पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१५६

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जोतनी १९०२ बोनि खेती के लिये जमीन की मिट्टी खोदना । हुल चलाना जैसे, खेत पावक पवन मणि पप्नग पतग पितृ जेते जोतिवंत जग जोवना। ज्योतिषित गाए हैं।-केशव (शब्द०)। जोतनो-मक्षा श्री० [हिं० जोत या जोतना1१ वह छोटी रस्सी जोतिष-समा पु.हि.] दे० 'ज्योतिष' । जो जुए मे जूते हुए जानवर के गले के नीचे दोनों मोर बंधी जोतिषटोम-सा पुं० [सं० ज्योतिष्टोम] दे० 'ज्योतिटोम'। होती है । २ जुताई। जोतने का काम । जोतिषो-सपु० [हिं०] दे॰ 'ज्योतिषी'। जोवसी-सा पु० [ सं० ज्योतिषी ] दे० ज्योतिषी' जोतिस - सचा पुं० [हिं॰] दे० 'ज्योतिष । जोताँत-सबा श्री.हि. जोतना ] खेत की मिट्टी की ऊपरी तह। जोतिस्ना-सबा खी० [हिं०] दे० 'ज्योत्स्ना-प्रने०, पृ० १०१॥ (कुम्हार)। जोतिहा--सचा पु० हिं० जोतता] जोतनेवाला किसान । जोता । जोता-सञ्चा पुं० [हिं० जोतन। ] १ जुमाठे में बंधी हुई वह पतली जोती - पक्षा धी० [हिं०] १ दे० 'ज्योति' । उ०-बदन पै सलिल रस्सी जिसमें वैलो की गरदन फंसाई जाती है । २ जुलाहो की फन मगास जोती। इदु सुपा तामे मतों ममी मय मोती। परिभाषा में वे दोनों ठोरिया जो करघे पर फैलाए हुष ताने -नद.प्र..१० ३४७ 1 २.३. 'जोति"। के मंतिम सिरे पर उसके सूतो को ठीक रखनेवाली कमाषी .. जोती --सका बी० [हिं० जोतना] १ तराजू के पल्लों की डोरी को या मैंजनी के दोनो सिरों पर बंधी हुई होती हैं। इन दोनो है हाँडी से बँधी रहती है । जोत । २ घोडे की रास । लगाम । होरियो के दूसरे सिरे पापस में भी एक दूसरे से बंधे पौर ३ पक्की मे की वह रस्सी जो वीच की कीली और हत्ये में पीछे की पोर तने होते हैं । ३ करघे में सूत की वह डोरी चंधी रहती है। इसे कसने या ढीली करने से चक्की हनकी या जो बरौछी मे बँधी रहती है। ४ वह बहुत बड़ी घरन या मारी चलती है और चीज मोटी या महीन पिसती है । ४ वे शहतीर जो एक ही पक्ति में लगे हुए कई सौ पर रखी जाती रसिग जिनसे खेत में पानी खींचने की दोरी बंधी रहती है। है और जिसके ऊपर दीवार उठाई जाती है । ५ वह जो हल जोतता हो । खेती करनेवाला । जैसे, हरजोता। जोत्सना-सका स्त्री० सं० ज्योत्स्ना] दे॰ 'ज्योत्स्ना' । जोताई-सचा श्री• [ हि. जोतना+माई (प्रत्य०) १ जोतने का जोध -सधा पुं० [हिं०] दे० 'योद्धा'। उ०--कवि लक्खन प्रवला काम । २. जोतने का भाव । ३ जोतने की मजदूरो। कहत, सबला जोध कहत ।-हम्मीर रा०, पृ० २७ । जोधन-सशास्त्री० [सं० योग+धन] वह रस्सी जिससे बैल के जुए जोतात-समा स्त्री॰ [हिं०] दे० जोतात'। की ऊपर नीचे की लकडियां बंधी रहती हैं। जोति-सक्षा की[सं० ज्योति ] १.धी का वह दिया जो किसी जोधा -सक्षा पुं० [हिं०] १. 'योद्धा'। उ.-(क) प्रगट कपाट देवी या देवता मादि के भागे अथवा उसके उद्देश्य से जलाया। बड़े दीने है बह जोधा रखवारे ।-सूर (पारद०)। (ख) जाता है। सूर प्रभु सिंह ध्वनि करत जोधा सकल जहाँ तह करन क्रि० प्र०-जलाना !-बारना । लागे लराई । - सूर (शब्द॰) । यौ०-जोतिभोग =किसी देवता के सामने जोति जलाने और सोनार र जोधा-सचा पुं० [हिं०] जोता नाम की रस्सी जो जुमाठे में बंषी भोग लगाने मादि की क्रिया। रहती है मौर जिसमें वैों के सिर फंसाए जाते हैं। २ दे. 'ज्योति' । जोधार -सञ्ज्ञा पुं० [सं० योद्धा] योता। शूर । उ०-नर्फ कुर जोति१२--सहा स्त्री० [हिं. जोतना] जोतने बोने योग्य भूमि । मे ना पर जीतू मन जोधार। ऐसौ मुझ उपदेश दौ सतगुर उ.-एपै तजि देवो क्रिया देखि जग बुरो होत जोति बह दई कर उपकार ।-राम धर्म०, पृ. ३१३ । दाम राम मति सानिए।-प्रिया. (शब्द०)। जोन-सा बी० [सं० योनि] दे० 'योनि'। जोतिक -सचा पुं० [हिं०] ३० 'ज्योतिष' । उ०-विद्या पदेउ करन . जोनराज-सज्ञा पुं० [देश॰] राजतरगिणी के द्वितीय लेखक जिन्होंने सगीता । सामुद्रिक जोतिक गुन गीता । --माधवानस०, स० १२०० के बाद का हाल लिखा है। इनका लिखा हुमा पृ० २०८1 'पृथ्वीराजविजय' नामक एक य य मौर 'किरातार्जुनीय' की एक जोतिखो -सञ्ज्ञा पुं० [हिं॰] दे॰ 'ज्योतिषी'। टीका भी है। जो - साहि०१ ज्योतिप शाल। उ०-- इह बात जोसरी-सञ्ज्ञा स्त्री. [हिं०] ज्वार नामक प्रश्न । जोतिग घटै मनस घूम पिरताव । -पु. रा०, ३३१३ । २ . 'जोना-क्रि० स० [हिं०] देखना। उ.-रबारी ढोलउ कहा ज्योतिषी । उ०-जोगनेर जोतिग कहै, प्रभु सु होय प्रथुराध । करहन माछउ जोह ! –ढोला०, दु. ३.६। (ख) प्रेम के पु. रा०, ३३१३ । पथ सुप्रीति की पैठ में पैठत हो है दसा यह जो ले। जोतिमय कु.-वि० [हिं०] दे० 'ज्योतिर्मय' । उ०-रतनपुत्र नृपनाथ -पाकर ग्र०, पृ०१७३ । रतन जिमि ललित जोतिमय ।-मति. ०, पृ० ४१४ । जोनि+- सज्ञा स्त्री० [सं० योनि] दे० 'योनि'। उ०-जेहि जेहि जोतिलिंग-समा पु० [हिं०] दे० 'ज्योतिलिंग'। जोमि फरम बस भ्रमही। तह तह ईसु देउ यह हमही । 'जोतिबंत-वि० [सं० ज्योतिवा] ज्योतियुक्त। चमकदार । उ०- -मानस, २।२४।