पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१६२

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जौहरी १८०८ २ मात्महत्या। प्राणत्याग । क्रि०प्र०-फरना। ३. वह चिता जो दुर्ग में स्त्रियो के जलने के लिये बनाई जाती थी। उ.--(क) जौहर कर साजा रनिवास । जेहि सत हिये कहाँ हि मासू। -जायसी (शब्द०)। (ख) प्रजहूँ जौहर साज के कीन्ह चाही उजियार। होरी खेलर रन फठिन कोउ न समेट घार ।-जाथसी (शब्द॰) । क्रि० प्र०-~साजना। जोहरी-यक्ष पुं० [फा०] १ हीरा, लाल भादि वहुमूल्य पत्थर बेचने- वाला । रत्नविक्रेता। २. रल परखनेवाला। जवाहिरात की पहचान रखनेवाला । पारखी। परखैया । जंचवैया । ३ किसी वस्तु के गुण दोष की पहचान रखनेवाला । ४ गुण का मावर करनेवाला । गुणग्राहक । कदरदान । ज्ञमन्य-वि० [सं० ज्ञामन्य] अपने पापको ज्ञानी माननेवाला [को०] । ज्ञ-सा पु० [सं०]. ज्ञान । बोध । २. ज्ञानी । जाननेवाला । जैसे, प्यास्त्रज्ञ, सर्वज्ञ, कार्यज्ञ, निमित्तज्ञ । ३ ब्रह्मा । ४. बुद्ध ग्रह । ५. साक्ष्य के अनुसार निष्क्रिय निर्विकार पुरुष जिसको जान लेने से वधन कट जाते हैं । ६ मगल ग्रह । ७ ज पोरन के सयोग से बना हुमा सयुक्त पक्षर । श-वि०१. जाननेवाला । जैसे, शास्त्रज्ञ । २ बुद्धिमान । जैसे, विज्ञ । ज्ञपित-वि० [सं०] १ जाना हमा। २ मारा हुमा ३ तुष्ट किया हुमा। ४ तेज किया हुआ । चोखा फिया हुमा। ५ जिसकी स्तुति या प्रशसा की गई हो । 'प्त-वि० [सं०] जाना हुमा। प्ति-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ जानकारी । २ बुद्धि । ३ मारण । ४. सोपण । तुष्टि। ५ स्तुति । ६ जलाने की क्रिया। ज्ञबार--सचा पुं० [सं०] बुधवार । बुध का दिन । ज्ञा-सञ्ज्ञा श्री [सं०] जानकारी। ज्ञात'-वि० [सं०] विदित । पाना हुभा । अवगत । मालुम । ज्ञाच-सञ्ज्ञा पुं० ज्ञान । ज्ञावजीवना -[सं० ज्ञात+ यौवना ] दे० 'ज्ञातयौवना'। उ०--- निज तनु जोवन भागमन जानि परत है जाहि। कवि कोविद सब कहत है ज्ञातजीवना ताहि-मति०५०, पृ. २७६ । झातनंदन-सदा पुं० [२० ज्ञातनन्दन ] जैनो के तीर्थंकर महावीर स्वामी का एक नाम। झातयौवना-समा सी० [सं०] मुग्धा नायिका का एक भेद । वह मुग्धा नायिका जिसे अपने यौवन का ज्ञान हो। इसमें दो भेद हैं-नवोढ़ा और विश्रधनवोढ़ा। ज्ञातव्य-वि० [सं०] जो जाना जा सके। जिसे जानना हो अथवा जिसे जानना उचित हो । ज्ञेय । वेध । वोधगम्य । विशेष-भूति उपनिषद् मादि मे पात्मा को ही एक मात्र ज्ञातव्य माना है। उसे जान लेने पर फिर कुछ जानना बाकी नहीं रह जाता। शाता-वि० [सं० ज्ञातृ 1 [वि॰ स्त्री. ज्ञात्री] जाननेवाला। शान रखने वाला 1 जानकार। ज्ञाति-उज्ञा पुं० [सं० ] एक ही गोत्र या वश का मनुष्य । गोती। भाई। बघु। बापव। सपिड