पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१०३

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जारोषकशी । जालरंध्र जारोबकशी-सचा त्री० [फा०] भाड देने का काम [ो०] 1 जालक-समा पु० [सं०] १ जाल । २ कली । ३ समूह । ४ गवाक्ष । जार्यक-सहा पुं० [सं० ] एक प्रकार का मृग । झरोखा। ५ मोतियो का बना हुमा एक प्रकार का पाभूषण । ६ केला । ७. विडियो का घोसला।८. गवं । मभिमान । जालंधर-सञ्ज्ञा पुं० सं० नालन्धर ] १ एक ऋपि का नाम । २ जलंधर नाम का देत्य । ३. पजाय प्रांत का एक नगर । जालकारक-सधा पु० [सं०] मकड़ा । जालंघरी विद्या-सा श्री० [सं० जालन्धर ( = एक दैत्य)] मायिक जालकि-सहा पुं० [सं०] १ पास्मो से अपनी बीविका निर्वाह करने- विद्या ! माया । इद्रजाल । वाला मनुष्य । जाल-सक्षा पुं० [सं०] १ किसी प्रकार के तार या सूत मादि का जालकिनी-सवा स्त्री० [सं०] भेडी। बहुत दूर दूर पर बुना हुमा पट जिसका व्यवहार मछलियों जालकिला-संपा श्री० [हि. जाल +- किरच ] परतला मिली हुई और चिहियों प्रादि को पकड़ने के लिये होता है। वा पेटी जिसके साथ सलवार भी लगी हो। विशेष-जाल मे बहुत से सूतों, रस्सियो या तारो आदि को जानकी-सपा पुं० [सं० जालफिन् ] बादल (को०) । खडे पोर पाहे फैलाकर इस प्रकार बुनते हैं कि बीच में बहुत जालकीट-सक्षा ([सं०] १. मकडा । २ वह कीड़ा जो मकड़ी से बड़े बड़े छेद टूट जाते है। के जाले में फंसा हो। मि०प्र०-बनाना।-बुनना। जालगभ-सहा पु० [सं०] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का क्षुद्र यौ०-जालकम् = मछुए का पधा या पेशा । जालग्रथित - जाल रोग। में फंसा हुमा । जाखजीवी। विशेप-इसमें किसी स्थान पर कुछ सूजन हो जाती है भौर मुहा०-जाल डालना या फेंकना = मछलियाँ प्रादि पकडने, कोई बिना पके ही इसमें जलन उत्पन्न होती है। इस रोग में वस्तु निकालने अथवा इसी प्रकार के किसी पौर काम के लिये रोगी को ज्वर भी हो जाता है । जल में जाल छोड़ना। जाल फैलाना या बिछाना = चिडियों पाधि को फंसाने के लिये जाल लगाना। जालगोणिका-सया स्त्री० [सं०] दही मथने की होडी [को० । २ एक में पोतप्रोत बुने या गुथे हुए बहुत से तारों या रेशों का जालजीवी-सपा पुं० [सं० जालजीविन् ] धीवर । मछुपा । समूह । ३ वह युक्ति जो किसी को फंसाने या वश में करने के जालदार-वि० [सं० जाल+हिं० दार ] जिसमें जाल की तरह लिये की जाय। जैसे,—सुम उनके जाल से नहीं बच सकते । पास पास छेद हो । । जालवाला । जालीदार । २ फदेवाला। मुहा०-जाल फैलाना या बिछाना - किसी को फंसाने के लिये फदेदार (को०)। युक्ति करना। जालना-क्रि० स० [हिं० दे० 'जलाना' । उ.--दादू कह जाते ४ मकड़ी का जाला । ५ समूह । जैसे,-पद्मजाल । ६ इंद्र के जालिये, केई जालन जोति। केई जालन की फेरे, दादू जाल । ७ गवाक्ष । झरोखा । ८ महकार । पभिमान । जीवन नाहिं।--दादू० वानी, पृ० ३६७ । है वनस्पति मादि को जलाकर उसकी राख से तैयार जालनी-सश स्त्री० [हिं० दे० 'जालिनी' ४ । उ०-जालनी किया हुमा नमक । क्षार । खार । १० कदम का पेड़ । यह तीन दाह करके सयुक्त और मास के जाल से व्याप्त ११ एक प्रकार की तोप । उ.--जाल जजाल हयनाम होती है। --माधव., पृ. १८७। गयनाल हूँ बान नीसान फहरान लागे । -सूदन (शम्द०)। १२ फूल की फली । १३. दे० 'जालो'। १४ वह झिल्ली जो जालपाद - सच पुं० [सं०] १ हस । २. जाबालि ऋपि के एफ जलपक्षियों के पंजे को युक्त करती है (को०)। १५. पाखों शिष्य का नाम । ३ एक प्राचीन देश का नाम । ४ वह पशु या पक्षी जिसके पैर की उंगलियां जालदार झिल्ली से का एक रोग (को०)। ठेकी हों। जाल -सझा पुं० [सं० ज्वाल] ज्वाला । लपट । १०-अग्गि जाम किन तन उठत किन तन तन परसे मेह। चक्रपवन उडूर के जालप्राया-सधा स्त्री० [सं०] कवच । जिरह धकतर । सजोपा। केतन ककर खेह । -पू० रा०, ६५५ । जालबंद-मसा पुं० [हि० जाल+फ्राबद ] एक प्रकार का गलीचा जात--सम्रा पुं० [म. जपल । मि० सं० जाल ] यह उपाय या जिसमें जाल की तरह बेलें बनी होती हैं। कृत्य जो किसी को धोखा देने या ठगने पादि के अभिप्राय जालबचे रक-सक्षा पुं० [सं०] बवूल की जाति का एक प्रकार का से हो । फरेष । धोखा । झूठी कार्रवाई। पेड़ जिसमें छोटी छोटी डालिया होती हैं। क्रि० प्र०-करना ।- बनाना । रखना। जालम -वि० [हि.] दे० 'जालिम' । उ०-विधन करत है जान -सझा खी० [देशी जाह (-गुल्म)] राजस्थान में होनेवाला चपेट पकड फेट फाल की । नामा दर्जी जालम बिहू राजा का एक वृक्षविशेष । उ०-थल मध्याह जल माहिरी, तूं का गुलाम ! –दक्खिनी०, पृ० ४५ । नीली जाल । कोई तूं सीची सज्जरणे, फॅह बूठत अगालि । जालरंध्र-एडा पुं० [सं० जालरन्ध्र]घर में प्रकाश माने के लिये गेले -होला०, दू०३६। __ में लगी हुई जाली या उसके छेद । उ०-जालपण मग गनु