पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१६८

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ज्योतिष्ट्रोम ज्यर ज्वर to ह सरी । मह ज्योतिष्टोम–समा १० [सं०] एक प्रकार का यज्ञ जिसमें १६ ज्योत्स्नी-संझा स्त्री० [सं०] दे० 'ज्योस्निका'। प्रतिक बने थे। इस यज्ञ के समापनात में १२०० गोदान का ज्योत्स्नेश-सक्षा पुं० [सं०] चंद्रमा [को०] ! विधान या। ज्योनार-सहा श्री० [सं० जेमन (खाना)] १ पफा उमा भोजन । ज्योतिप्पथ-सा पुं० [0] घाकाय । रसोई। ज्योतिपुंज-सज्ञा पुं॰ [म० ] नमत्रसमूह । क्रि० प्र०-करना।-होना । ज्योतिष्मती- श्री० [सं०] १ मालगनी। २ रात्रि। ३ एक २. सोज । दावत । ज्याफत । नदी का नाम । ४ एक प्रकार का वैदिक छंद । ५ सारगी की क्रि० प्र०—करना ।—देना!-होना। तरह का एक प्राचीन वाजा। ६ सत्वगुणप्रधान मन की शात मुहा०—ज्योनार बैठना = अतिथियों का भोजन करने बैठना । सवस्या (के) ज्योनार लगाना-प्रतिथियों के सामने रखने के लिये व्यजनों ज्योतिष्मान् --वि० [रा. ज्योतिष्मत् ] प्रकाशयुक्त 1 ज्योतिर्मय । को क्रम से लगाना या रखना। योनिमार में०] १ सूर्य। २ प्लक्ष बाप क एक पवत ज्योति-संघा पुं० [स० यौवना दे० 'जोवन'। उ०-तन धन का नाम। ३ ब्रह्मा का तृतीय पाद या चरण (को॰) । ज्योवन कछु नहि मावत हरि सुखदाई री। -दक्खिनी०, ४ प्रलयकाल में उदित होनेवाले सात सूर्यों में से एक (को॰) । १० १३२। योतिस-मादी० [सं०] १ युति । ज्युति । प्रकाश । २ परम ज्योरा-सम्रा पुं० [ देश० ] वह मनाज जो फसल तैयार होने पर ज्योति । ब्रह्म की ज्योति । ३ दिद्युत् । बिजली। ४ दिव्य गांवों में नाइयों चमारो आदि को उनके कामो के बदले मे सत्ता। ५ नक्षत्र । नारा प्रादि । ६ पाकाशीय प्रकाश दिया जाता है। (तमस् फा विलोम ) ७ सूर्य चद्र | दिव्य प्रकाश या ज्योरी--सचा त्री० [सं० जीवा ] रस्सी। रज्जु । होरी।। बुद्धि ग्रह नक्षत्र सूबंषी शास्त्र या विज्ञान वि० दे० ' 'ज्योतिप' । १० देखने की शकि। ११ दिव्य जगत् । १२ क्यारूपुर ज्योरूबु-सहा ली। हि] दे० 'जोरू'। उ०-माँ बाप बेटे ज्योरू माय मो०)। लडके सब देखत लोकन सरीखे ।-दपिखनी, पु०१२२ । ज्योतिस--सुमा पु०१ सूर्य । २ अग्नि । ३ विष्णु [को०] ज्योहा -सञ्ज्ञा पुं० [सं० बीव+हत ] प्रात्महत्या | जौहर । "योतिसास्त्र-सज्ञा पुं० [हिं०] १. 'ज्योति शास्त्र'। उ.- उ०-केश गहि करखि जमुना धार डाग्हैि, सुन्यो नृप नारि ज्योतिसाम्ब पठि इंद्री ज्ञान । ताके तुम ही बीज निदान । पति कृष्ण मारयो। मई ज्याकुल सबै हेतु रोवन लगी मरन -नद० ग्र०, पृ. २४४। को तुरत ज्योहत विधाग्यो।-सूर (शब्द०)। पोतिस्ना-खशानी [हिं०] २० 'ज्योत्स्ना'।-अनेकार्थ०, पृ० ३१॥ ज्योहरी-सक्षा पुं० [सं० जीव+ हर ] राजपूतों की एक प्रया जिसके योतिस्नात-दि० [सं० ज्योनि स्नात] प्रकाशपूर्ण। उ०- अनुमार उनकी स्त्रियो गढ के शत्रुभों से घिर जाने पर चिता में जलकर भस्म हो जाती थी। दे० 'जौहर' ज्योतिस्नात जीवनपथ पर अब चरण चार गतव्य एक हो। -प्रग्नि०,१० ३५ । ज्या-क्रि० वि० [हिं० ] दे० 'ज्यों। ज्योतिहीन- विन ज्योनि+हीन ] प्रकाश से रहित। प्रभाहीन। ज्यो'-य० [ मे० यदि ] जो । यदि । उ०-जो न जुगुति पिय 1-सल्फा बघ एनादि से हृत विपर्ण ज्योतिहीन होने मिलन की धूर मुकुति मोहि दीन । ज्यो लहियै सँग सजन तो पर।-वृहत्राहिता, पृ० ८२ । घरक नरक हु की न।-विहारी (शब्द॰) । ज्योतीरथ-सा पु० [मे०] ध्रुव ( जिसके माश्रित ज्योतिश्चक है)। ज्यो सझा पुं० [सं० जीव, प्रा० भीम, जीय ] दे० 'जीव' । ज्योतीरस-सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का रस्त जिसका उल्लेख उ.- बूडत ज्यो घनमानद सोचि, पई विधि व्याधि प्रसाधि वाल्मीकीय रामायण और बृहत्साहिता में है। नई है।-धनानद, पृ० ५। ज्योत्स्ना-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ चंद्रमा का प्रकाश । चाँदनी।२ ज्यो'- मचा . [ म० ] गृहस्पति ग्रह [को० चाँदनी रात । ३ सफेद फूल की तोरई। ४ सौंफ । ५ दुर्गा ज्योतिष-वि० [म.] ज्योतिष सवधी। का एक नाम (को०)। ६ पकाश । उजाला (को०)। ज्योतिपिक-सका पुं० [ मे० ] ज्योतिषी। ज्योत्स्नाकाली-सपा नी• [ म० ] महाभारत के अनुसार सोम की ज्यौन-वि० [सं०] चद्रकिरणों से प्रकाशित [को०] । कन्या जो वरुप के पुत्र पुष्कर की पत्नी थी। ज्योत्स्न--सबा पुं० शुक्ल पक्ष । उजाला पाख [को०] । ज्योत्स्नाधौत-वि० [सं०] दे० 'ज्योत्स्नास्नात'। ज्योस्निका. ज्योत्स्ती-समा क्षी० [सं०] पूर्णिमा की रात [को०)। ज्योत्स्नाप्रिय---सा है० [सं०] चकोर। ज्योनार-सहा पु० [हिं०] 'ज्योनार' । ज्योत्स्नावृक्ष-सज्ञा पुं० [सं०] दीपाधार । दीवट । फतीलसोज । ज्यौरा -सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'ज्योरा'। ज्योत्स्नास्नात-वि० [सं०] चोदना में नहाया हुमा । चांदनी से पूर्ण। ज्वर--सा पु० [स], शरीर की वह गरमी या ताप जो ज्योस्निका-सशस्त्री० [सं०] १ चाँदनी रात । २ सफेद फूल की स्वाभाविक से अधिक हो भौर परीर की अस्वस्थता प्रकट करे । तोरई। ताप । बुखार।