पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१२४

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___ जोर १७६४ जीस्थिमृतिका जीर-वि० क्षिप्र । तेज | जल्दी चलनेवाला। पजाव के करनाल जिले में अधिक होता है। इसके दो भेद जीर-संज्ञा पुं० [फा० जिरह ] जिरह। कवच । १०-कूडल के हैं-एक रमाली, दूसरा रामजमानी। ऊपर कडाके च ठौर ठौर, जीरन के ऊपर सटाके खहगान जीरीपटन-समा पु० ०] एक प्रकार का फूल । के । भूपण ( शब्द०)। जीर्ण-वि० [सं०] १. वहुत बुड्डा । वुढापे से जर्जर । २. पुराना । जीर' -वि० [सं० जीणं ] पुराना । नजर । १०-मनह मरी बहुत दिनों का । जैसे, जीएं ज्वर । ३. जो पुराना होने के इफ वर्ष की भयो तासु तन जीर। करपत कर महि पर गिरी कारण टूट फूट गया होगा। कमजोर हो गया हो। फटा गयो सुखाय शरीर ।-रघुराज (शब्द०)। पुराना । उ०-का क्षति लाभ जीर्ण धनु तोरे ।---तुलसी जीरक'-संश पुं० [सं०] जीरा । (शब्द०)। जीरक-वि० [फा० जोरफ ] १. प्रवीण । प्रतिमाशाली । २ यो०-जीरणं शीर्ष - फटा पुराना टूिटा फूटा। होशियार । चालक । ४. पेट में अच्छी तरह पचा हुमा । जठराग्नि में जिसका परिपाक जीरण-समा पु० [ मं० ] जीरा । हुधा ही । परिपक्व । जैसे,--जीणं अन्न, अजीणं । सीरण -वि० [सं० जीणं] दे० 'जीर्ण। जीर्ण-सहा पुं०१ जीरा । २ बूढा व्यक्ति (को०)। ३. वृक्ष (को०)। जीरह-समापुं० [फा० जिरह ] । अंगप्रारण। सन्नाह । उ0- ४ शिलाजतु (को०) १५ वृद्धावस्था । वाघंक्य (को०)। . जान तणी साजति करउ । जीरह रगावली पहहरज्यो टोप। जीर्णक-वि० [सं०] प्राय शुष्क या कुम्हालाया हुमा [को०] । -~वीसल. रास०, पृ० ११ । जीर्णज्वर-मझा पुं० [सं०] पुराना बुखार । वह ज्वर जिसे रहते जीरा-मशा० [म जीरक, तुलनीय फा० जीरह. ] डेढ़ दो हाथ बारह दिन से मधिक हो गए हों। ऊँचा एक पौधा । विशेष-किसी किसी के मत से प्रत्येक ज्वर अपने प्रारम के दिन विशेप-इसमें सौंफ की तरह फूलों के गुच्छे संबी सीकों में से ७ दिन तक तरुण, १४ दिनों तक मध्यम मौर २१ दिनों के लगते हैं। पत्तिया वहुत बारीक पौर दूब की तरह लवी होती पीछे, जब रोगी का शरीर दुदंन और रूखा हो गय तथा है । बंगाल और मासाम ने छोड भारत में यह सर्वत्र मधि- उसे क्षुषा न लगे और उसका पेट सदा भारी रहे 'जीणं' कता से वोया जाता है। लोगों का अनुमान है कि यह पश्चिम कहलाता है। के देशों से लाया गया है 1 मिन्न देश तथा भूमध्य सागर के माल्टा भादि टापुमों में यह जगली पाया जाता है। माल्टा जीर्णता-सम्मा बी० [सं०] १. वुढ़ापा । चुढाई । २ पुरानापन । का जीरा वहत मच्छा और सुगचित होता है। जीरा कई जीणेदारु-सभा पुं० [सं०] बुद्धदारक वृक्ष । विधारा। प्रकार का होता है पर इसके दो मुख्य भेद माने जाते है- जीर्णप्रत्र-सशा सं० [सं०] पट्टिका लोघ्र । पठानी लोघ । सफेद और स्याह अथवा श्वेत और कृष्ण जीरक । सफेद या जीर्णपर्ण-समा पु० [सं०] १ पदव का पेड़। २ पुराना पत्ता (को०)। साधारण जीरा भारत में प्राय सर्वत्र होता है, पर स्याह जीरोजी-सचा त्री० [सं० जीएफजी] विधारा [को०] । जीरा जो अधिक महीन और सुगधित होता है। काश्मीर लद्दाख, बलूचिस्तान तथा गढ़वाल मौर कुमाऊँ से आता है। जीणबुध - सज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'जीरांपर्ण' । काश्मीर पर पफगानिस्तान में तो यह सेतो में और तृणों के जीर्णवन-सा पुं० [सं०] वैशात मणि । साय उगता है। माल्टा मादि पश्चिम के देशों से जो एक जोर्णवस्त्र'-सधा पु० [सं०] फटा पुराना कपडा [को०) प्रकार का सफेद जीरा पाता है वह स्याह जीरे की जाति का जोगवस्त्र'-वि० जो फटे पुराने कपडो मे हो (को०। है और उसी की तरह छोटा और तीन गघ का होता जोगवाटिका'-सा पु. [१०] खंडहर (को०)। है। वैद्यक में यह क्ट्ट. उष्मा, दीपक तथा पतीसार, गृहणी, जीर्णा-वि० [सं०] वृद्धा । बुढ़िया। कृमि और कफ वात को दूर करनेवाला माना जाता है। पर्या०–जरण । प्रनाजी। फरणा। जीर्ण। जीर! दीप्य । पास्थिमृत्तिका-सबा श्री० [सं०] हड्डी को गला सडाकर जीरण । प्रजाजिका ! पतिशिख । मागघ । दीपक ।। ___ बनाई हुई मिट्टी। मुहा०-ऊँट के मुंह में जीरा-खाने की कोई चीज मात्रा में विशेष-ऐसी मिट्टी बनाने की विधि शब्दार्थ चितामधिनामक बहुत कम होना। , प्रथ में इस प्रकार लिखी है, जहाँ शिलाजीत निकलता हो २. जीरे के माकार के छोटे छोटे महीन मौर लवे बीज । ३

  • महा एक.गहरा गड्ढा खोदे मोर उसे जानवरो पौर मनुष्यों की

फूलों का फेसर । फूलों के बीज का महीन सूत । रदे। ऊपर से सज्जीसार नमक, गधक मौर जीरिका-सा भी० [सं०] वशपत्री नाम की घास । महीने तक शलता जाय। इसके पीछे फिर पत्थर जीरी-समा पु० [हिं० जीरा ] एक प्रकार का धान जो प्रगहन मे तीन वर्ष मे ये सब वस्तुएं एक सिम तैयार होता है। उस सिल को लेकर बुकनी कर विशेष--इसका चावत बहुत दिनों तक रह सकता है। ऐसे पात्र में भोजन करना