पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२१५

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मोला १८६१ मोरना झोला-सया पुं० [हिं० झलना ] झोका। मंफोरा । हिलोर। माद-संवा पुं० [हिं० झोंक 1 पेट । उदर। उ०-कोई कर्म ज०-कोई खादि पवन कर झोला। कोई करहि पात मस विहीन या नासा विन कोई। झौंद फुटे कोई पड़े स्वासा दिनु होला।जायसी (शब्द०)। होई।-सूदन (शब्द०)। मोलाहल-सबा पुं० [सं० षाज्वल, प्रा. मलहल] (युद्ध को) मार'-सक्षा पुं० [ मे० युग्म, प्रा. जुम्म, हिं० झूमर ] १. झुड! चमक। दीप्ति । प्रकाशा। उ०-हय हिसहि गज चिकरि समूह । उ०-छकि रसाल सौरम सने मधुर माधुरी गंध । ठोर मगर सम दिदिप कुलाहल । बलि पयिनि बेताल नदि नदिय ठोर झोरत झपत झार मोर मधु अध। -बिहारी (शब्द०)। झोलाहल । -पृ. रा०, मा५४ । २. फूलों, पत्तियों या छोटे छोटे फलो का गुच्छा । उ०- मोलिका-सधा स्त्री० [हि. झोली] दे॰ 'झोली'। 30---ऊषम वाख कैसी मोर झलकति जोति जोवन को चाटि जाते भौंर पति होत जात धुंघट मैं नहि जखाठ छूटत बहरग उडत पविर जो न होती रग चपा की।-(शब्द०)। ३ एक प्रकार झोलिका! मारतेंदु प्र०, भा॰ २, पृ० ३६३ । फा पहना जिसमे मोतियों या चांदी सोने के दानो के गुच्छे लटकते रहते हैं। भवा। उ०-कलगी दर्रा मोर जग्ग मोलिहारा-सज्ञा पुं० [हिं० भोली+हारा (प्रत्य॰) 11 झोली सरपेच सुकुडल ।—सूर (शब्द०)। ४ पेड़ों या झाड़ियों लटकानेवाला । २ कहार । ( सोनारों की बोली)। फा घना समूह । झापस । कुज । उ०—बस झोर गंभीर झोली'-सशा सी० [हिं० झूलना] १. इस प्रकार मोड़कर हाय भौतिकर नहिं सूझत दस पासा। -रघुराज (शब्द) में लिया या लटकाया हुमा कपड़ा कि उसके नीचे का भाग ५ दे० 'झावर'। एक गोल बरतन के प्राकार का हो जाय और उसमे कोई मौरव-सद्या श्री० [अनु० ] झंझट । ३०-तुम काहे को मोर वस्तु रखी पा सके। कपड़े को मोड़कर बनाई हुई थैली। करी इतनी, नहिं काज है लाज हिये मढ़िने को।-नट०, धोकरी । जैसे, गुलाल की झोली, साघुमों की झोली। पु०५४। विशेप-यह विची चौखटे कपडे के चारो कोनो को लेकर इकट्ठा मोरना-कि०म० [मनु० 1१ गूजना । गुजारना। उ०-यकि बांधने से बन जाती है। कभी कमी इसने नीचे के खुले हुप रसाल सौरभ सने मधुर माधुरी गंध । ठोर ठौर कौरत झंपत चारो कोनो को कुछ दूर तक सी भी देते हैं। झोर झोर मधु भष। बिहारी (शब्द०)। २. दे० 'झोरना। मुहा०-कोली छोडना = बुढ़ापे के कारण शरीर के पमड़े का हिना = बुढ़ापे के कारण शरारक पमद का मौरा-सुका पु० [हि. ] दे० 'झोर। ....HETorre भल जाना । झोली डालना-मिक्षा मांगने के लिये झोली . माराना'-त्रि० प्र० [हिं. मौवा या झावरा] १. झावरे रंग का उठाना । साघु या भिक्षुक हो जाना। झोली भरना = साधु हो जाना । बदरंग हो जाना । काला पड़ पाना । २. मुरझाना। को भरपूर मिक्षा देना। कुम्हलाना। २. घास धिने का जाल । ३ मोट । चरसा । पुर ४ वह कपड़ा मौराना -कि. म. [ हि. अमना ] इधर उघर हिलना। जिससे खलिहान में मनाज में मिला हमा भूसा उड़ाकर अलग झूमना । उ०-साठिहि रक चले मोराई। निसंठ राव सब किया जाता है।५ पौरारती का एक पेंच । कह गौराई !--जायसी (शब्द॰) । बिशेष-यह पेंच उस समय किया जाता है। जब विपक्षी किसी मौसना-क्रि० स० [हिं० दे० 'झुलसना'। 10-नाम ले चिलात प्रकार अपनी पीठ पर मर जाता है। इसमें एक हाथ उलटकर * उसकी कमर पर देते हैं और दूसरे से उसकी टांगों की पिलसात पकुसात पति वा सात तौसियत झोंसियत भारहीं। सघि पका कर उठाते है। -तुलसी (शब्द०)। मौनी-सा स्त्री• [देश॰] टोकरी । दोरी। १. सफरो बिस्तर जो चारों कोनों पर लगी रस्सियों वारा खभे पेड़ माद्रि में बांधकर फैलाया जाता है। रस्सियों का मोर-सका पु. [पनु माय झौव] १. झट । बखेडा । हाजत । एक प्रकार का फंदा जिसके द्वारा पारी पीजों को उठाते हैं। तकरार होरा। विवाद। उ०---()नहीं ढीठ नैनन ते पौर। कितनों में बरजति समझावति उसटि करत हैं मौर। मोली-सहा स्त्री० [सं० ज्वाल या झाला ] राख । भस्म । -सूर (शब्द.)। (ख) महरि तुम अब चाहति फछ मुहा०---झोली बुझाना= सब काम दो पुछने पर पीछे उसे करने भोर । बाट एक मैं कही कि नाही पाप पगावति मौर।- घमना। कोई वात हो जाने पर म्यर्य उसके सवष में कुछ सूर (शब्द.)। २ गट। फटकार। कहासनी। कंपा करना । जैसे,-पचायत तो हो चुकी भन क्या झोली बुझाने नीषा। उ०--भौर को तउ झोर सहै पैन पावरी रावरी पाप हो? प्रास मुनेहै।-द्विवदेव (एम्द०)। विशेष-यह मुहावरा घर जलने की घटना से लिया गया है मौरना-फि. स. [हिं० झपटना] घोप मेना। दवा सेना। पर्यात् जब घर जलकर राख हो गया तर पानी लेकर बुझाने झपटकर पकाना।-30-इती पापि के दुग्ग पो बीर के लिये पहुंचे। पौरयौ। मृगाधीश ज्यों मुग्ण के जूद मोरयो ।-सुदर मॉमट -सा पुं० [हिं० झट ] दे० 'मस्ट' ।