पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१८०

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माइनी मेनकोर मना--क्रि० प्र० [सं० क्षरण या विद्, अथवा त झर ('निझर मड़ामद--क्रि० वि० [अनु.] १ लगातार बिना रुके । बराबर। में प्रयुक्त), प्रा. झह ] किसी चीज से उसके छोटे छोटे एक के बाद एक । उ०-मर भर तोप झडाझड़ मारो।- अगों या प्रयो का ट्ट टूटकर गिरना । जैसे, भाकाच से तारे कबीर० २०, पृ० ३८ | २ जल्दी जल्दी। मठना, बदन की धूल झड़ना, पेट में से पत्तियाँ झडना, वर्षा: महामदि-कि० वि० [ मनु० ] दे॰ 'झडाझड' । उ•-रन में की वूदें झड़ना। पैठि झवाझरि खेल सन्मुख सस्तर खावै ।-चरणमानी, मुहा०-फूल झडना । दे० 'फूल' के मुहावरे । पृ० ५७। २ अधिक मान या सख्या मे गिरना। मड़ी-सहा- स्त्री० [ हिं. झडना अथवा से कर (- झरना) या देथी सयो० क्रि०-जाना!-पटना। झही ( = निरतर वर्षा)] १ लगातार झड़ने की क्रिया। ३ वीर्य का पतन होना। ( बाजारू)। वूद या कण के रूप में बरावर गिरने का कार्य या भाव । संयो० क्रि०--जाना। २ छोटी दूदों का वर्षा । ३. लगातार वर्षा | बराबर पानी ४. झाडा जाना । साफ किया जाना। ५. वाद्य का बजना । जैसे, बरसना। ४. बिना रुके हुए लगातार बहुत सी बातें कहते नौवत झड़ना। जाना या चीजें रखते, देते अथवा निकालते जाना । जैसे,- मरप-सहा स्त्री [अनु०1१ दो जीवों की परस्पर मुठभेड़ । उन्होंने वातों (या गालियो) की झड़ी लगा दी। लडाई । २. क्रोध। गुस्सा। ३ मावेश । जोश । ४. माग क्रि०प्र०-धना ।-बांधना । —लगना।-लगाना। की ली। लपट । ५ ताले के भीतर का खटका जो चाभी के पाघात से हटता झड़प-क्रि० वि० [ देशी झडप्प या मनु० ] दे० 'झड़ाका'। बढ़ता है। मड़पना-क्रि० म० [अनु.] १ माक्रमण करना । हमला करना। झणझण, झणझणा-सा श्री [सं०] झन् झन् की ध्वनि । झनझन वेग से किसी पर गिरना। २. छोप लेना । ३ लडना । का शब्द (को०)। झगड़ना । उलझ पड़ना। मात्कार--सबा पुं० [सं०] दे॰ 'झनकार [को॰] । संयो० क्रि०--जाना !-पड़ना। झन-सश सी. [ अनु० ] वह शब्द जो किसी धातुखड मादि पर ४ जवरदस्ती किसी से कुल छीन लेना । भटकना। माघात लगने से होता है। धातु के टुकडे के बजने की ध्वनि । संयो०नि०-लेना। यौ०-झन झन । मरपा-सद्या स्त्री० [मनु० या देशी झड़प्प हापापा । गुत्थमगुत्या मनक-सहा श्री. अन.1 झनकार का धब्द। झन झन का शब्द यो०-झडपाझड़पी = हाथापाई । कहा सुनी। जो बहुधा धातु मादि के परस्पर टकराने से होता है। जैसे, मंडपाना-क्रि० स० [पनु.] दो जीवों विशेषत पक्षियो को हथियारों की झनक, पाजेब की झनक, चूडियों की झनक । ताना।-( क्व.)। उ.-ढोल ढनक झांझ झनक गोमुख सहनाई।-घुनानद, मड़पी-सन्ना बी• [अनु.] दे॰ 'झडपा'। पृ० ४८६ ! महवेरी-सज्ञा स्त्री० [हिं० झाड+बेर ] १ जगली बेर। २. १. मनकना-क्रि० प्र०[मनु० ], झनकार का शब्द करना । २. जगली वेर का पौधा । क्रोष प्रादि में हाप पैर पटकना। ३ चिड़चिहाना। क्रोध महा०-झडचेरी फा कोटा-लड़ने या उलझनेवाला मनुष्य । मे प्राकर जोर से बोल उठना। ४ दे० 'झोखना' । व्ययं झगड़ा करनेवाला मनुष्य ।। भनकमनक-सञ्ज्ञा स्त्री० [अनु.] मद मद झनकार जो बहुधा मडवरी-समा स्त्री॰ [हिं०] दे० 'झड़वेरी'। पाभूपणो भादि से उत्पन्न होती है। उ०-झनक मनक धुनि महमाईल-सदा स्त्री० [हिं० झड (झड़ी)+सं० वायु, हि होत लगत कानन को प्यारी । -व्रज० ग्र०, पु. ११६ । वाइ] वह वायु जो कड़ी लिए हो। वर्षा की झड़ी से भरी मान एका झड़ा से भरी मनकवाव-सज्ञा खो० [ अनु० झनक+सं० वात] घोडों का एक हुई वायु । वह वायु जिसमें वर्षा की फुहारें मिली हों। उ० रोग जिसमे वे अपने पैर को कुछ भटका देकर रखते हैं। मति घण ऊनिमि पावियर भाभी रिठि झडवाई। बग ही मनकाना-क्रि० स० [ अनु० कनकना का प्रे०रूप ] झनकार उत्पन्न भला त बप्पडा घरणि न मुक्का पाए ।-ढोला०, दू० २५७ । करना । बजाना। झड़वाई-मद्या स्त्री० [हि झाड़ना ] दे० 'झटाई। मनकार-सका बी० [सं० रुणकार, प्रा० झणवकार ] दे॰ 'झकार' मड़वाना-क्रि० स० [हिं० झाउना का प्रे० रूप] झारने का काम उ०-घर घर गोपी दही बिलोवहिं कर कफन झनकार - दूसरे से फराना । दूसरे को झाड़ने में प्रवृत्त करना। सूर (शब्द०)। मड़ाई-सबा को [हिं० मारना ] माउने का भाव ! झाडने का मनकारना'--क्रि० प्र० [हिं० झनकार 1 दे० 'झकारना' । फाम ग झाडने की मजदूरी। मनकारनारे-कि. स० दे० 'झंकारना। महाक-कि० वि० [मनु०] ३० "झडाका'। झनकोर ---सञ्ज्ञा पुं० [हिं० भनकार या झकोर] दे० 'झनकार'। दाका- पु० [ मनु.] झड़प । दो जीवों की परस्पर मुठभेड़। उ०--लौका खोकै बिजुली चमकै भिगुर बोले झनकोर के। । --फि० वि० जल्दी से 1 बीघ्रतापूर्वक पटपट । --कवीर० श०, भा० ३, पृ. ३०।