पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१६०

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जोहड़ १८०६ जोहड़ी-सा पुं० [देश॰] कच्चा तालाब । जोहन -सना पी० [हि. जोहना] १. देखने या जोहने की किया । उ०-सघन कला तर तर मनमोहन । दक्षिण चरन परन पर दीन्हें तनु त्रिभव मृदु जोहन ।-सूर (शब्द॰) । २ तलाश । खोषाहूढ़। ३ प्रतीक्षा । इतषार। जोहना-कि. स० [सं० जषण ( सेवन ) अथवा प्रा० जोय (-देखना)] १. देखना। अवलोकन करना। ताकना । निहारना । उ०-(क) दर्पन शाह भीत सह नावा। देखों जोहि झरोखे मावा 1-बायसी (पाग्द०)। (ख) जो सत ठौर खम हूँ होहि । कह्यो प्रल्हाद पाहि तूं जोहि।-सूर (शब्द०)। २ खोजना।हना। पता लगाना । 30-शकद्वीप तेहि पागे सोहा । वत्तिस मन योषन कर खोहा।-विधाम.(पन्द०)। ३ राह देखना। इतजार देखना। प्रतीक्षा करना। पासरा देखना। उ०-फुधव वरिया कोठरिया-विछोले बलबिरया पोहेला तोरी चाट-पक्षमीर (शब्द०)। .. जोहर - समा खी० [हिं० खोहक बावली । छोटा तालाब। । जोहर२-पक्षा पुं० [हिं०] दे० 'जौहर'। 30-जोहर फरि देह स्यागी। -ह. रासो, १० १६० --... . जोहार'-समा बी० [देश॰] प्रमिषावन । वदन । प्रणाम । नमस्कार । जोहार -सपा पुं० [हिं०] दे० 'जौहर'। जोहारना -क्रि०प्र० [हिं०] प्रणाम या नमस्कार मादि करना। अभिवादन करना। जोहारी-सहा स्त्री [हिं. जोहार] नमस्कार। प्रणाम । उ०-~इक इक पाण भेज्यो -सकल नृपति पै मानी सब-साथ कीन्हे जोहारी। सूर (शब्द०)। जौ-भव्य हि. ज्यो] यदि । जो। जौ--कि० वि० [हिं॰] दे० 'क्यो' । जौकनाल-कि. स. [ अनु० ] मैटना 1 उपटना । कुद्ध होकर ऊंचे स्वर से पूछ रहना। जौचो-सधा औ• [देश॰] पै या वो को फसल मा एक रोम जिनसे वान काली हो जाती है और उसमें पाने महीं पड़ते ।। जौड़ा-समा ५० [हिं० चौरा] दे० 'वीरा'। जौरा-सपा पुं० [म. जबर, प्रा.हि. बोरा] , ज्वर) जूड़ी। ताप । २ व्याप। 10-जाप करत जौरा ल्या, सवर सापी लोच ।-पत प्राणी, पृ० १०८। औराभौरा-सा देश० किले या महलों के भीतर का वह महरा तहसाना जिसमें गुप्त खवाना पारि रहता है। जौराभौरा-सभा १० [हिं० षोड़ा+भौरा],.१ दो चालको श्रा जोड़ा।-(प्यार का शब्द)। २ दो घनिष्ठ मित्रों को जोड़ा। जौरेलु -क्रि० वि० [ फा अवार ] निकट । समीप । पासपास । जौ---सना पु. [१० यव] १ चार पांच महीने रहनेवाला एक __ पौधा जिसके बीज या दाने की गिनती मनाजों मे है। . विशेष-यह पौधा पृथ्वी के प्राय समस्त उष्ण तथा समप्रकृतिस्थ स्पानो मे होता है। भारत का यह एक प्राचीन धान्य और हविष्यान है। भारतवर्ष में यह मैदानो के मतिरिक्त प्रायः पहाडो पर भी १४००० फुट की ऊंचाई तक होता है । इसकी । बोमाई कातिक प्रगहन में