पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१६५

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ज्यादती १८११ ज्येष्ठता अयादती--संशबी० [फा० यादती] १ अधिकता । बहुतायत । ज्यामिति विद्या का प्रतिष्ठापक हुमा है पोर इसकंदरिया ही इस मषिकाई । २. जुल्म । अत्याचार विद्या का केंद्र या पीठ रहा है। जब परखवालो ने इस तगर पर ज्यादा-कि० वि० [फा० पयादह, ] अधिक बहुत । पधिकार किया तब भी वहाँ इस विद्या का पडा प्रचार था। क्यान@ सा पुं० [फा० जियान ] नुकमान । हानि। घाटा। प्राचीन हिंद भी इस विद्या में बहुत पहले अग्रसर हुए थे। उल-हकै पजान जु कान्ह सो फोनो सु मान भयो बहै ज्यान वैदिक काल में भायों को यज्ञ की वेदियों परिमाण, भाकृति हैपी को।-पपाकर प्र०, पृ० ११६। मादि निर्धारित करने के लिये इस विद्या का प्रयोजन पड़ा व्यान -सबा सी-[फा० जान] २० 'जान' । 30-(फ) पाठसाह था। ज्यामिति का मामास शुल्बसूत्र, कात्यायन श्रौतसूत्र, को ज्यान बससीस करो।-ह. रासो, पृ० १५६ । (ख) अरे शतपथ ब्राह्मण प्रादि में वेदियों के निर्माण के प्रकरण में इस्क ऐसा बुरा, फिरि लेता है ज्यान (वन ग्र०, पु० ४८ । पाया जाता है। इस प्रकार यद्यपि इस विद्या का सूत्रपात भारत में ईसा से कई हजार वर्ष पहले हुमा पर इसमें यहाँ ज्याना-कि. 'स० [हिं०1३० 'जियाना' । 30-ज्याए तो कुछ उन्नति नहीं की गई। यूनानियों के ससर्ग के पीछे ब्रह्मगुप्त जानकी रमन बन जावि जिय, मारिप तो मांगी मीघु सूचिए और भास्कराचार्य के प्रथों में ही ज्यामिति विद्या का विशेष कहतु हो!-तुलसी ग्र०, पृ० २४.1 विवरण देखा जाता है। इस प्रकार जन हिंदुओं का ध्यान ज्यानि---सका बी. [सं०] १. वृद्धावस्था। जरा। बुढ़ापा । २ यवनों के संस से फिर इस विद्या की मोर हा तब उन्होंने - क्षय। ३. त्याग। परित्याग। ४ नदी। २. अत्याचार । उसमें बात से नए निरूपण किए.। परिधि और व्यास का नस्पीड़न ! 1. हानि ०] 1 सूक्ष्म मनुपात ३ १४१९ मास्कराचार्य को विपित था। म्यानी-मस्त्री० [सं० ज्यानि, तुलनीय फ़ा. जियान] हानि। इस अनुपात को परखवालों ने हिंदुओं से सीखा, पीछे इसका , पाटा । ०-सा दिन ते ज्यानी सी विकानी सी दिखानी प्रचार यूरप में (१२वीं शताब्दी के पीछे) हुआ। बिलसानी सी विलानी राजधानी जमराज की।-पाकर ध्यायस-वि० [सं०] [ वि० सी० ग्यायसी] १. ज्येष्ठ । बडा । २. पं०, पृ००२६३ सघषेष्ठ । ३. विद्याल । महत् । ४ जो नाबालिग रहो। व्याफल-सका सी० [५० बियाफत, दावत । भोज । २. मेह प्रौढ़ । ५ वयोपट । पुर। ६ क्षीण । क्षयशील । ७. उत्तम । मानी। मातिम्य । शक्तिशाली । वरेण्य [को०)। .. , . , क्रि० प्र०-खाना ।