पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१२७

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जीवा जीवन्यास सुखमय न हो। उ०--यहाँ अकेला मानव ही रे चिर विपरण प्रेम पय सींच्र्यो पहिल ही सुभग जीवरि दयो।-सूर जीवामृत ।--ग्राम्या, पु. १६ । विशेष-जो, अपने कर्तव्य से विमुख और मकर्मण्य हो, जो सदा जीवल-वि० [सं०] १ जीवनमय । २. जीवनपूर्ण। ३. सजीव ही कष्ट भोगता रहे, जो बडी कठिनता से अपना पोषण कर करनेवाला । सप्राण करनेवाला [को०] । सकता हो, जो अतिथि प्रादि का सत्कार न करता हो, ऐसा • एसा जीवना-सहा स्त्री० [सं०१ ] सेहली। २. सिंहपिप्पली। मनुष्य धर्मशास्त्र में जीवन्मृत कहलाता है। जीवलोक-सवा पुं० [सं०] भूलोक । पृथ्वीतल । मत्यलोक । जीवन्यास-सहा पुं० [सं०] मूर्तियों की प्राणप्रतिष्ठा का मत्र। जीववत्सा-सना सी० [सं०] वह स्त्री जिसका बच्चा जीवित जीवपति --सा पुं० [सं०] धर्मराज । हो [को०] 1 जीवपति:--सका स्त्री० वह स्त्री जिसका पति जीवित हो। सधवा जीचवल्ली-सहा या [सं०] क्षीरकाकोली। ली। सौभाग्यवती स्त्री। सुहागिनी स्त्री। जीवविज्ञान-सक्षा पुं० [ सजीव विज्ञान] जीव जंतुपों विषयक जीवपत्नी-सशौ० [सं०] वह स्त्री जिसका पति जीवित हो। शारीरिक विज्ञान [को०] । सधवा स्त्री। जीवपत्र-सचा [सं०] नया पत्ता [को० । .जीवविपय-सा[सं०] जीवा या जीवन का विस्तार [को०]। जीवपत्री-सचा बी० [सं०] जीवती। जोववत्ति-सश सी० [सं०] जीव का गुण या व्यापार । २. पशु जीवपितृक--वि० [सं०] जिसका पिता जीवित हो [को० । पालने का व्यवसाय । जीवपुत्रक-सधा पु०[सं०1१ पुत्रजीव वृक्ष। जियापोता का पेड। जीवशाक-सक्षा पुं० [सं०] एक प्रकार का शाक जो मालवा देश २ इंगुदी का वृक्ष। में अधिक होता है । सुसना । जीवपुत्रा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] वह स्त्री जिसका पुत्र जीवित हो [को०] । जीवशुक्ला--सहा श्री [सं०] क्षीरकाकोली। जोवपुष्पा-सहा स्त्री॰ [ में ] बृहज्जीवती । वडी जीवंती ! जीवशेष-वि० सं०] जिसका केवल प्राण बचा हो। प्राणशेष । जीवप्रिया-सच्चा स्त्री॰ [ से० ] हरीतकी। हृद । [को॰] । जीवचंद -सञ्ज्ञा पुं० [सं० जीववन्धु ] दे॰ 'जीवबघु'। जीवशोणित-सहा पुं० [सं०] सजीव या स्वस्थ रक्त [को०] । जीवधु-समा पुं० [सं० जीवबन्धु ] गुन दुपहरिया। वधुजीव । जोवश्रेष्ठा-सय सी० [सं०] जीवभद्रा [को०। जीवसंक्रमण-सना पुं० [सं० जीवसङ्क्रमण ] जीव का एक जीवलि-सशास्त्री० [सं० ] पशु मादि को वलि (को०] । शरीर से दूसरे शरीर में गमन । जीववद्धि-मुझ स्त्री० सं० जीव+बुद्धि ] सामान्य प्राणियो की जीवसंज्ञ-सन पुं० [सं०] कामवृद्धि वृक्ष । समझ लौकिक बुद्धि। उ०-परि छिन एक मे जीवबुद्धि सो जीवसाधन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] धान्य । धान । र बिगरि गई।-दो सौ. बावन०, भा० १, पृ० १३५॥ जीवसत-सा पुं० [सं० जीव+सुत ] वह जिसका पुत्र जीवित जीवभद्रा-सचा स्त्री० [सं०] जीवती लता ! हो [को०] । जीवमदिर-सच्चा पुं० [सं० जीवमन्दिर ] देह । शरीर (को०) । जीवसुता-सहा श्री० [सं०] वह स्त्री जिसका पुत्र जीता हो। जीवमातृका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] कुमारी, धनदा, नदा, विमला, मगला, जीवसू-सझा श्री० [सं०] वह स्त्री जिसकी सतति जीती हो । चला और पना नाम की सात देवियों जो जीवो का पालन जीवत्तोका। पौर कल्याण करती हैं। (विधान पारिजात) । जीवस्थान-सहा पु० [सं०] वह स्थान जहाँ जीव रहता है। मम- जीवयाज-सज्ञा पुं० [सं०] पशुओं से किया जानेवाला यश । स्थान। हृदय । जीवयोनि-सा श्री[सं०] सजीव सृष्टि । जीवजंतु । जानवर। जीवहत्या-संशा मौ• [सं०] १ प्राणियों का वध । २ प्राणियों जीवरक-सञ्चा पुं० [सं०] स्त्रियो,का रज जो गर्भधारण के उपयुक्त। के वध का दोष । हुमा हो। , विशेष-सुथत के अनुसार यह पचमौतिक होता है अर्थात् जिन जावाहसा-सक्षा जा [सं०] प्राणियों की हत्या। जीवों का जीवहीन-वि० [सं०] १ मृत। जीवनरहित । २. प्राणहीन । पचमूनों से जीवों की उत्पत्ति होती है वे इममें होते हैं । हो जहाँ कोई जीव न हो [को०] । जीवरा -सा पुं० [हिं०] जीव । 'प्राण। उ०-साई सेती . चोरिया. चोरा सेती जभी तब जानेगा जीवरा मार परगी जीवांतक-समा पुं० [सं०जीवान्तका, जीवों का तुभम ।-कबीर (शब्द०)। २ व्याघ । बहेलिया । जविरिण-सधा पं० [सं० जीव या जीवन ] जीवन प्राणघारण जीवा-यक्षा स्त्रो० [सं०] १. वह सीधी रेखा जोर सिरे से दूसरे सिरे तक हो। ज्या। २ धनुष की होरी। की शक्ति) उ०-बी मन माली मदन चुर मालबाल बयो।