पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१११

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जियाना जिमित विशेष-समन्वय सूचित करने के लिये इस चन्द के भागे तिमि जिम्मेवार-ममा पु० [हिं०] १० जिम्मावार'। उ०जिस गांव के का प्रयोग होता है। ये हैं, वहाँ का जमींदार जिम्मेवार होगा।-काले०, पृ०५॥ जिमित-समा पुं० [सं०] भोजन [को०] । जिम्मेवार-सपा पुं० [4. जिम्मह + फ़ा० यार (प्रत्य०)120 जिमींदार-शपु० [हिं० जमीदार] 'जमीदार'। जिम्मावार। जिम्मा-सक्षा पु० [म० जिम्मह. ] १ इस बात का भारग्रहण कि जिम्मेवारी-समा सा[प० जिम्महफा० यारी (प्रत्य०)1 कोई बात या कोई काम अवश्य होगा और यदि न होगा तो दे० 'जिम्मावारी' उसका दोष भार ग्रहण करने वाले के ऊपर होगा। किसी ऐसी जिया-षा पुं० [सं०जीव ] मन। चित्त। जी। 30-(3) घात के होने या न होने का दोष अपने ऊपर लेने की पस जिय जानि सुनह सिख भाई। करहु मातु पितु पद मेव- प्रतिज्ञा जिसका संबंध अपने से या दूसरे से हो । उत्तरदायित्व काई। --तुलसी (शब्द०)। (स) प्रसन चद सम जतिय पूर्ण प्रतिज्ञा । जवाबदेही। जैसे,--(क) मैं इस बात दिइक मत्र इह जिय । इह प्राराधत गट्ट प्रगट पचाम बीर का जिम्मा लेता हूँ कि कल प्रापको चीज मिल जाएगी। (ख) विय ! -पृ० रा०, ६ । २६ । इस बात का जिम्मा मेरा है कि ये एक महीने के भीतर पाप यो०-ययधा-हत्या करनेवाना । पत्ताव । + का रुपया चुवा देंगे। (ग) क्या रोज रोज खिलाने का जियन-सहा पुं० [हिं० जीवन ] जीवन । विधगी। मैंने जिम्मा लिया है। जियनि-सा बी [स०पीवन] १. वीवन । २ पोवन का दग। कि० प्र०--करना । --लेमा । रहन सहन । पापरण। मुहा०-कोई काम किसी के जिम्मे करना किसी काम को करने न जियरा -सा पुं० [हि.सीय] १. पीव । मन पित्त । 10- का भार किसी के ऊपर होना । फिसो के जिम्मे रपया पाना, मेरो स्वभाय चितवे को माई री साल निहारि के रसी निकलना या होना = किसी के ऊपर रुपया ऋणस्वरूप पाई। या दिन से मोहि लागी ठगोरी री लोग कई होना । देना । ठहराना । जैसे,--हिसाय करने पर ५) २० कोर पावरी पाई। यो रससानि घिरघो सिगरी ग्रन जानत तुम्हारे जिम्मे निकलते हैं। किसी के जिम्मे रुपया सालना = ये फि मेरो जिपराई। जो योर चाहे भलो अपनो तो सनेह किसी के ऊपर माण या देना ठहराना । न माह सो कीजिए माई1-रसखान (शब्द०)।२ प्राए । विशेष-जिम्मा और वादा में यह भतर है कि पादा अपने ही ---जियरा जावगे हम जानी। पाप तस्व को बनो है विषय में किया जाता है और जिम्मा दूसरे के विषय में भी पिजरा जिसमें वस्तु विरानीपायत जावत फोटन देखा दूब होता है। गया विन पानी । ---वीर शम, मा०, पु०॥ २ सुपुर्दगी । देखरेख। सरक्षा । जैसे,—ये सब चीजें मैं तुम्हारे म्हार जियाँकार-वि० [फा० जियाकार] १ हानि पहचानेवाला। २ जिम्मे छोड जाता हूँ, कहीं इधर उधर न होने पाएँ। बदमाश । बुरा भाचरण करनेवाला (को०] । जिम्मादार -सक्षा पुं० [अ० जिम्मह, का० दार ( प्रत्य० ) ] दे० जिया-ससा भी.[मं० जिपा] , मूर्य का प्रकाश। २ एमक । 'जिम्मावार'। प्रामा । काति [को०)। जिम्मादारी-सक्षा सौ. [ भ० जम्मइ दारी ( प्रत्य॰)] दे० "जिम्मावारी'। जिया-सशा श्री• [हिं० घाई या धाय ] दूध पिलानेवाली दाई। जिम्मावार-सहा पुं० [अ० जिम्मही फा+वार । प्रत्य०.1 जिया -सबा पुं० [हिं०] दे० 'जी' और 'मन'। वह जो किसी बात के लिये प्रतिज्ञाबद्ध हो। जापदेह। जिया-सशा बी• [हिं० जोजी या बोदी ] वही पहन । उत्तरदाता । जियाजंतु-समा पुं० [हिं० जीवजतु] 'जीवजतु'। जिम्मावारी- सझा पुं० [हिक जिम्मायार+ई (प्रत्य॰)] १ किसी जियादत-सधा स्त्री० [म. ज़ियादत] १. माषिषय । प्रतिभपता। बात को करने या किए जाने का भार । उत्तरदायित्व । २ मत्याचार । जुत्म [को जवावदेवी। २ सुपूर्दगी । सरक्षा । उ० ---हम इन चीजों को जियादती-मया ली. [म० जियादत + हि०ई (प्रत्य० ) ] ३० तुम्हारी जिम्मावारी पर छोट बाटे है। ज्यादती'। जिम्मी-सज्ञा पुं० [ भ० ज़िम्मी ] इमलामी राज्य का वह फर जिसे जियादा-वि० [अ० जियादह ] दे० 'ज्यादा। गैर मुसलमान होने के कारण देनग पठसा था (को०] | " जियान-समा पुं० [फा० जियार ] घाटा । टोटा । नुकमान । हानि । जिम्मोजर-सचा ली. [ फा० मी जर ] जर जमीन । उ०-- क्षति । पाखड डड रच्चे नहीं 1 जिम्मीजर ककर बरा । सभरिय काल क्रि० प्र०-उठाना । —होना ) --करना । कटक हनी ता पार्थ गुज्जर धरा। --पू० स०, १२ । १२८ । जियानाg+-क्रि० स० [हि. जीना] १ जिलाना। उ०प्रय जिम्मेदार-सहा पुं० [म. जिम्मह +फा० धार (प्रत्य॰)] दे० करि माया जिव फेरी। मोहिं जियाव देह पिय मोरी। जिम्मानार'। ---जायसी (शब्द०)। २ पालना। पोसना । उ०-वाघ जिम्मेदारी--सझा की. [अ० जिम्मह +फा० दारी (प्रत्य॰)] दे० पछानि को गाय जियावत, बाघिनी पै सुरभी सुत चोपै । - 'जिम्मावारी'। गुमान (शून्द०)।