पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१५९

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' जोपना १८०५ जोह २. वह रस्सी जो तुफान के समय जहाजों में पाल चढ़ाने या उता- जोशाँदा-समपु० [फा. जोगदह. ] दवा के काम के लिये पानी रने के काम में पाती है। --(लश०)। ३ एक प्रकार की में उवाली हुई पर या पत्तियो मादि। क्याप । काढ़ा। गांठ जो रस्से के एक सिरे पर उसकी लडो से बनाई जाती है। जोशिश-सया स्ली० [फा० ] उत्साह । जोश [को०] । जोबना-क्रि० स० [सं० जुषण (सेवन), प्रयवा प्रा. जो जोशी-समा० [हिं०] दे० 'जोपी'। (जोव = देखना)] १ जोहना । देखना । तकना । २ ढूढ़ना। जोशीला-वि० [फा. षोश+हि. ईला (प्रत्य०)] [वि०सी० तलाश करना। ३ भासरा देखना। रास्ता देखना । उ०-- जोशीली] जोश से भरा हमा। जिसमें खूब जोश हो। मावैग- रेण बिहाणी जोवतां दिन भी वीतो जाय । रामदास विरहिन पूर्ण । जैसे, उन्होंने कल बड़ी जोशीली वक्तृता दी थी। अरे पीव न पाया जाय। -राम० धर्म०, पृ० १९३। जोप--सबा पुं० [सं०] १ प्रीतिप्रेम। २. सुख । प्राराम । ३. जोबसी.-सबा पुं० [म. ज्योतिपो] दे० 'ज्योतिषी'। उ०-सू दिन " सेवा । ४. सतोष (को०)। ५. मौन (०)। कहे रूप जोवसी । चतुर नागर ईसउ माण ज्यों घद।-ची. जोपर-सवा सौ. सं० योषा] स्ली। नारी। रामो०, पु०६। जोवारी-समा बी० [देश॰] एक प्रकार को मैना जिसका रंग बहुत जोषः-सवा श्री० [हिं०] दे॰ 'जोख'। उ०-चढ़े न चातिक चित फबई प्रियपयोद के दोप। तुलसी प्रेम पयोधि की तातें माप चमकीला होता है। न जोख ।-तुलसी (शब्द०)। विशेष-यह बहुत अच्छी तरह कई प्रकार की चोलिया बोल जोषक--सहा पुं० [सं०] सेवक । सकती है, इसीलिये लोग इसे पालते मौर बोलना सिखाते हैं। यह ऋतुपरिवर्तन के अनुसार भिन्न भिन्न देशों में घुमा करती जोपण-सा पुं० [सं०] १. प्रीति । प्रेम। २. सेवा। ३.दे. है। फूलों और मनाजों को बहुत हानि पहुंचाती है और 'जोष (को०)। टिड्डियों का खूब नाश करती है। इसके अडे विना चित्ती के जोषणा-सशास्त्री० [40] दे० 'जोपण को। और नीले रग के होते हैं। इसका मांस खाने में बहुत स्वादिष्ट जोषा-सहा स्त्री० [सं०] नारी । सी। होता है। जोषिका-संहा बी० [सं०] १. कलियों का स्वबक या गुच्छा । २. जोश-सक्षा पुं० [फा०] १ किसी तरल पदार्थ का पांच या गरमी नारी । स्ली [को०] । के कारण उवलना । उफान ! उवाले । जोषित-सशा श्री- [सं०] स्त्री (को०] । महा०-जोश खामा = चलना । उफनना । खोलना । जाश दना जोषति-सधा सी० [सं० जोपित् ] दे० 'जोषिता'। उ०-जुवा खेल -पानी के साथ उबालना । जैसे,—इस दवा का जोश देकर खेलन गई जोषित जोवन जोर ।-स० सप्तक, पृ० ३६४ ॥ पोमो । जोश मारना उबलना । मथना । जोषिता-सथा सी० [सं०] स्ली। नारी। मौरत। उ०--जवपि यौ-नौशांदा- क्वाप । काढ़ा । जोषिता पन अधिकारी। दासी मन क्रम पचन तुम्हारी । २. चित्त की तीव्र वृत्ति । मनोवेगमावेश । जैसे,—उन्होंने -मानस, १।११०॥ जोध में पाकर बहुत ही उलटी सीधी बातें कह डाली। जोषी-सक्षा पुं० [सं० ज्योतिषी] १ गुजराती ग्राह्मणों की एक महा.--जोश खाना=मावेश में माना। जोश देना आवेश पाति । २. महाराष्ट्र ब्राह्मणों की एक जाति । ३ पहाड़ी में लाना या करना । जोश मारना-उमड़ना । जोश में पाना नाह्मणों की एक जाति । ४ ज्योतिषी । गणक-(क्व०)। -सप्तजित हो उठना। पावेश मे भाना। खून का जोश= जोय-वि०है.] कमनीय । प्रिय । प्यारा [को०)। प्रेम का वह वेग जो अपने वश या कुल के किसी मनुष्य के जोसा-सबा [हिं०] दे० 'खोपा'। मिये उत्पन्न हो। जैसे,-खून के जोश ने उन्हें रहने न दिया, जोसना-सणा बी० [सं० ज्योत्स्ना ] दे० 'ज्योत्स्ना'। उ.- वे अपने भाई की मदद के लिये उठ दौटे। इह परनी तुम जोग पद बोसना वान वृत।-पु. रा०, २५ । यौ.-जोश सरोश-अधिक मावेश । जोशे जवानी जवानी १५६. का जोश । जोथे जुनून - पागलपन का दौर। उन्माद का जोसीg.....सधा पुं० [सं० ज्योतिष, ज्योतिषी, जोइसी, जोसी। मोर : सनका ज्योतिषी । ३०--पाड्या सोहि बोलावहि हो राय । ले पतड़ो जाशन-खी०० [फा०]. भुजामों पर पहनने का चांदी या सोने जोसी वेगो तु माई। -बी० रासो, पु०६। का एक प्रकार का गहना । विशेषइसमें छह पहल या पाठ पठ्ठलवाले लंबोतरे पोले दानों जोह -सहा की० [हिं० जोड्ना] १. खोष । तसाश। नि०प्र०-जगाना। की पांच, छह या सात जोड़ियां संवाई में रेशम या सुत प्रादि २तजार । प्रतीक्षा। ३. नजर। टिविशेषता रुपायुक्त के डोरे में पिरोई रहती हैं। दोनो बाँडो पर दो जोशन पहने जाते हैं। दृष्टि। क्रि०प्र०--रखना। २ बिरह बकतर । कवच । चार माईना। ४-१६