पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१२३

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जीभा १७६८ जीर' मुहाव-जीभ करना बहुत घढकर बोलमा । ठिठाई से उत्तर शाल्मली द्वीप के एक राजा जो वपुष्मत् के पुत्र थे। १३ देना । जीभ खोलना-मुंह से कुछ बोलना । शब्द निकालना । शाल्मली द्वीप के एक वर्ष का नाम । १४. एक प्रकार का जैसे, अब जहाँ जीभ खोली कि पिटे। जीम चलना=भिन्न दडक धुत्त जिसके प्रत्येक चरण में दो नगण मौर ग्यारह रगण भिन्न वस्तुमो का स्वाद लेने के लिये जीम का हिलना डोलना । होते हैं । यह प्रचित के प्रतर्गत है। स्वाद के भनुभव के लिये जिह्वा चपल होना । चटोरेपन की जीसतमत्ता-सञ्ज्ञा स्त्री०म० मेघ से उत्पन्न मोती। इच्छा होना। 30-जीभ चले बलमा धले वहै जीभ जरि विशेष-रत्नपरीक्षा विषयक प्राचीन प्रथो में इस प्रकार के मोती जाय।-(शब्द०)। जीभ थोड़ी करना-कम बोलना । बकवाद का वएंन है। वृहत्साहिता. अग्निपुराण, गरुडपुराण, युक्ति- कम करना। अधिक न बोलना। उ०—मेरो गोपाल तनक कल्पतरु मादि प्रथों में भी इस मुक्ता का विवरण मिलता है, सो कहा करि जानै दधि की चोरी। हाथ नपावति मावति पर ऐसा मोती माजतक देखा नहीं गया। वृहत्साहिता ग्वालिन जीभ न करही थोरी।-सूर (शब्द०)। जीम मे लिखा है कि मेघ से जिस प्रकार मौले उत्पन्न होते हैं उसी निफालना = (१) जीभ बाहर करना । (२) जीभ खीचना । प्रकार यह मोती भी उत्पन्न होता है। जिस प्रकार भोले जीभ उखाट लेना। जीभ पडना=बोलने न देना। बोलने से बादल से गिरते हैं उसी प्रकार यह मोती भी गिरता है पर रोकना । जीभ बढ़ाना == चटोरपन की आदत होना। जीभ देवता लोग इसे बीच ही में उसा लेते हैं। साराश यह है कि बद होना - बोलना बद करना । जबान न खोलना। चुप यह मुक्ता मनुष्यो को अलभ्य है । न देखने पर भी प्राचीन रहना । जीस हिलाना = मुंह से कुछ न बोलना। छोटी प्राचार्य लक्षण बतलाने से नहीं चूके हैं और उन्होंने इसे जीम- गलशुसी। किसी की जीभ के नीचे जीभ होना= मुरगी के अहे की तरह गोल, ठोस और वजनी बतलाया है। किसी का अपनी कही हुई बात - को बदल जाना । एक बार इसकी काति सूर्य की किरण के समान कही गई है। इसे यदि कही हुई बात पर स्थिर न रहना । तुच्छ से तुच्छ मनुष्य कभी पा जाय तो सारी पृथ्वी का राजा २ जीभ के भाकार की कोई वस्तु । जैसे,—निव। हो जाय । महा-कलम की जीभ - कलम का वह भाग जो छीलकर जीमतवाहन-सहा पुं० [सं०] १ इंद्र। २ शालिवाहन राजा नुकीला किया रहता है। का पुत्र । मोमा-सफा पुं० [हिं० जीभ ] १ जीम के माफार की कोई वस्तु विशेष-आश्विन कृष्ण ८ को पुत्रकामनावाली स्त्रियाँ इनका से, कोल्हू का पच्चर। २ चौपायों की एक बीमारी जिसमें पूजन करती हैं। उनकी जीम के कोटे सूज या बढ़ जाते हैं और उनसे खाते ३ जीमूतरेतु राजा का पुत्र जो प्रसिद्ध नाटक नागानद का नायक नहीं बनता। वेरुखी। अवार। ३ बैलों की आँख को एक है। ४ धर्मरत्न नामक स्मृतिसग्नहकार । बीमारी जिसमे प्रांख का मांस बढ़कर लटक माता है। जीमूतवाहो-सबा . [सं० जीमूतवाहिन् ] धूम । धुर्वा । जोमी-सज्ञा स्त्री० [हिं० जीम ] घातु को बनी एक पतली लचीली पोर धनुषाकार वस्तु जिससे जीभ छीलकर साफ करते हैं। जीय -सा पुं० [हि० दे० 'जीव', 'जी'। २ मैल साफ करने के लिये जीम छीलने की किया। मुहा०-जीय धरना = दे० 'जी मे 'धरना' । उ-माधव जू जो क्रि०प्र०-करना। जन तें विगरे । तर कृपालु करुणामय केशव प्रभु नहिं जीय ३. निव । ४. छोटी जीम । गलशुद्धी । ५ चौपायों का एक रोग। घरे ।—सूर (शब्द०)। दे० 'जीमा' 1६ लगाम का एक भाग । जीयट-सच्चा पुं० [हिं० दे० 'जीवट। , जीभी चाभा-सहा . [ हिं. जीभ चामना] पौपायो का एक जीयति@f-सञ्ज्ञा श्री० [हिं० जीना जीवन । जिदगी । - रोग। दे० 'जीमा। तोहि सोहि भामिनि सो पाखें मिली रहें जीयति को यहै जीम-सचा पुं० [सं० जीमूत (-पोषण करनेवाला), 1 पेडों भौर लहा।-हरिदास ( शब्द०)। पौधों के घड, शाखा पौर टहनी मादि के भीतर का गूदा। जीयदान-सक्षा पुं० [सं०जीवदान] प्राणदान । • जीवनदान ! सीमना-क्रि० स० [सं० जेमन ] भोजन करना । आहार करना । प्राणरक्षा | 10-चालक काज धर्म अनि छोड़ी राय न ऐसी खाना । 30-काया फिर काशी भया राम जो भया रहीम कीजै हो। तुम मानी वसुदेव देवकी जीयदान इन दीजे हो।-- मोटा धुन मैदा भयो बैठि कवीरा जीम !---कबीर (शब्द०)। सूर (शब्द॰) । जीमूत- सज्ञा पुं० [सं०] १ पर्वत । २ मेघ । बादल । ३. मुस्ता। जीये--वि० [प्रा० जेंव, जेम ] दे० 'जिमि' या 'ज्यों। उ०- मोथा । नागर मोथा। ४. देवताड़ वृक्ष। ५ ।६ पोषण जीये तेल तिलग्नि मे जीये गधि लिन । -संतवाणी, करनेवाला । रोजी या जीविका देनेवाला । ७ घोषा लसा । ८. सूर्य । ९. एक ऋषि का नाम जिनका उल्लेख महाभारत जीर-सचा पुं० [सं०] १ जीरा । २. फूल का जीरा । फेसर। में है। १०. एक मल्ल का नाम जो विराट की सभा में रहता उ.-रघुराज पंकज को जीर नहि बेधे हरि धरौं किमि धीर पापौर भीम के द्वारा मारा गया था। ११. हरिबंश के पावै पीर मन मोर है।-रघुराज (शम्द०)। ३. खड्ग। अनुसार दशाह के पौत्र का नाम । १२ ब्रह्मांड पुराण में तलवार । ४ मणु।