पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ज्येष्ठवला १८१२ क्योतिर्लिंग y . - ._HN ज्येष्ठषलासचा श्री० [सं०] सहदेई नाम की बड़ी जो भौषध के कुछ क्रिया न की गई हो । जैसे,-सब काम ज्यों का त्यों पस काम मे पाती है। है कुछ भी नही हुमा है। ज्येष्ठसामग-सा पुं० [सं०] परएयक साम का पढ़नेवाला। विशेष-वाक्य का समध पूरा करने के लिये इस सम्द के साथ ___ 'स्यो' का प्रयोग होता है पर गद्य में प्राय नहीं होता। ज्येष्ठसामा-सधा पुं० [६० ज्येष्ठसामन ] ज्येष्ठ सामवेद का पढ़ने- २ जिस क्षण। जैसे ही। वैसे,--(क)ज्यों में पाया कि पानी वाला। बरसने लमा। (ख) ज्यों ही में पहुंचा, वह उठकर चखा येष्ठावु-सक्षा पुं० [सं० ज्येष्ठाम्बु] १. चावलो का धोवन । २ गया। मार (को०)। विशेष-इस अर्थ में इसका प्रयोग 'हो' के साप मधिक होता है। येष्ठांश-षा ० [सं०] १. बड़े भाई का हिस्सा या पथ । २ मुहा०.-ज्यों ज्यों-जिस क्रम से। जिस मात्रा से। जिनना। पैतृक संपत्ति मे बडे भाई को मिलनेवाला पधिक प्रश। ३. १० जमुना ज्यो ज्यो लागी वादन । त्यो त्यो सुकृत सुमट . उत्तम प्रण या हिस्सा किो०)। कलि पहि निदरि लगे वहि काढ़न । -तुलसी (गन्द०)। ज्येष्ठा--सहासी० [सं०] १२७ नक्षत्रों में से मठारदा नक्षत्र जो ज्योतिःमुंज-नि[सं० ज्योति पुज] प्रचर या दिव्य प्रकाशवाला। र तीन तारों से बने कुडल के माकार का है। इसके देवता चंद्रमा जिसमें प्रकाश भरा हो। 30-खाको ज्योतिापुज प्रात हैं। २ वह स्त्री पो पौरों की अपेक्षा अपने पति को पिफ , यो|--माराधना, पु०८। प्यारी हो। ३ छिपकली। ४. मध्यमा उँगली। ५. गना ज्योतिःशास्त्र--सपा पुं० [सं०] ज्योतिष । •६-पपपुराण के अनुसार प्रलक्ष्मी देवी। ज्योति शिखा-सश बी.सं०] लघु गुरु वणों की गणना के विशेष-ये समुद्र मथने पर लक्ष्मी के पहले निकली थी । जय अनुसार विषम ववत्तों का एक भेद जिसके पहले दल में इन्होंने देवतामों से पूछा कि हम कहां निवास करें तब उन्होने ३२ लघु और दूसरे दल मे १५ गुरु होते हैं । बतलाया कि जिसके घर में सदा कलह हो, जो नित्य गदी या ज्योसि-सपा श्री० [सं० ज्योतिस् ] १ प्रकाश । उजाला । द्युति । २ वुरी बातें पके, जो पशुचि रहे इत्यादि उसके यहां रहो। मग्निशिखा । खपट । लो। ६, लिंगपुराण में लिखा है कि जब देवतापो में से किसी ने इन्हे ' ग्रहण नहीं किया तब दुःसह नामक तेजस्वी माहाराने इन्हे मुहा०--ज्योति जगना = (१) प्रकात फेलना । (२) किसी पस्नी रूप से प्रहण किया। देवता के सामने दीपक जलाना। - ३ प्रग्नि । ४ सूर्य । ५ नक्षत्र।६ मेयी।७ संगीत में प्रयुतार ज्येष्ठा-वि० बी० बड़ी। . का एक भेद । ८ पॉम की पुतली के मध्य का बह विदु या येष्ठाश्रम---सका पुं० [सं०] उत्तमाश्रम । गृहस्थाश्रम । स्थान जो वर्शन का प्रधान साधन है। रष्टि । १०. अग्नि- येष्ठाश्चमी-सहा पुं० [सं० ज्येष्ठाश्रमिन् ] गृहस्थ । गृही। प्टोम यज्ञ की पक सस्था का नाम । ११ विष्णु । १२. वेदांठ व्येष्ठो-सका स्त्री० [सं०] गृहगोधा। पल्लो । छिपकली । विस- में, परमात्मा का एक नाम । तुइया । यो०-ज्योतिमयी-प्रकाश से भरी हई। ज्योतिमुख ज्योति याँ-कि० वि० [सं० या+इव] १ जिस प्रकार । पैसे । जिस का मुख। ढग से । जिस रूप से। -(क) तुलासदास अगदव जवान ज्योतिक -सधा पुं० [ हिं.] ३० 'ज्योतिषी'। 30-चार वार ज्यों पनप पागि लागे गदन । --तुलसी (शब्द॰) । (ख) ज्योतिक सो घरी बुझि मावै । एक जा पहुँचे नदि मौर एक करीन प्रीति श्याम सुदर सो जन्म जुमा ज्यों हान्यो।-सूर पठावै ।-सूर (शब्द०)। ज्योतित-वि० [सं० ज्योति+हित (प्रत्य॰)] प्रकाशित । उमा- विशेष-प्रब गद्य में इस पद का प्रयोग अकेले नहीं होता केवल सित। ज्योति से पूर्ण। उ०-मा। तब तूने मुझे दिखाई कविता में सादरय दिखलाने के लिये होता है। अपनी ज्योतित छटा प्रपार-वीणा, पृ० ५५ 1 महा.-ज्यों त्यों- (१) किसी न किसी प्रकार किसी दंप। ज्योतिरिंग-सपा पुं० [सं० ज्योतिरिन] जुगनू । से । झमट पौर बखेडे से साथ। (२) भरुचि के साथ। मच्छी तरह नहीं। ज्यों त्यो कर-(१) किसी न किसी प्रकार। ष्योतिरिंगण-सधा पुं० [सं० ज्योतिरिक्षण ] जुगनू । किसी ढब से। किसी उपाय है। जिस प्रकार हो सके उस ज्योतिर्मय-वि० [सं०] प्रकाशमय । धुतिपूर्ण जगमगाता हुमा । प्रकार से.---ज्यो त्यों करके उसे हमारे पास ले पापो। ज्योतिलिंग-सपा ० [सं० ज्योतिलिङ्ग १. महादेव । शिव । (२) झझट मोर बखेडे के साथ। दिक्कत के साय । कठिनाई विशेष-शिवपुराण मे लिखा है कि जब विष्णु की नाभि में साथ। से,-रास्ते में बड़ी गहरा धीमाई, ज्यों स्यों ब्रह्मा उत्पन्न हुए तर वे पबढ़ाकर कमलनास पर इधर करके घर पहुँचे। ज्यों का स्यों - (१) जैते का तैसा । उसी उधर घूमने लगे। विष्णु ने कहा कि तुम सृष्टि बनाने के लिये रूप रग का । तद्रूप । सदृश । (२) जैसा पहले या वैसा ही। उत्पन्न किए पय हो। इसपर ब्रह्मा रहत ऋद हप मौर कहने जिसमें कुछ फेर फार या घटती बढ़ती न हुई हो। जिसके साप लगे कि तुम कौन हो, तुम्हारा भी तो कोई का है जब दोनो _ N I LM ..-...- ..-.-....---.--