूट खाली धान नाहीं तूटी से खरेड़ी खाटमल सो , खखोद-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का इंद्रजाल । लहत है। -राम० धर्म०, पृ०६६।

खग -संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'ख' उ०-दूसर खर्ग कंध पर

खरेडपा-संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'खरोरी'। . दीन्हा । सुरज वे ओड़न पर लीन्हा । जायसी (शब्द०) ! खरेरा-संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'खरहरा' । खर्च--संज्ञा पुं० [अ० खर्च] १. किसी काम में किसी वस्तु का... खरेला-संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का फल । उ०---खरि खरेला लगना । व्यय । सरफा । खपत । जैसे--(क) दस रुपए खर्च दाख खिरनी ग्राम नीफल लाइया ।--घट०, पृ० ६१। हो गए (ख) इस शहर में पानी का बहुत खर्च है। खरैया@- विहि० खरा खड़ा+ऐया (प्रत्य॰)] खड़े रहने क्रि० प्र-करना ।--देना।-धांटना । -होना । वाले । चुपचाप स्थित रहनेवाले। दर्शक । उ०-द्रौपदी मुहा०---खर्च उठाना = व्यय का भार सहना । खर्च करना। विचार रघुराज प्राज जाती लाज सब है खरया पैन टेर को जैसे--इस महीने में उन्हें बहुत खर्च उठाना पड़ा । खर्च सुनया है।-राम धर्म०, पृ० २६७ । . चलना = व्यय का निर्वाह करना । आवश्यक व्यय के लिये धन खरोंच-संशझी [अनुकरण मूलक देश०] १.नख प्रादि लगने या देते रहना । खर्च में डालना=(१) व्यय करने के लिये विवश : . और किसी प्रकार छिलने का हलका चिह्न । खराश । २. करना (२) किसी रकम को खर्च के मद में लिखना । .. पतौर नामक भोज्य पदार्थ जो अरुई ग्रादि के पत्तों को पीठी. खर्च निकलना= लागत प्राप्त होना । खर्च में पड़ना=(१)व्यय या वेसन में लपेटकर तलने से बनता है। रिकवैन। . के लिये विवश होना । (२) किसी रकम का खर्च के मद में खरोंचना-क्रि० स० [सं० क्षुरण] रचना ! करोना । छीलना। लिखा जाना। खरोट, खरोट -संघा पुं० [हिं० दे० 'खरोंच'। . . . यौ०-ऊपरो खर्च = नियमित से अतिरिक्त या अनिश्चित व्यय । . खरोटना-फ्रि० स० [हिं० खरोंट+ना (प्रत्य॰)] दे० 'बदमा'। फुटकर खर्च। २. नाजून गड़ाकर शरीर में घाव करना । २.वह धन जो किसी काम में लगाया जाय जैसे--उनके पास खरोदक@! संपुं० [सं० क्षीरोदक ] एक प्रकार का वस्त्र या कुछ भी खर्च नहीं है। ' पहिरावा । खरंदुक ।२०-माणिक मोती चौक पुराई दीया. यो.--खर्चखानणी =(१) निजी खर्चा । व्यक्तिगत व्यय । २. सरोदक पइहरणइ 1--वी० रासो, पृ० १११ परिवारिक या घोलू खर्च। खरोरा--संज्ञा पुं० [६० खड़ौरा) दे० 'बोरा। खर्चना--क्रि० स० [अ० खर्च + हिं० ना (प्रत्य०) ३८ 'बरचना :