होती है पौर कटाई फागुन चैत में होती है। इसका पौधा बहुत कुछ गेहूँ का सा होता है। मतर इतना होता है कि इसमें बड़ के पास से बहुत से उठन निकत्तसे है जिन्हें कमी कभी छोरकर प्रनय करना पड़ता है। इसमें .. टूडदार पाल' लगती है जिसमें फोश के साथ मिलकूल चिपके 'हुए दाने पक्तियो मे गुछ रहते हैं। दानों के ऊपर का नुकीला कोश कठिनाई से अलग होता है, इसी से यह अनाज कोश सहित बिकता है, पर काश्मीर में एक प्रकार का जो ग्रिम नाम का होता है जिसके दाचे गेहूँ की तरह कोश से मखम रहते है। गेहूँ के समान बोके या जो की गूरी भी प्राटे का व्यवहार होता है। भूसी रहित जो या उपके मैदा का प्रयोग रोगियो के लिये पथ्य के काम प्राता है। सूखे हुए पौधे का भूसा होता है जो चौपार्यों को प्रिय, खामकर और उनके के खाने के काम में पाता है। -यूरोप में और भष,मारतवप ने भी कई स्थानों में जो से, एक प्रकार की पराप बनाई जाती है। जो कई प्रकार होते है। इस प्रश्न को मनुष्य जाति प्रत्यत, प्राचीन काल से जानती है। वेदो मे इसका , - उल्लेख घरावर है। मन भी हवन प्रादि में इस प्रश्न का ध्यवहार होता है। ईसा से २७०० वर्ष पहले चीन के बादशाह शिनग ने-जिन पर पन्नों को पोमाया था. उनमें एक बो भी था। ईसा से- १०१५. वर्ष .. पहले सुलेमान बादधाव के समय में भी जो का प्रचार खूप था। मध्य .पशिया के करहेंग नामक स्थान के संग्हर के नीचे दबे हुए जो स्टीन साहब को मिले थे। इस खेहर से स्थान पर सातवी शताब्दी में एक प्रध्या नगर चा जो बालू में दब गया। वैद्यक में बो तीन प्रकार के माने गए है-शक, निघाफ मौर हरित वर्ण। शूफ को पंव, नि शूक को प्रतियव मोर हरे रंग के यव को स्सोक्य कहते हैं । जो पीतल, खा, - वीर्यवर्धक, मलरोधक सथा पित्त और कफ को दूर करने- पाषा माना जाता है। यव से प्रतियव पोर पतियव से स्तोक्य (घोषई भी) 'हीन गुणवाला माना पाता है। पर्यायव । मेध्य । सितशूनदिय। घक्षत । फघुकि। पायरा । तीक्ष्णशूक । तुरपप्रिय । शह! हयेष्ट । पविण धाग्य। मुहा०-षो षौ बढ़मा-धोरे पोरे बिना सक्षित एप पड़ना या विकसित होना । तिल तिघ पढ़ना। क्रमश बड़मा ! वो बराबर = जौ के पाने के पराघरममा जी भर - जौ के वाने के परिमाण का। खाए पिए सौ सौ हिसाब करे जो जो,' या वे जे सौ सौ हिसाब करे जो जो-मधिक से अधिक सामूहिक व्यय करे पर हिसाय पाई पाई या पैसे पैसे का रखे।" २. एक पौषा जिसकी लचौली टहनियो से पजाब में टोकरे झाड. मादि बनते हैं। मध्य एशिया के प्राचीन खंडहरो मे मकान के परदों के रूप मे इसकी टट्टियां पाई गई हैं। ३ एक तौब जो ६ राई (खरदल ) के बराबर मानी जाती है।। जो -अव्य. [सं० यद् यदि। मगर। 30-जो लरिका कछु