पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१०४

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जालव १०४६ जालीलोटे फो छ उजास सौ पाइ। पीटि दिए जगत्यो रह्यो होठि जालिनी'--संका कीR.] १. तरोई। घिया। २ वह स्थान मरीन लाइ।-बिहारी (शब्द॰) । जहा चित्र बनते हों।. चित्रपासा। ३ परवल की लता। ४. जालव-मचा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक दैत्य का नाम जो बलवस . पिटिका रोग का एफ भेद। का पुत्र था मौर जिसका वलदेव जी ने वध किया था। विशेष:-इसमें रोगी के शरीर के मांसल स्थानों में दाहयुक्त जालसाज-सा [4. जपूत+फा० साज़ ] वह जो दूसरों फुसियां हो जाती हैं। यह केवल प्रमेह के रोगियों को को धोखा देने के लिये झूठी कारंवाई करे।। होता है। जालसाजी-समा श्री.जाल+साजीम: जमल + फा० साजी' जालिनोकर- वि० हिं० जालना ] जलानेवासी। फरेव या जाल करने का काम । दगावाषी । जालिनीफल-संका [म.] १. तरोई । २ घिया। , जाला-सया पुं० [सं० जाल] १ मकडी का बुना हुमा पहत पतले तारों जालिम-वि० [अ० वालिम जो बहुत ही अन्यायपूर्ण या निर्दयता फा वह जाल जिसमें वह अपने खाने के लिये मक्खियों और फा व्यवहार फेरता हो । जुल्म करनेवाला । अत्याचारी। दूसरे कोड़ो मकोड़ों मादि को फंसाती है। वि० दे० 'भकष्टी'। जालिमाना-वि० [म. जालिम, फा० जालिमानह ] अत्याचार विशेष—इस प्रकार के बाले वहषा गदे मकानों को दीवारों पौर संवधी [फो०] । जालसाज । फरेव या धोखा देनेवाला। छतों मादि पर लगे रहते हैं। " जालिया - वि० [हिं० पान = (फरेव) +इमा (प्रत्य॰)] जाल फरेब २. भाख का रोग जिसमें पूतली के पर एक सफेद परदा या करने, या धोखा देनेवाला । झिल्ली सी पड़ जाती है और जिसरे फारण कुछ कम दिखाई जालिया-सा पुं० [हिं० जाल +इया (प्रत्य॰)] जाल की पड़ता है। - सहायता से मछली पकड़नेवाला। घीवर । विशेष-यह रोग प्रायः कुछ विशेष प्रकार के मैस प्रादि के जाली'-मण स्त्री० [सं०] १. तरोड़ी। २ परवल । जमने के कारण होता है, और ज्यों ज्यों झिल्ली मोटी होती जाली-साधा सी० [हिं० बाल], किसी चीज, विशेषत लकही जाती है, त्यो त्यों रोगी को दृष्टि नष्ट होती जाती है। पत्थर यो धातु प्राधि, में बना हुमा वहत से छोटे छोटे छेदों भिन्ली अधिक मोटी होने के कारण जब यह रोग बढ़ जाता.. का समूह। है, तब इसे माहा कहते हैं। . क्रि०प्र०-काटना-बनाना। ३. सूत या सन प्रादि का बना हुमा यह जाल जिसमें घास भूसा २. फसौदे का एक प्रकार का काम जिसमें फिसी फूल पा मादि पदार्थ बांधे जाते हैं। ४ एक प्रकार का सरपत जिससे पत्ती भादि के बीच में यहुत से छोटे छोटे खेद बनाए चीनी साफ की जाती है। ५ पानी रखने का मिट्टी का पहा जाते है। । वरतन,1,६ दे० 'जाल'। क्रि० प्र०-फाढना -निकालना । -हालना.।-भरना । जाला@:-सपा स्त्री० [सं० ज्वाला] दे॰ 'ज्वाला' । उ०—इक मुख्य -बनाना। अग्गि जाला उठत, इस परह देह वरिखा उठत ।-पु० रा०, , ३. एक प्रकार का कपडा जिसमें बहुत से छोटे छोटे छेद होते 11४ वह मकड़ी वो, चार फाटने ६ गहसि के, दस्ते पर नालाक्ष-मया पुं० [सं०] झरोखा । गवाक्ष । "लगी रहती है।'५. कच्चे ग्राम के प्रदर गुठली भी ऊपर फा वह ततुसमूह पो पकने से कुछ पहले उत्पन्न होता भोर पीछे जालाप-सप्या पुं० [सं०] एफ प्रकार को सरल पोषधि [को॰] । ..से कंडा हो, पाता है। इसके उत्पन्न होने के उपरांत माम के जालिकसक पु० [सं०] १ कैवती जॉल धुनचेवाला व्यक्ति। फर्म का पफना भारभ होता है। . २. जाल से मृगादि जतुओं को फंसानेवाला व्यक्ति। कळंटछ। क्रि० प्र०-~-पड़ना। ३..इ द्रजालिक । मदारी,बाजीगर। ४ मकड़ी (हि.)। १० जाला ५. प्रदेशमादि का प्रधान शासक (को०)। नाली-संहासी पक प्रकार की छोटी नाव जालिक-वि० जाल से जीविका अजित करनेवासा (फो०)। जाली -वि० [.जमत+हि०६ (प्रत्य॰)] नकली। बनावटी । जालिका-सा स्त्री० [सं०] १. पाण। फदा । २ जाली । ३ विधया अठा । जैसे, जाली सिक्का, जाची दस्तावेज। . स्यो। ४. कवच | जिरच धकतर । पोपा। ५. मकड़ी । यौ०-जाषी नोट नकषी मोट। ६ लोहा । ७ समूह । 30--प्रनतजन फुमुदवन इदुपर . जातिका जालसि’ अभिमान माहिपेस पहु कालिका ।। जालीदार-वि० [ देश ] जिसमें जामी पनी या पही हो। -तुलसी (शब्द०)। ८ स्लिमों के मुख पर हांसनेवाला जालालट-सधा पु० [हि० जासी+सेट ] एक प्रकार का कपडा प्राधरण पा परदा । मुख पर डाली जानेवाली जाली (को॰) । जिसकी सारी बुनावट में यहुत से छोटे छोटे छेद होते हैं। ६ जोक (फो०)। १०, फेला (को०)। ११ एक प्रकार का जालोलोट---संघा पु० [हिं० जाली नोट ]२० 'जालीलेट'। घस्न (को०)। जालीलोट-सक्षा पुं० [हिं० जासी+4 नोट ] दे॰ 'जाली नोट । ४-१२ ,