पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१९

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इंगतो बादाम जंघाफार पाराव-संका पुं० [हिं० बमली+वादाम ] १. फतीते की जंगी-वि० [फा०] १. सहाई से संबंध रखनेवाला। जैसे, जगी साहका एक पेड। पूल । पिनार । जहाज, जंगी कानून । २. फौजी। सैनिक 1 सेना संवधी। हिर-ह पक्ष मारतवर्ष में पश्चिमी घाट के पहाष्ठों तथा जैसे, जगी लाट, जगी पफसर । पर्वषादौर टनासरिन के ऊपरी भागों में होता है। इसमें यौ०-जंगी लाट = प्रधान सेनापति। देएन प्रकार का गोद निकलता है। यह पेट फागुन चैत में २. बडा । बहुत बहा। दीयफाय । जैसे, जपी घोड़ा। ४ धीर । पश्वा धीर इसके फूलों से फही पुष थाती है। इसके सडाफा। पहादुर । जैसे, जगी प्रादमी। ५. स्वस्थ । पृष्ट । नीमीय को उबालकर तेल निकाला जाता है। इन दीजों जैसे, जगी जवान । जो महंपी दिनों में लोग भनफर पी जाते है। फूल और जंगी-साधा पुं० [देश॰] (फहारों की बोलचाल में) घोडा । जैसे,-- पतिमा जोरष के काम मे पाती हैं। इसे पून और पिनार भी धाहने जंगी, बचा। जंगी-वि० [फा०] जंगवार का । हबश देश का । जैसे, जगी हा। म.ह की बात का एक पेड । जंगी--सहा सं०पंगवार देश का निवासी । हवशी। चितपद्यमन टापू तपा भारतवर्ष और धर्मा में भी। जंगी जहाज-सशपु० [फा० जगी+भ० जहाज] लहाई काम दरपण होता है। इसकी चाल से एक प्रकार का गोंद निफलता पीर सब पीष से एक प्रकार का पहमल्प तेल निफलता का जहाज । युद्धपोत । पीपंप और पूण में बादाम के तेल समान ही होता जंगी बेड़ा-सका पुं० [फा. जगी+ हिं. वेडा ] लडाकू जहाजों का एकी पत्तियां सैनी होती है और चमा सिन्मने समूछ । युद्धपोतों का काफिला। माखाती। इसके बीज को लोग गजक की तरह खाते जगी हड़-सहा बी० [फा० जंगी+हिं हर] काली हड़ । छोटी हर। और उसकी लली सुपरो को खिलाई जाती है। इसकी जंगुल सखापु० [सं० जंगुल ] जहर । विष । धार, पसी. पील, तेल पादि सय मोषष के काम में भाते हैं। जंगे जरगरी--सक्षा ली.[फा० जंगेउरगरी कैवष दिखावटी या मोग यकी पत्तियाँ रेशम के कीटों को थी खिलाये हैं। इसे झूठमूठ की लड़ाई । कूटयुद्ध को। लिपी पदाम पौर मट बदाम भी कहते हैं। जंगेलासम्म पुं० [ देश० ] एक प्रकार का वृक्ष जिसे चौरी, मामरी मी - पुं० [हिं० जगली+ ] दे० 'बन रें'। पौर रूही भी कहते हैं। वि० दे० 'कही। मा० [फा० जंगूला ] धुंघरू का दाना । वोर । -सक्षा श्री.[हि. जंगी] पड़ी घुघड वगी कमरपट्टी पिसे • TE-सा . [ फा• गंगार ] [वि० अंगारी] १ तावे का महीर या घोची अपने जातीय नाच के समय कमर में पाखाप । सूतिया। २. एक प्रकार का रग। उ०प्रस्वीर वही घाँधते है। संपरको बसार में पाया ।--फदीर मं०, पृ. ३२० जंगोजदल-सा श्री० [फा० अंगो+प० जदन] रक्तपात । हिप-पाहतवि का फसाय है जिसे सिरफाफश लोग निकालते मारकाट । लडाई झगडा । उ०-नई हमको हगिज है वह देता चूर्ण को सिरके के प्रम में दास देते है। सिरके सल। वा उसने फरें हम जगोजदल । --दक्खिनी०, पु. करमखम रात भर मुंह बंद कर पौर पिन को मुंहतोस २२२। पर रखा रहता है। चौबीस घंटेरी साय सिरके को उस जंगोजिवाल-सबा पुं० [फा० बमो+म० जिदाल ] दे॰ 'जंगी- परवन से निकालकर पिछले परसम में सूखने लिये रस । पदल'। Nag| अब पानी सूख जाता है वप उसके नीचे चमकीली जंघ -सा मी० [सं० पडघा ] दे० 'जधा'। उ०-जानु जघ मोस रंग की दुकनी निकलती है जो रंगाई काम में निमंग सुदर कलित कंचन दइ । फाछनी कटि पीत पट दुति, भायी है। कमल केसर खड।-सूर०, १-३०७ । अंगारी-पि० [फा॰जगार ] नीले रंग का । नीला ! ज'घ-संमा . [ सेवघा ] पौष में पहनी जानेवाली जाँघिया। जंगा-सपा ९० [फा० गार] दे० 'जगार'। 30-मोर जंघा-सा धी[00 षटघा १ पिडली। २. बांध। रान । पचार र तेहि माई। येहि विधि पांघो सत दरसाई।- उरु। ३.कैचीका दस्ता जिसमें फल और दस्ताने लगे रहते पट०, पृ०२३८ । है। यह प्रायः षीके फलों के साथ ढाला जाता है पर कंगाल-or पुं०1० अङ्गाल ] पानी रोकने का बाप । - कमी फभी यह पीस का भी होता है। जंगाती'- कागार ] ६० 'जंगारी'। १०-त्यागी सुरत जंघार, जंघाफारसा ..जहाकर, जयघाकार हरकारा । सफेदी हो । बरह पाहि जगाली सोई।-घ८०,१०६७। पायक (ले० गंगासी-- पार रेशमी कपडा पो चमकीले पीरी बंपामार-धा पुं० [सं०] युद्ध में जापो की रक्षा के काम में का होता है। उपपोगी एपप को। संगतीटी- की-विपारी+पटी गषा मिरोजा की पंपाश्व- पु. [ पद्यापथ ] पैदर रास्ता (को०] । पपी मीच पी रही पो को कृषियों पर लगाई जाती है। जंघाचार-ष्ट पु० [हिं० चा फारमा ] कहारों की पोली में ।