पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१५७

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बोनी १८०३ सोनी -सका बी० [हिं०] दे० 'योनि'। उ०—कवन पुरुप जोनी बिना कवन मौत बिना काल । -रामानद०, पृ० ३३ । जोन्ह -सदा भी० [सं० ज्योत्स्ना , प्रा. जोएह] १ जन्हाई। पद्रिका । चायनी । ज्योत्स्ना । २ चद्रमा । जोन्हरो -सबा और वषी जोएगलिया] ज्वार नामक मान । जोन्हाई -सका श्री० [सं० ज्योत्स्ना. प्रा० जोरहा] १ चत्रिका । चादनी। बद्रज्योति । २. चंद्रमा। ओन्हा-सका पुं० [हिं०] ज्वार नामक अन्न । जोप - सच्चा पुं० [हिं॰] दे॰ 'यूप' । जोपे--मध्य० [हि. जो+पर अपवा सं० यद्यपि] १ यदि। । मगर । २ यद्यपि। मगरचे।। जोफ -सबा [म. जोफ़] १ बुढ़ापा । वृद्धावस्था। २ सुस्ती। निजता । कमजोरी । नाताकती। यो०-जोफ जिगर-(१) जिगर का ठीक ठीक काम न करना । (२) जिगर या यकृत की कमजोरी । जोफ दिमाग = दिमाग की कमजोरी । जोफ मेदा=पाचन की कमजोरी। मंदाग्नि । प्रजीणं। सोवन-सा पु० [सं० यौवन] १ युवा होने का भाप । यौवन । उ.--वन जोधन पभिमान अल्प जल कहैं कुर मापुनी वोरी। सूर (शब०)। मुहा०-जोवन सूटना- (किसी स्त्री को) युवावस्था का मानंद लेना। २ सुदरता, विशेषत युवावस्था भयवा मध्यकाल की सुदरता। __ रूप । खूबसूरती। हि०प्र०-छाना ।-पर माना। मुहा०-जोबन उतरना-युवावस्या समान होना। जोबन पढ़ना = युवावस्था का सौंपमं माना। जोबन तुलना= दे० 'जोबन उतरना। . रौनक । बहार । ४. कुछ। स्तन । छाती। उ०-जूध दुहूँ जोधन सौं लागा।-जायसी (शब्द०)। कि० प्र०-~-उठना-उभरना -तुलना। ५. एक प्रकार का फूल। जोबना-क्रि० स० [हिं० जोवना] दे॰ 'जोचना' । जोमस पुं० [4. जोम १ उमग । उत्साह । २ जोश । उद्वैग । मावेश । ३ प्रहकार प्रभिमान । धमड । कि० प्र-दिखाना। ४, धारणा । खयाल (को०) 1५ प्रचलता (को०)। ६. समूह(को०)। जोय -सहा श्री [सं०पापा ] जोरू । स्थी । परनी। जोय-सर्व.पु० [हि.] जो। जिस। जोयना@+-क्रि० स० [हिं० जोड़ना ( जैसे, दीया जोड़ना)] १ दालना । जलाना। 3०-चौसठ दीवा जोय के चौदह घदा माहि। तिहि घर किमका चांदना जिहि घर सतगुर नाहि ।-कबीर (शब्द०)।२ दे० 'बोवना'। जोयसीg+समा पुं० [सं० ज्योतिषी] दे० 'ज्योतियो'। जोर-सहा . [फा० जोर] बल । शक्ति। ताकत । क्रि० प्र०-मापमाना। देखना ।--दिखाना । -लगना -- लगाना। मुहा०-कोर करना=(१) बल का प्रयोग करना। ताकत लगाना । (२) प्रयत्न करना । कोशिश करना । जोर टूटना = बल घटना या न होना। प्रभाव कम होना शक्ति घटना। जोर डामना = बोझलना । दे० 'जोर देना'। जोर देना- (१) बल का प्रयोग करना। ताकत लगाना । (२) शरीर धादि का) चोझ डालना। भार देना । जैसे,-इस जंगले पर जोर मत दो नही तो वह टुट जाएगा। किसी बात पर जोर देना=किसी बात को बहुत ही मावश्यक या महत्वपूर्ण बतलाना। किसी बात को बहुत जरूरी बतलाना। जैसे,-- उन्होंने इस बात पर बहुत जोर दिया कि सब सोग साप चलें। किसी बात के लिये जोर देना-किसी बात के लिये पापह करना । किसी बात के लिये हठ करना । जोर देकर कहना=किसी बात को बहुत मधिक व्रता या प्राग्रह कहना । जैसे,—मैं जोर देकर कह सकता हूँ कि इस काम मे मापको बहुत फायदा होगा । जोर मारना या लगाना- (१) बल का प्रयोग करना । ताकत लगाना । (२) बहुत प्रयत्न करना । खूप कोशिश करना। जैसे, उन्होंने बहुतेरा जोर मारा पर कुछ भी नही हुमा । यौ०-जोर जुल्म -प्रत्याचार । ज्यादती। २ प्रबलता। तेजी। बढती। जैसे, भांग का जोर, बुखार का जोर । विशेष-कभी कभी लोग इस प्रथं में 'जोर' शब्द का प्रयोग से' विभक्ति उहाकर विशेषण की तरह मौर कमी कमी 'का' विभक्ति उडाकर किया की तरह करते हैं। महा०-जोर पकडना या बांधना % (१) प्रवल होना । तेज होना। जैसे,-(क) भभी से इलाज करो नहीं तो यह बीमारी जोर पकडेगी। (ख) इस फोड़े ने बहुत जोर वाधा है। (२). 'जोर में पाना'। जोर करना या मारना-प्रयलता दिखलाना। जैसे,—(क) सेग का जोर करना। काम का जोर करना । (ख) माज प्रापकी मुहम्वत ने जोर मारा, तभी माप यहाँ पाए हैं। जोर में माना-ऐसी स्थिति में पढ़चना जहाँ पना- यास ही उन्नति या वृद्धि हो जाय। जोर या जोरो पर होना = (१) पूरे बल पर होना । बहुत तेज होना। जैसे- (क) माजकल शहर में चेचक बहुत जोरों पर है। (ख) इस समय उन्हें बुखार जोरों पर है । (२) खूब उन्नत दशा में होना। ३ वश । मधिकार । इस्तियार । काबू । वैसे, हम क्या करें, हमारा उनपर कोई जोर नहीं है। कि०प्र०-चलना । -चलाना । -जताना!-होना। मुहा०-जोर डालना=किसी काम के लिये कुछ मधिकार पत्त लाठे हुए विशेष भाग्रह करना । दबाव डालना। ४ वेग। भावेश । झोंक।