पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१०८

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जिच्च निताना मे शाह की वह अवस्था 'जब उसे चलने का कोई घर न उघर जाना। उ०-पसु परु पसप वानल माही। चकित हो मोर न भर्दव में देने को मोहरा हो। ३ शतरज भए जित कित ह्व जाही।-नद० प्र०, पृ० ३१० । के सेल की वह अवस्था जिसमें किसी एक पक्ष का कोई जितक-वि० [हि. जित ] टे० जितना'। 80-भवतारी मव- मोहरा चलने की जगह न हो। तार घरन परु जितक विभूती । इस सब प्राश्नय के प्रचार जिच्च'-वि० विवश । मजबूर । तग । जग गिहि की ऊती ।- नद० प्र०, पृ० ४४। जिजमान -सन पुं० [हिं० जजमान ] दे० 'जजमान' 1 30-मनु जितना-वि० [हिं० जिस+तना (प्रत्य॰)] 1 विश्री जितनी ] तमगन लियो जीति चद्रमा सौतिन मध्य बंध्यो है। के कवि जिस भाषा का। जिस परिमाण का। जैसे,-जितना मैं निज जिजमान जूध मे सुदर प्राइ चस्यो है।-भारतेंदु न०, दोडता हूँ उतना तुम नही दौड सकते। भा० २, पृ० ४५ । विशेष-सख्या सूचित करने के लिये बहवचन रूप 'जितने का जिनिया-सज्ञा स्त्री० [हिं० जीजी ] बहन । प्रयोग होता है। "जितना' के पीछे 'उतना' का प्रयोग सबष जिजिया--सा पुं० [अ० जिजियह ] १. कर । महसूल । २. वह पूरा करने के लिये किया जाता है। जैसे, जितना मीठा वह कर या महसूल जो मुसललमानी अमलदारी मे उन लोगों पर माम था उतना यह नहीं है। लगता था जो मुसलमान नहीं होते थे। जितकोप, जितक्रोध-वि० [सं०] जिसने क्रोष को जीत लिया हो। जिजीविषा--सन्ना स्त्री० [सं०] जीने की इच्छा [को०] । जितनेमि-सचा '० [सं०] पीपल का दड या हडा [को० - जिजीविपु-वि० [सं०] जीने की इच्छा रखनेवाला [को०] । जितमन्यु-वि० [सं०] दे॰ 'जितकोप' (को०)। जिनापयिषा-पशा स्त्री० [सं०] जताने या ज्ञापन की इच्छा [को०] | जितरा-सका पुं० [हिं० जिता] वह हलवाहा जिसे वेतन या जिज्ञापयिपु--वि० [60 Jजनाने का इच्छुक [को०] । मजदूरी नहीं दी जाती बल्फि खेत जोतने के लिये हल पैल जिज्ञासा-सवा सौ. [ सं०] जानने की इच्छा। ज्ञान प्राप्त करने दिए जाते हैं। की कामना। २. पूछताछ । प्रश्न । परिप्रश्न । तहकीकात । नितलोक-वि० [सं०] जिसने पुण्य कम से स्वर्गादि लोक प्राप्त . क्रि० प्र०-करना। किया हो। जिज्ञासित-वि० [सं०] जिसकी जिज्ञासा की गई हो। पृया जिवना-क्रि० स० [सं० शात ] जताना। प्रकट करना। हुमा (फो०)। उ.-चितवत जितवत हित हिए किए तिरीके नैन । भीजे तन जिझासितव्य-वि० [सं०] जिज्ञासा योग्य । पूछने योग्य [को०)। दोक पै क्यों हू जप निवरेन ।-विहारी (शब्द०)। जिज्ञास-वि० [सं०] १ जानने की इच्छा रखनेवाला। ज्ञान- जितवाना-क्रि० स० [हि जीतना का प्रे० रूप] जीतने देना। प्राप्ति के लिये इच्छुक । खोजी। २ मुमुक्षु (को०)। जीतने में समर्थ या उद्यत करना। जीतने में सहायक होना। जिन्नासू-वि० [सं० जिज्ञासु दे० 'जिज्ञासु'। जितवार+-वि० [हिं० जीतना ] जीतनेवाला। विजयी। जिज्ञास्य-वि० [सं०] जिसकी जिज्ञासा की जाय। जिसे जानना उ०-जह हो ब्रजेशकुमार । रनभूमि को जितवार ।---सदन हो। जिसके सबंध में पूथताछ की जाय । जितवैया-वि० [हिं० जीतना+वैया (पू०. प्रत्य॰)] १. जीतने- जिठाई।-सहा स्त्री० [हिं० ] दे॰ 'जेठाई' । __ वाला । २ जितानेवाला । किसी को विजयी बनानेवाला। जिठानी-संक सी० [हिं०] दे० 'जेठानी' । जितशत्रु-वि० [सं०] विजयी। जो शत्रु को पराजित कर चुका जिणि सर्व० [हिं० जिन ] दे० 'जिस'। उ०—जिणि देसे। हो (को०] । सज्जण वसई, तिणि दिसि वज्जट यार। उमा लगे मो जितश्रम-वि० [सं०] जो श्रम या यफान का अनुभव न करता हो। लग्गसी, कही लाख पसाउ ।ढोला०, दू०७४। जितसंग-वि० [सं० जितसङ्ग प्रामक्ति या पाकर्षण से मुक्त [को०] । जित-वि० [सं० ] जीतनेवाला। जेता जितस्वर्ग-वि० [सं०] पुण्य के प्रभाव से जो स्वर्ग जीत घुका विशेष-इस-अर्थ में यह पान्द समासात में माता है। जैसे, इंद्रजित, शत्रुजित्, विश्वजित् इत्यादि। हो [को०] । जिता+-सबा पुं० [हिं० जोतना वा जीतना ] वह सहायता जो . जित-वि० [सं०] जीता हुमा । परावित । बिसे दूसरे ने जीता हो। जिर किसान लोग खेत की जोताई बोनाई में एक दूसरे को देते हैं। जितन-कि, वि० [२० पत्र ] जिधर । जिस पोर । उ०---जात। है जित बाजि केशी जात है तित लोग ।-केशव (शब्द०)। जिता'-वि० [हिं०] [वि० श्री. जिती ] दे० 'जितना'। यौ०-जित , तित्त- जहाँ तहा। वि० ० 'जहाँ' के महावरे । जिताक्ष-वि० [सं०] जितेंद्रिय को०)। उ सम विषम विहर वन सघन घन तहाँ सथ्य जित तित

जिताक्षर-वि० [सं०] बढ़िया पढ़ने लिखनेवाला (को०] ।

हुप्र । मूल्यो सुसग कवियन वनह और नही जन संग दुम। जिवात्मा-वि० [सं० जितात्मन ] जितेंद्रिय । --पृ० रा०, ६।१३। जिताना-क्रि० स० [हि. जीतना का प्रे० रूप ] जीतने में समर्थ महा--जित कित होकर जाना-प्रव्यवस्थित जाना। इधर या उद्यत करना। 10-ताही समै छल छल कीन्हो है छचीली