देना । ज्यायिष्ट-वि० [सं०] १. सर्वश्रेष्ठ । २ प्रथम, सर्वप्रथम [को०] । च्यामिति-सशा बी० [सं० 1 वह-गणित विद्या जिससे भूमि के .. ज्यारनाg-कि०म० [हिं०] दे॰ 'जियाना', जिलाना'। उ०- परिमाण, भिन्न भिन्न क्षेत्रों के मगो प्रादि के परस्पर सयघ आयो फिरि विप्र नेह खोजह न पायो कहूँ सरसायो वातै । तया रेखा, मोण,तल मादि का विचार किया जाता है। क्षेत्र लै विवायो, स्याम ज्यारियै !-प्रिया० (शब्द०)।, : __ गणित । रेखागणित । । ज्यारना --क्रि० स० [हिक, जारना(जलाना)].दे० 'बारना'। विशेष-इस विद्या में प्राचीन यूनानियो ( यवनों) ने बहुत उ०-चिता वारू ममता ज्यारू।-दनिखनी., पृ. १३४॥ उन्नति की थी। यूनान देश के प्राचीन इतिहासवेत्ता हेरोडोटस पनुसार ईसा से १३५७ वर्ष पूर्व सिसोस्ट्रिस के समय में ज्यावनावि-छि० स० [हिं०] दे० 'जिलाना।। मिन रेश में इस विद्या का माविर्भाव हुया । राजकर निधा- व्युति-समाधी [स] ज्योति [को०] 1.. - रित करने के दिये जय भूमि को मापने फी भावश्यकता हुई ज्यूँ-प्रव्य० [हिं०] दे० ज्यो। ' तब इस विद्या का समपात हुमा,। कुछ लोग कहते हैं कि नील ज्येष्ठा-वि० [सं०] १ बा।' जेठा। जैसे, ज्येष्ठ भ्राता। २. नव के पड़ाव उतार कारणोयो भी वमीन को हव मिर ' 'पद-पदा । बूढा। । । चाया करती थी, इसी से यह विद्या, निकाली गई। उपिना यो०-ज्येष्ठ तात-बाप का बड़ा भाई। ज्येष्ठ घणं प्राहाण । के टीकाकार प्रोदलस ने भी लिखा है कि येस ने मित्र । ज्येष्ठ प्रवथ = पस्नी की बड़ी बहन । घडी साली। में बाकर यह विद्या सीची घी और यूनाम इरी प्रचलित ज्येष्टर--सचा पुं० १. जेठ का महीना । यह महीमा जिसमें ज्येष्ठा की यौ। धीरे धीरे यूनानियो ने इस विद्या में पड़ी उन्नति पक्षत्र मे पूर्णिमा का बद्रमा उदप हो। यह वर्ष का तीसरा को। पाइथागोरस ने सबसे पहले इस सषध मे सिद्धांत स्थिर पौर ग्रीष्म ऋत का पहला महीना है। २ वह वर्ष जिसमें किए और कई प्रतिज्ञाएँ 'निकामी। फिर तो मंटो 'यादि ।,, बृहस्पति का उदय ज्येष्ठा नक्षत्र में हो।।।। अनेक विद्वान् इस विद्या के अनुशीलन में लगे। प्लेटोपने पिप्यो ने इस विधा का विस्तार किया जिनमे मुस्य भरस्तू विशेष:-यह वर्ष कंगनी मोर साव को छोर और प्रश्नों के लिये हानिकारक माना जाता है। इसमें राजा धर्मज्ञ होता है पोर (एरिस्टाटिल) और एउडोक्सस ये। पर इस विद्या का प्रधान ।। श्रेष्ठता जाति, कुल मौर धन से होती है ।-(बृहस्साहिता) प्राचार्य इउविपद ( उकदम ) मा जिसका नाम रेखागणित ३. सामगान का एक भेद । ४ परमेश्वर।५ प्राणी ... ' का पर्याय स्वरूप हो गया। यह ईसा से २८४ वर्ष पूर्व जीवित - पा मोर इसकदरिया (मलेग्जेंद्रिय), जो मिस्र में है) के विद्यालय ज्येष्ठतानमा स्खी [सं०] १. ज्येष्ठ होने का भाव । बडाई । २० में उक्लिड ही यूरप में ।। ... में गणित की शिक्षा देता था । वास्तव में इउक्सिड हो यूरप मे , “, श्रेष्ठता ।। , , . . . . . . . . । । उकदम ), हुमा जीविता श्री० [२०३१