पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हिंदी शब्दसागर ज-हिंदी वर्णमादा मे चवर्ग के प्रतर्गत एक व्यंजन वर्ण। यह स्पर्ण जंगमकुटी--संशाली [सं० जङ्गमकुटी छतरी [को०] । वर्ण है और घवर्ग का तीसरा प्रक्षर है। इसका पाह्य प्रयल जंगमगल्म-सक्षा पु० [सं० जनमगुल्म पदल सिपाहियों की सेना। सवार और नाद घोष है । यह पल्पप्रारण माना जाता है। जंगम विप-सहा [ से जमविष ] वह विप जो घर प्राणियों 'झ' इस वर्ष का महाप्राण है। के समान ही इसका के दश, प्राघात या विकार पादि से उत्पन्न हो। उच्चारण तालु से होता है। विशेष-सुश्रुत ने सोलह प्रकार के जगम विष माने है-रष्टि, जंकशन-सक पुं० [अ०] १ वह स्थान जहाँ दो या अधिक रेमये नि श्वास, ६ष्ट्रा, नख, मूत्र, पुरीष, शुक, लाला, पाव, भास लाइनें मिली हो । वैसे,-मुगलसराय जफशन । २ वह स्थान (पाड़), मुखसदेश, भस्पि, पित्त, विद्धित, भूकमोर शव जहाँ दो रास्ते मिले हों। सपम । जैसे,—कालेज स्ट्रीट और या मृत वेद । उदाहरण के लिये पैसे, दिव्य सर्प के श्वास में हैरिसब रोशजकाधन पर गहरा दंपा हो पया। विष, साधारण सर्प काम में विप: ने, चिल्लो, बंदर, जंग'- बी.[फा०, सं० पक्ष] [वि जंगी ] लड़ाई। युद्ध । गोहपादि नख और दांत में विष विच्छ, मिह सकृषी समर । -प्रपदखाम करि हाल जगह भोर मचाइप । मछली भारि पाड़ में विष होता है। सनमुख परि रट्रि सुभट पहु फट्टि हटाइय |--सूदन (शब्द०)। जंगल-सज्ञा पुं० [सं० जङ्गल ] [ वि० जंगली ] १. पलभ्य भूमि । क्रि० प्र०-करना ।-मचना । मचाना । होना। रेगिस्तान । २ घन । कानन । परण्य । पो०-जंगमावर । जंगल । मुहा---जगल खंगालना-चपख मझामा। षंगल की पांच जंग-संशाश्री. [पं० जक] एक प्रकार की घडी नाव जो बहुत पड़ताल करना या धानना । जंगल में मगल - सुनसात स्थान चोदी होती है। में चहल पहल । जग जाना टट्टी जाना । पाखाने जाना। क्रि० प्र०-बोलना। ३. मास । ४ एकांत या निर्जन स्थान (को०)। ५. बंजर भूमि । जंग-संक्षा पुं० [फा० जग] १ लोहे का मुरचा। पातुजन्य मेल । कसर (को०)। क्रि०प्र०--लगना । जंगल जलेवी-शा पुं० [ हिं• जगल+ जसेयी ] १ गू। गलीज । २ पटा । घटियाल (को०)। हणियों का देश (फो०)। गू का लें। २.परियारे की जाति का पक पौषा जिसके जंगमावर-वि० [फा०] लड़नेवाला योद्धा । लहाका । पीले रंग के फूल के पदर कुंडलाकार लिपटे हए बीज होते हैं। जगजू-वि० [फा.सटाछा। वीर । योगा। 80-पौर सुना है जलेगी। प्रताप बडे जोश के साथ फौज मुहय्या कर रहा है पौर जगजू जंगला'--सपा पुं० [पुत्तं जेगिला ] १ खिड़की, दरवाजे, बरामदे राजपूत व भील बराबर माते जाते हैं।-महाराणा प्रताप प्रादि में लगी हई लोहे की छड़ों की पक्ति। कटहरा बार। (धब्द०)। २. चौखट या खिरकी जिसमें जाली या घर लपी हों। जंगम-वि[सं० पल्लम] १ चलने फिरनेवाला। चलता फिरता। जंगसा । पर। 10-पुष्पराशि समान उसकी देख पापन फाति । भूप क्रि० प्र०-लगाना। को होने लगी जगम लतो फो भ्राति ।-पा०, पू०७। २. ३. दुपट्टेमादि के किनारे पर काढ़ा हुमा वेस बूटा । जो एक स्थल से दूसरे स्थल पर लाया जा सके । जैसे, बगम जंगला--संह पुं० [सं० जाङ्गल्य ] १. संगीत के बारह मुकामों में सपत्ति, जगम दिष। ३. गमनशील प्राणी से उत्पन्न या से एक। २ एक राग का नाम । ३. एक मछली जो बारह प्राणिजन्य। इच लघी होती है पौर बगाल की नदियों में बहत मिलती जंगम - ० दाक्षिणात्य लिंगायत शैव संप्रदाय के गुरु । है।४ पन्नके वे पेड़ या ठल जिनसे कूटकर पन्न निकास विशेष-ये दो प्रकार के होते है--विरक्त मोर गृहस्य । विरक्त लिया गया हो। सिर पर जटा रखते हैं पौर कोपीन पहनते हैं। इन लोगो का जंगली-वि० [हिं० जंगल १ जगल में मिलने या होनेवासा । जगम लिंगायत्ती मे वडा मान है। सबधी। वैसे, जगली सकठी, जगली कहा। २ पापसे मार ३ गमनशील यति । जोगी । १०-हैं जंगम तु कौन नर क्यों होनेवाला (वनस्पति)। विना वोए या लगाए उगनेवाला । घागम ह्या कीन । पु० रा०,६१२२१ ४. जाना । गमन । जैसे, जंगली प्राम, जगली कपास । ३. जंगल में रहनेवासा । ३०-तिन रिपि पूछिय साहि, फवन फारन इव प्रगम । पनेला । जैसे, जगली मादमी, जगली जानवर, जगसी हापी। कवन थान, किहि नाम, कवन दिसि करिव सु जगम 1-पृ० ४. जो परेल या पासतू न हो। पैसे, गली कबूतर । ५ रा०,११५६१. प्रसभ्य । रगडू । बिना सलीके का । जैसे, जगदी प्रादमी।