पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१२६

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जीवनधर १७७२ जीवन्मुख उ.-सुकवि सरद नम मन उड़गन से। राम भगत जन जीवनाधार-सपा ० [सं०] जीवन का अवलब या सहारा को जीवनधन से ।-तुलसी (शब्द॰) । जीवनाधार-वि० परम प्रिय । प्राणाधार [को०] 1 जीवनधर-वि० [सं० जीवन+घर ] जीवनरक्षक । जीवनदायक जीवनातर-क्रि० वि० [सं० जीवनान्तर ] जीवन के बाद। जीवनप्रद [को॰] । जीवनावास-वि० [सं०] जल में रहनेवाला। जीवनघर--सा पुं० जलधर । मेघ । चादल [को०] । जीवनावास--सचा पुं०१ वरुण । २ देह । शरीर । जीवनवूटी-सज्ञा झी० [सं० जीवन + हि० वूटी ] १ एक पौधा जीवनि -सा स्त्री० [से०जीवनी] १. सजीवनी बूटी । २ जिलाने- या बूटी । संजीवनी। वाली वस्तु । प्राणाधार । ३. अत्यत प्रिय वस्तु । उ०-गहली विशेष-इसके विषय में प्रसिद्ध है कि यह मरे हुए आदमी को गरव न कीजिए, समय सुहागिनि पाय। जिय की जीवनि जेठ भी जिला सकती है। यो, माह न छाँह सुहाय ।-विहारी ( शब्द.):- २ अति प्रिय वस्तु या व्यक्ति । जीवनी' मा की० [सं०] १ काकोली । २. तिक्त जीवती । डोटी । जीवनमरण-सज्ञा पुं० [ म० ] जीवन भौर मरण । जिंदगी ३ मेद । ४. महामेद । ५ लूही। पौर मौत। जीवनी-सदा जी० [सं० जीवन+ हिं० ई (प्रत्य॰)] जीवन भर का जीवनमुक्त-वि० [सं० ] जो जीवन में ही सर्वधनो से मुक्त हो वृत्तात । जीवनचरित् । जिंदगी का हाल । चुका हो [को०] । जीवनीय-वि० [सं०] १ जीवनप्रद। २ जीविका करने योग्य । बरतने योग्य । जीवनमुक्ति-सधा प्रो० [सं० ] जीवनकाल मे ही प्राप्त निव- घता [को०]. जीवनीय–समा पु०१ पल । २ जयती वृक्ष । ३ दूध (दि०)। जीवनमूरि-सज्ञा स्त्री० [सं० जीवन+मुल] १ सजीवनी नाम की जीवनीयगण-सहा पुं० [सं०] वैद्यक में बलकारक मौषधियों का जडी । २ प्रत्यत प्रिय वस्तु या व्यक्ति । प्यारी । प्राणप्रिया। एक वर्ग । जीवनमूलि सज्ञा श्री० [सं० जीवनमल ] सजीधनी वटी विशेष-इसके प्रतर्गत प्रष्टवर्ग परिणनी, जीवंती, मथक और जीवन उ.--जीवन को ले का करौं, पायौ जीवनमूलि । भक्ति को है। वाग्भट्ट के मत से जीवनीय गए ये हैं---जीवंती, काकोली, सार यह।-नद० प्र०, पृ. १८५। मेध, मुद्गपणी, माषपणी, भाषभक जीवक और मधूक । जीवनयापन--सचा पुं० [सं० जीवन यापन 1 जीवन निर्वाह जीयनीया-सज्ञा स्त्री० [सं०] जीवती लता। जीवन व्यतीत करना। जीवनेत्री • सभा श्री० [स०] सैहली वृक्ष। जीवनवृत्त-सबा पुं० [स] जीवनचरित् । जीवनवृत्तांत । जीवनी। जोवनोत्तर-वि० [सं०] जीवन के बाद का। जीवनवृत्तात--संशा पुं० [सं० जीवनवृत्तात ] जीवनचरित।जिदगी जोक्नोत्सगे-समय पु० [सं० जीवन+उत्सर्ग ] जीवन को बलि । भर का हाल ! जीवनी। जीवन का दान। उ.-यौवन की मांसल, स्वस्य गघ नव जीवनवृत्ति-सचा त्री० [ सै० जीविका ] जीवनोपाय । प्राणरक्षा के युग्मों का जीवनोत्सर्ग ।-युगात, पु० ४७ 1 लिये उद्यम । रोजी। जीवनोपाय-सज्ञा पुं० [सं०] जीवनरक्षा का उपाय । जीविका । जीवनसंग्राम-सज्ञा पुं० [सं० जीवन+ सग्राम ] जीवन की सघर्षमय दृत्ति। रोजी। परिस्थितियो का सामना । सघर्षों में जीवनयापन का प्रयत्न । जीवनौषध-सद्या स्त्री० [सं०] वह भौषध जिससे भरता हमा भी जीवनहेतु---सा पुं० [सं० ] जीवन रक्षा का साधन । जीविका। जी जाय। रोजी। जीवन्मुक्त-वि० [सं०] जो जीवित दशा मे ही शात्मज्ञान द्वारा विशेष-गरुडपुराण में दस प्रकार की जीविका बतलाई गई सासारिक मायावंधन से छूट गया हो। है--विद्या, शिल्प, भृति, सेवा, गौरक्षा, विपरिण, कृषि, वृत्ति, विशेप-वेदातसार में लिखा है कि जिसने यख चैतन्य स्वरूप भिक्षा भोर कुशीद । ज्ञान द्वारा प्रज्ञान का नाश करफे मात्मरूप प्रखड ब्रह्म का जीवनांत-मसा पुं० [सं०बीवनान्त ] जीवन की समाधि। मरण। साक्षात्कार किया हो भोर जो ज्ञान तथा प्रज्ञान के कार्य, पाप पुण्य एव सराय, भ्रम.ग्रादि के बंधन से निवृत्त हो गया हो वही मृत्यु (को०] । जीवन्मुक्त है । सास्य और योग के मत से पुरुप भौर प्रकृति के जीवना'.--सहा त्री० [सं०] १, महौषध । २ जीवती लता । उ०-- जीवत मिरनक होइ रहै, तजे खलक की पास ।-सत्र- बीच विवेक ज्ञान होने से जीवन्मुक्ति प्राप्त होती है अर्थात् जब मनुष्य को यह ज्ञान हो जाता है कि यह प्रकृति जड, परिणा- वारसी०, पृ० ४८०। सिनो और त्रिगुणमयी है और मैं नित्य पौर चैतन्यस्वरूप हूँ जीवना --कि०प० [हिं०] दे० 'जीना'। तब वह जीवन्मुक्त हो जाता है। जीवना-क्रि० स० दे० 'जीमना' ।। जीवन्मृत-वि० [सं०] जो जीते ही मरे के तुल्य हो । जिसका जीना जीवनाघात-मज्ञा पुं० [सं०] विप। प्राणघाती जहर [को०] । मौर मरना दोनों बरावर हो। जिसका जीवन सार्थक पौर