समानोदक मादि। उ०-ते मोहि मिले ज्ञात घर पपने में वूझी तब जात । हंसि हसि दौरि मिले प्रकम भरि हम तुम एक ज्ञाति । -सूर (शब्द०)। (ख) पहिर माति पोलो मति कीन्ही। अपनी जाति प्रकट करि दीन्ही-सुर (शब्द०)। ज्ञातिपत्र--संवा पुं० [सं०] १ गोत्रज का पुत्र । २ जैन तीर्थकर महावीर स्वामी का नाम । ज्ञातृत्व-सा पुं० [सं०] जानकारी । मभिज्ञता । ज्ञान-सधा पुं० [सं०] १ वस्तुओं और विषयो की वह भावना जो मन या आत्मा को हो । बोध । जानकारी। प्रतीति । क्रि० प्र०-होना। विशेष-न्याय मादि दर्शनों के अनुसार जब विषयो का इद्रि- यो के साथ, इद्रियों का मन के साथ मोर मन का प्रारमा के साथ सवध होता है तभी ज्ञान उत्पन्न होता है। मान लीजिए, कहीं पर एक घडा रखा है। इद्वियों ने उस घड़े का साक्षात्कार किया, फिर उस साक्षात्कार की सूचना मन को दी। फिर मन ने मात्मा को सूचित किया और प्रात्मा ने निश्चित किया कि यह घडा है। ये सब व्यापार इतने शीघ्र होते हैं कि इनका अनुमान नही हो सकता। एक ही साथ दो विषयों का ज्ञान नहीं हो सकता । ज्ञान सदा प्रयुगपद् होता हैं । जैसे,-मन यदि एक मोर है और हमारी प्राख किसी दूसरी ओर है तो इस दूसरी वस्तु का ज्ञान नहीं होगा। न्याय मे जो प्रत्यक्ष, मनुमान, उपमान और शब्द, ये चार प्रमाण माने गए हैं उन्ही के द्वारा सब प्रकार का ज्ञान होता है। चन, श्रवण मादि इद्रियो द्वारा जो ज्ञान होता है वह प्रत्यक्ष फहुलाता है। व्याप्य पदाथ को देख व्यापफ पदार्थ का जो ज्ञान होता है उसे अनुमान कहते हैं। कभी कभी एक वस्तु (व्याप्य) के होने से दूसरी वस्तु (व्यापफ) का प्रभाव नहीं हो सकता, ऐसे अवसर पर अनुमान से काम लिया जाता है। जैसे, धुएं को देखकर अग्नि का ज्ञान। अनुमान तीन प्रकार का होता है-पूर्ववत, शेषवत मौर सामान्यतो दृष्ट। कारण को देख कार्य के अनुमान को पूर्ववत् ( कारणलिंगक) अनुमान कहते हैं। जैसे, बादलो का उमड़ना देख होने- वाली वृष्टि का ज्ञान । कार्य को देख कारण के अनुमान फो शेषवत् (या कार्यलिंगक) अनुमान कहते हैं। जैसे, नदी का जल बढता हुमा देख वृष्टि का ज्ञान । व्याप्य को देख व्यापक के ज्ञान को सामान्यतोष्ट अनुमान कहते है। जैसे, धुएं को घेख मग्नि का ज्ञान, पूर्ण चद्रमा को देख शुक्ल पक्ष का ज्ञान इत्यादि। प्रसिद्ध या ज्ञात वस्तु के साधार्य द्वारा जो दूसरी वस्तु का ज्ञान कराया जाता है, उसे उपमान कहते है। जैसे,--गाय ही ऐसी नीलगाय होती है। दूसरो के कथन या शब्द के द्वारा जो ज्ञान होता है उसे शाम्प कहते हैं। जैसे गुरु का उपदेश मादि। सास्य शाल प्रत्यक्ष, मनुमान और शब्द ये तीन ही प्रमाण मानता है उपमान को इनके अंतर्गत मानता है। ज्ञान दो प्रकार का होता है--प्रमा