पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१७९

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१५ या पड़ती है। जैसे,—यदि धोती पर कनखजुरा चढ़ने लगे करने के लिये पादर झटकारना या किसी का हाथ झट- ठो कहेंगे कि 'घोती मटक दो' भोर यदि राम ने कृष्ण का कारना । दे. 'भटकना'। हाय पका मोर कृष्ण ने भटका देकर राम का हाथ अपने मटक्कना किस० [हिं० झटकना ] झटका देना । मोंका हाप से अलग कर दिया तो कहेंगे कि 'कृष्ण ने राम का देना। उ.--भटक्कत इक्कन को गहि एक ।-4. रासो, हाप झटक दिया। पु०४१। संयोगक्रि-बना। मटमारी-कि० वि० [अनु.] जल्दी जल्दी। उ०.-पाजु २. किसी चीज को जोर से हिसाना । झोंका देना । झटका देना। मामोत हरि गोकुल रे, पय चलु भटकारी।--विद्यापति, मुहाव-भटककर- झोंके से। झटके से। ठेजी से। 30- पू० ३६५। भटकि पति उतरदि मटा नेकन पाकति देह। मई रति झटपट-मम्य० [प्रा. झडप्पड या हि. झट+ अनु० पट] मति नट को बठा प्रकि नागरी नेह । -बिहारी (शब्द॰) । शीघ्र । तुरंत ही। तत्क्षण | फोरना बहुत जल्दी । जैसे,- ३ दबाव डालकर पालाकी से या जबरदस्ती किसी भी चीज तुम भटपट जाकर बाजार से सौदा ले म.मो. उ.-राम लेना । ऐंठना। जैसे,—(क) माज एक बदमाश ने रास्ते में युधिष्ठिर विक्रम की तुम झटपट सुरत करो री-मारतेंदु० दस रुपए उनसे झटक लिए। (ख) पहिट जी माज उनसे अ. भा. १, पृ. ५०३। एक धोती भटक साए। मटा-साली [सं०] भू मावला। संयो०क्रि०-लेना। मटाका-कि० वि० [भनु० ] दे० 'भड़ाका। महा०-भटके का माल जबरदस्ती छीना या चुराया झटापटा -संहा घो० (प्रा. झटप्पट-छीना झपटी, (झडप्पिम = हुमा मास। छौना हुमा)] हलचल । उत्पात | उपद्रव । 30-तिह लोक भटकना-कि०म० रोग या दुख मादि के कारण बहुत दुर्वल या होत झटापटा, प्रब चार जुमन निवास हो -फबीर, सा०, सीप हो जाना । जैसे,—चार ही दिन के दुशार में वे तो पृ० ११॥ बिलकुल भटक गए। मटासा-सा स्त्री० [हि झड़ी ] बौछार । संयो०किल-बाना। झटि-समी० [सं०] १. छोटा पेड़। २. झाड़ी। गुल्म [को० । मटका--संजा पुं० [मनु०] १. झटकने की क्रिया । झोंक से दिया झटिका-सा स्त्री० [सं० दे० 'माटा'। हुमा हलका पक्का । झोंका। झटितिल-क्रि० वि० [४०] १ भट। चटपट। फौरन । उ०-पिर मोतियन की माल है, पोई काचे धाग। बतन करो तलाल । तुरत । ०-कटत झटिति पुनि भूतन भए । प्रभु झटका पना, नहिं टूट कहुँ लागि :-संतवाणी, पृ०४३। यह बार वाहु सिर हुए। -तुलसी (शब्द०)। २ विना क्रि० प्र०-साना । वेना 1-मारना । सगना ।-लगाना । समझे चूम। २. भटकने का भाव । ३ पशुबध का वह प्रकार जिसमें पशु एक मटोका-सज्ञा पुं॰ [देश॰] वह खाट जिस की बुनावट टूट टूटकर ही मापाव से काट डाला जाता है। उ०--मुसलमान के ढीली हो गई हो। उ०-माटी के कुडिल न्हवामी, झटोले जिवह हिंदू के मार झटका 1-पलट्, पृ० १०६ । सुलामी। फाटो गुदरिया विद्यामो, छोरा कहि कहि पोली। यौ०-भटके का मास - उक्त प्रकार के मारे हुए पशु का मोस । --पोद्दार ममि०प्र०५० ६१७ । ४. पापत्ति, रोग या शोक मादिका माधात। मट्टी-कि० वि० [अनु॰] दे॰ 'झट' ! उ०-दुमं तीन पानं य- नि०प्र०-उठाना साना ।-लगना। तोहि पान । वहै पग झट्ट सुदाहिम घट्ट ।-पृ० रा०, २४ } ५. कुश्ती का एक प घिसमें विपक्षी की गरदन उस समय जोर १७५॥ से दोनों हाथों से दवा दी जाती है जब वह भीतरी दाव करने मठी-कि० वि० [हि. भट] शीन। दे० 'मट'150-जट जावे के इरादे से पेट में मुस पाता है। जद जावे । झठ सेस गयो समझावे।-रघु० रू., पृ० १५६ । मटकाना -कि. हि. भटकना भटके से स्यानच्यूत कर मड़ल-संवा स्त्री [हि• झड़ना ] १. दे० 'झड़ी'।२ साल के देना। झटके से मस्तव्यस्त कर देना ।-३०-यहि सालच भीतर का खटका जो चामी के माघात से घटता बढ़ता है। अंकवारि भरत हो, हार ठोरि चोलो झटकाई।-सुर मड़कना-कि. स. [ अनु.] दे० 'मिडकना'। (शब्द०)। मडक्का -हा पुं० [ मनु• ] दे० 'महाका' । मटकार-संशो• [हिं०] १. झटकारने का भाव । भटकने झड़मदाना-कि• शु० [मनु०१ दे० 'झिरकना'। दे० 'झंझोडना' । का भाव वा क्रिमा। २.दे० 'फटकार'। मदन--पशाखी [हिं० झड़ना] १. जो कुछ झड़ के गिरे। झडी मटकारना-क्रि० स० [अनु॰] किसी चीज को इस प्रकार हुई चीज। २ झड़ने की क्रिया या भाव। ३ लगाए हए हिमाना जिसमे उसपर पडी हुई दूसरी चीज गिर पड़े या धन का मुनाफा या सुद।-(व.)। अलग हो जाय । झटकना। जैसे, सर पड़ी हुई गर्द साफ यो०-महनशन-२० करन'।