पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२११

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मूली मलो-सरा सी• [हिं० मुलना ] १ वह कपड़ा जिससे हवा करके झानि झेरा।-दादू (शब्द०) । (ख) दीपक मैं घरधो पारि मन मोसाया जाता है। परती। २ खलासियों मादिका देखत भुज भए पारि हारी हो घरति करत दिन दिन को झेरो। जहाजी विस्तर जिसके दोनो सिरे रस्थियों से बांधकर दोनों --सूर (शब्द०)। (ग) सु दर वाही बचन है जाहिं का मोर अंधी लुटियों या खमों मादि में बाय दिए जाते हैं। विवेकानातक मेरा मैं परयो वोलत मानो भेक-सुदर प्र०, मा०२, पृ. ७२६ । २. छोटा सोता। झिरी । पौडे पापीवाला मूसर -संदा पुं० [सं० युग, हि. जुमा ] वह लकडी जो पैलो को गढ़ा।३ समूह । झड। नाधने लिये उनके फंधों पर रखी जाती है। जूना। मल-सहा सौ. [ हिं० झेलना] १. पाना में तैरने प्रादि में हाप उ.--असर भार न मल्लही गोधा गावड़ियाह । इम बस मार पैर से पानी हटाने की क्रिया । २ हलका का या हिलोरा। न कपड़े मोला मावड़ियोह।-बांकी० प्र०, मा० २ उ०--सुरत समुद्र मगन दपति सो झेलत मति सुख भेल ।- पृ०१५। सूर (शब्द०)। ३ झेलने की क्रिया या भाव । मूसा-सया पुं० [ देश० ] एक प्रकार की बरसाती घास । गुलमुला। 1 गुलमुला मेल-सशस्त्री० [हिंग-मेल- बिलक। देर । झेर । उ०--(क) पसजी। बड़ा मुरमुरा। सब कह देखि भूप मणि बोले सुनह सकल मम बैना। भये विशेष-यह घास उत्तरी भारत के मैदानों में मधिकता से होती कुमार विषाहन लायक उचित झेप कछ है ना।-रघुराज है पौर इसे घोडे तथा गाय वैल मादि बड़े चाव से खाते है। (शब्द०) (ख) झांकति है का झरोखा लगी लग लागिवे में डाल-या पु० [सं० जयन्त, हि झा] झडा । ध्वज | उ.- को इहाँ झेल नही फिर ।--पद्माकर (पाद०)। कहे कासी परत लाल मेरे बहुत। पाय दल जावे तहत क्या क्या मेलना-क्रि० स० [वेल (- हिलाना डुलाना)] १. कपर हो सरयत खबर। दक्खिनी०, पृ०४६ । लेना। सहारना। सहना। बरदाश्त करना । जैसे, दुख मप-सश श्री• [हिं० झपना ] लाज ! शमं । हया । भेलना, कष्ट झेलना, मुसीवत झेलना। २०-टूटे परत मकास मपना-क्रि०म० [हिं० छिपना शरमाना। लबाना। लज्जित होना। को कौन सनत है झेलि ।-कचीर ( शब्द०)। २. पानी में संयो० कि०-जाना। तेरने या चलने में हाप पैर से पानी हटाना। पानी को हाथ मेकनारे-क्रि०स० [धनु.] मकाना । बैठना। उ.-(क) ढोलइ पैर से हिलाना । १०-(क) कर पग गहि अंगुठा मुख मेलत। मनह दिमासियठ, साँच कहा छह एह । फरह झेकि दोनू चढा प्रभु पौढ़े पालने अकेले हरखि हाखि अपने रग खेलत। विष कुटन संभालेह ।-ढोला०, दू. ६३७ । (ख) पाली टापर सोचन विधि बुद्धि विचारत वट बाढ़यो सागर जल झेलत। वाग मुखि, वियर राजदुमारि ।-ढोला०, ३० ३४५ । -सूर (शब्द०)। (ख) बालकेलि को विशद परम सुख सुख विशेष-- अंट के बैठने को राजस्थानी में झेकना कहते हैं। समुद्र नृप झेलत ।-सूर (शब्द०)। ३. पानी में हिनना। ऊंट को वैठाते समय के किया जाता है। उसी पनुकरण हेलना। जैसे, कमर तक पानी झेपकर नदी पार करना । पर यह शब्द बना है। ४. ठेलना । ढकेलना। मागे बढ़ाना । पागे चलाना। 30- मेपना--मि० भ० [हिं०] पना' । दुहुव की सहज विसात दुहें मिलि सतरंज खेलत । उर, रुख, मेर -सपाली [फा० देर ] बिलब । देर । उ०-(क) चलह नैन चपल भरव चतुर बराबर लत !-हरिदास (शब्द०)। ५ पचाना । हजम करना । ६ सहना । ग्रहण करना । तुरत जिनि झेर लगावह प्रवही पाइ करी विश्राम ।-सूर मानना । 30-पापन मानि परे ठो परे रहे फेती करी (शब्द०)। (ख) काहे फो तुम झेर लगावति । दान देह घर मनुहारिन झेनी-मतिराम । (शब्द०)। जाह वेचि दघि नुम हो को वह भावति ।-सूर (शब्द०)। मेर -सा पु० [हिं० छेडना ] बखेडा। झगड़ा। उ०--(क) मेलनी-सक्षा स्त्री० [हिं० झेलना ] एक प्रकार की जजीर जो कान सूरदास प्रभु रासबिहारी श्री बनवारी या करत काहे मेरे । के घामूषण का भार संभालने के लिये वालों में पटकाई -न्द०)। (ख) मधुकर समाना ऐसा रन । नदकुमार जाती है। छाडिको लेह योग दुलन की टेरन । जहान परम उदार नंद महा-समा बी० [हिं० झेलना] बच्चा जनते समय स्त्री को सुन मुक्त परी किन झेरन ।-सूर (शब्द॰) । विशेष प्रकार से हिलाने इलाने की क्रिया। मेरना --क्रि० स० [हिं० देखना] भेलना । सहना । उ०-कह कि०प्र०-देवा । नृप पद पद ते गहो गहे रानि सुख झेरि । मन में मयो न मैल मेलुम्मा--सक पुं० [हिं० ] दे० 'मला' । कछु लागे सेवन फरि ।-विधाम (शब्द०)। भैर -सपा पुं० [हिं० बहर] ३. 'जहर' 10.--जपुरनाथ पैसा मेरनारे-क्रि० स० । हि० देहना ] शुरू करना । मारम करना । धाम बेटा तीन पाया। प्याला झर पाया एफ बेटा नै मराया । धाम वेटा की उ.---मेरी वडेरी जाहि केरी मुरली बहुतेरी बनी।- -शिखर०, पृ०७४। गोपाल (शब्द०)। झॉफ-सरा श्री. [सं० युज, युक, युक्त, हि झुकना ] १. झुकाव । मेरा पुं ० [हिं० भेर?] १. झझट । बखेड़ा । झेर। प्रवृत्ति । २. तराजू के किसी पलड़े का किची पोर मयिक उ.-(क) जीव का जनम का जीवक माप ही पापखे नीचा होना।