पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१७५२ जिउतिया जिच्च जिउतिया-सा स्त्री० [हिं० जूतिपा>सं० जीवितपुत्रिका ] एक प्रत ' सार । ५. मध्य । सारे भाग। जैसे, लकही का जिगर । माश्विन कृष्णाष्टमी के दिन होता है।३० जिताप्टमी' । ६ पुत्र । लडका (प्यार से.). विशेष-दस व्रत को वे स्त्रिया जिनके पुत्र होते हैं, करती हैं। जिगरकीड़ा-सा पुं० [फा० जिगर+हिं. कीडा ] भेडों का रोग इसमे गले में एक धागा वाँधा जाता है जिसमें अनंत की तरह जिसमें उनके कलेजे में कीड़े पड जाते हैं। होती। कहीं कहीं पैह त प्राश्विन शुक्लाष्टमी के जिगरा-संभा [हि. जिगर ] साहस । हिम्मत । जीवट । दिन किया जाता है। जिगरी-वि.फा... दिली। भीतरी । २ अत्यत घनिष्ठ! जिउनार-सहा स्त्री० [हिं०] दे० 'जेवनार'। ०३-मोजन श्वपच पमिन्नहृदय । जैसे, जिगरी दोस्त । कीन्ह जिउनारा । सात बार घटा झनकारी। --कवीर जिगिन--सदा स्त्री० [सं० जिङ्गिनी एक ऊँधा जगनी पहा __ म०, पु० ४६३ । विशेष-इसके पत्ते महए या तुन के पत्तों के समान होते है जिउलेवा-वि० [हि. जीव + लेवा ] दे० 'जिवलेवा। और टहनी में जोड के रूप में इधर इधर लगते हैं। यह जिकड़ी-सका सी० [देश॰] अज का एक लोकगीत, जिसमे दो दल पहाड़ों पौर तराई के जगलों में होता है। इसके फूल सफेद बनाकर प्रश्नोत्तर होता है। पौर फल बेर के बराबर होते हैं। वैद्यक में इसका स्वाद जिफर-समा पु० [हिं० जिकिर] दे० 'जिकिर'। 30--फिरे गैय का चरपरा और कसैला लिखा है। इसकी प्रकृति गरम बतलाई छत्र जिकर-का मुस्क लगाई।-पलटू०, मा० १, ५०१०६। गई हैपौर वात, पण, अतीसार, और हृदय के रोगों में इसका जिकाg--सर्व० [हिं० जिसका या जिनका का सक्षिप्त रूप दे० प्रयोग लाभकारीकहा गया है। इसकी दतवन अच्छी होती है जिसका। उ०-भावी सब रत मामली, प्रिया करइ सिणगार। पौर मुख की दुर्गध को दूर करती है।। जिका हिया न फाटही दूर गया भरतार ।--ढोला, दु. पर्या-जिगिनी। झिगिनी। झिंगी। सुनिर्यासा । प्रमोदिनी। पार्वती । कृष्णमाल्मली। जिक्र--सज्ञा पुं० [म. जिक्र] १. पर्चा । वातचीत । प्रसग। जिगोपा-सझाली. [सं०] १. जय को इच्छा। विजय प्राप्त करने, क्रि० प्र०-माना ।-करना ।-चलना ।-पलाना ।- की कामना। २ उद्योग। पचा व्यवसाय । ३. लडने की छिड़ना ।-शेठना। इन्छा । युद्ध करने की इच्छा । (को०)। ४ प्रतिस्पर्धा । लाग । . यौ०-जिक मजकूर बातचीत । पर्धा | जिके-खैर %D कुशल हॉट (को०)।५ प्रमुखता (को०)। चर्चा । शुभ पर्चा 30-मतः सबसे पहले क्यों न कविसम्मेलनों जिगीषु-वि० [सं०] १ युद्ध की इच्छा रखनेवाला। २ विजय ही का जिक्र खैर किया जाय ।-कुकुम । (मू.),पु०२॥ का इच्छुक [को०)। २ एक प्रकार का जप (को०)। जिगरन-सका पुं० [ देश० ] एक प्रकार का पोटीदार चकोर जो जग -सबा पु० [हिं० दे० 'यश' । १०-हण ताहका निज- -- हिमालय में गढ़वाल से हजारा तक मिलता है। ठहरा। जिग मांड पारम जाहरा । -रधु० रु., पु०६७। "विशेप-इसे जकी, सिंग मोनाल, और जेवर भी कहते हैं। जिगलु-वि० [सं०] क्षिप्रगामी । तेज चलनेवाला [को०)। इसकी मादा बादेल कहलाती है। जिगलु-सचा पु०प्राणवायु । श्वास [को०)। . .. . . जिघलु-वि० [सं०] बष की इच्छा रखनेवाला । शत्रु को जिगन-सशास्त्री० [हिं०] दे० 'जिगिन'।- जिघत्सा-0 ली. [सं०] १ भूख । स्वाने की इच्छा । २. प्रयास जिगमिषा-संवा ली. [सं०] जाने की इच्छा (को। करना [को०)। - जिघत्सु-वि० [सं०] भूखा । भोजन की इच्छा रखनेवाला [को०] । जिगमिषु-वि० [सं०] पाने का इच्छुक [को०)। ' जिघांसक-वि.[20] मारनेवाला वध करनेवाला (को०। जिगर-सा पं० [फा० मि सं० यकृद] [वि॰ जिगरी] १ केलेजा। जिघांसा--समानी- [सं०] १. मारने की इच्छा । २. प्रतिहिंसा । यौ०--जिगर कुल्फ जिगर का साला। हृदयरूपी तालाल जिगर का साखा। हृदयरूपा तालाब । जिषांसा की- यूति प्रल हुई तो.छोटी छोटी सी रातों उ.-मुसकानि'भो लटकीली पानि मानि दिल में होले । भलक पर अपवा खाली सदेह पर ही दूसरों को सत्यानाश करने की रल्के हलकें जिगर कुल्फ को जु खोले.। -प्रज० प्र०, पृ०४१। जिगर खराश= (१) जिगर को छोसनेवाला । (२) ममिय। .. इच्छा होगी।-श्रीनिवास म, पू०१६०। दुःखदायी। जिगर गोगा। जिगरवद- पूत्र (ला.) । जिंगर. स-वि० [सं०] दे० "जिघांसक। सोज = (१) दिल जलानेवाला । (२) दिल का जला। जिघृक्षा-सया स्त्री० [सं०] पकड़ने की इच्छा [को०] । महा०--जिगर कमाव होना=(१) फलेजापक जानोमा . जिन-वि० 1 स० पकडने की इच्छा रखनेवाला (को०)। जलना । (२) दुरी तरह कुढ़ना। जिगर के टुकड़े होना = जिघ्र--वि० [सं०] १ संदेही । सदेह या शका करनेवाला । २. कलेजे पर सदमा पहुंचना । भारी दुख होना । जिगर थामकर सूंघनेवाला । ३ समझनेवाला [को०] । बैठना = असह्य दु.ख से पीठित होना। जिंच-सना सी० वि० [?] दे० 'जिच्च'।। २ चित्त । मम । जीव । ३. साहस । हिम्मत । ४ गूदा । सत्त। जिच्च'--सपा स्त्री० [?] १ बेबसी । तगी । मजबूरी। २. शतरज R