पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/११२

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जियापोवा जिला ीि जियापोता--समा पुं० [हिं० जिलाना+पूत ] पुत्रजीवा का पेट। जिरह-सका श्री० [फा० शिरह ] लोहे की कड़ियो से बना हुमा पतजिय। कवच । वर्मा बकतर । । जियाफत-समा स्त्री [म. जियात १ भातिथ्य । मेहमानदारी। यौ०-जिरहपोश - जो वकवर पहने हो। कवची। २ भोज । दावत। जिरही'-वि० [फा०जिरही] जो जिरह पहने हो । कवचधारी । । मुहा०-जियाफत करना - (१) मादर सत्कार करना । (२) जिरही२-सज्ञा पुं० सैनिक [को०] 1 खाना खिलाना । भोज देना । जिराअत-समा स्त्री० [प्र.जिरामत ] खेती । कृषि क्रम। | जियार'कु-सज्ञा पुं० [हिं० दे० 'जियरा' । उ०-जावै 'बीत जियार, क्रि० प्र-करना। जेहल पछतावे जिके । -वाकी ०, भा० ३, पृ०१६ । यो०-जिरायत पेशा सेतिहर । किसान । कृषक।। जियार -वि० [हिं०] साहसी।हिम्मती। जीवटवाला। जिरा -सचा सी० [प्र. जिरामत ] दे० 'जिराभत' । जियारत-सञ्ज्ञा स्त्री० [म. जियारत ] १ दर्शन । २ तीर्थदर्शन । जिराफ-सहा . [H. पिराफ या जराफ़ ] घास के मैदानो का क्रि० प्र०-करना। एक वन्य पशु। मुहा०--जियारत लगना- मेला लगना । दर्शन के लिये दर्शकों विशेष-यह मनोका तथा दक्षिण भमरीका के घास के मैदानों ___की भीड़ होना। में झु हों मे फिरा करता है। इसके पैरो मे खुर होते हैं.पौर जियारतगाह-सहा पुं० [म. जियारत+फा० गाह] १. पवित्र इसका अगला घड़ पिछले से भारी होता है। गरदन इसकी स्थान । तीर्थ । २ दरबार । दरगाह। ३ दर्शको की भीड़ ऊंट की सी लबी होती है। यह पठारह फुट ऊंचा होता है। या जमघट। इसमें सिर पर दो छोटे छोटे पीग होते हैं जो रोएँदार चमड़े जियारतो-वि० [म जियारत+फ्राई (प्रत्य॰)] १ दर्शक । से ढके रहते हैं। इसकी अखि सु दर और उमडी होती हैं, २ तीर्थयात्री। जिनसे यह विना सिर मोठे पीछे देख सकता है। इसकी नाक जियारा-सा पु० [हिं०] १. जिलाना । जीवित रखमा । पालना । की बनावट कुछ ऐसी होती है कि यह जब चाहे उसे बद कर पोसना । २. माहार। चारा । ३ जीविका । ४ साहस । सकता है। जीम इसकी इतनी लबी होती है कि यह उसे हियाव । मुंह से सत्रह इच बाहर निकाल सकता है। इसके शरीर पर क्रि० प्र०-डासना ।-देना । हिरन के से रोएं मोर बड़ी बड़ी वित्तियां होती हैं। यह जियारी@-सहा श्री. [?] १ जीवन । जिंदगी। उ०-उनको ताड़ों और खजूरो की पत्तियां खाता है। ले मान जियो याही में पमान भयो दयो जो 4 जाइ तो ही जिरायता-सझा स्त्री॰ [हिं.] दे० 'जिरामत' । तो जियारी है।-प्रिया० (शब्द०)। २ जीविका । उ०-- जिरिया-सा पु[हिं० जीरा] एक प्रकार का घान जो जीरे की राका पति बाँका तिया बसे पुर पहर मे उर में न चाह ने तरह पतला पोर लवा होता है। रीति का च्यारिये । करीन बीन करि जीविका नवीन फर, जिलवा-वि० [प्र. जल्वह ] मात्मप्रदर्शन । हावभाव । शोभा । घरे हरि रूप हिये, ताही सो जियारियै ।-प्रिया (शब्द०)। 'उ०-नरेशों की समान लालसा पग पग पर अपना जिलवा ३ जीवट । जिगरा । हृदय को ध्दता ! साहस । दिखाती थी।-काया०, पृ. १७०। जियास-प्रशा पुं० [हि.की विश्वास । घेय । उ०-सोम फमधा जिला-साली14.11.चमक दमका पोप। पानी सांपनी उर अपनी जियास । --रा० रू०, पृ० २९७ ) मुहा०—जिला करना या देना = किसी वस्तु को मोजकर तथा जिरगा-सझा ० [फा० जिरगह, ] १ । गरोह । २. महली । रोगन प्रादि चढ़ाकर चमकाना। सिकली करना । जैसे,- ३ पठानो को पचायत (को॰) । हथियारों पर जिला देना, तलवार पर जिला देना। जिरण-मया पुं० [सं०] जीरा [को०] । यौ०-जिलाफार - सिकलीगर । जिरह-संमा पुं० [अ० वरह ] १. हुज्जत । स्खुचुर । २. फेर फार २. मांजकर तथा रोगन मादि चढ़ाकर चमकाने का कार्य । के प्रश्न जिनसे उत्तरदाता घबड़ा जाय और सच्ची वात छिपा झलकाने की क्रिया। पोप देने का कार्य । न सके। ऐसी पूछताछ जो किसी से उसकी कही हुई घाती जिला--सपा पुं०1० जिलम]. प्रांत । प्रदेश । २ भारतवर्ष की सत्यता की जांच के लिये की जाय। में किसी प्रांत का वह भाग जो एक कलक्टर या डिप्टी क्रि० प्र०—करना ।—होना । कमिश्नर के प्रवध में हो। ३. किसी इलाके का छोटा विभाग मुहा०-जिरह काढ़ना या निकालना = खोद विनोद करना । या मश। बहुत अधिक पूछताछ करना । बात में बात निकामना । खुचुर यो०-जिलावार । निकालना। ४ किसी जमींदार के इलाके के बीच बना हुपा वह मकान ३. वह सूत की डोरी जो सर में ऊपर नीचे वय के गांछने के जिसमें वह या उसके प्रादमी तहसील वसूल भादि के लिये लिये लगी रहती है (जुलाहे)। ४. चीरा । घाव (फो०)। ठहरते हों। ४-१३