पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२१६

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मौरा १९६२ टंका मौरा- [अनुकाय झा] झंझट । बखेड़ा । हुज्जत । झौल-संग्रा पुं० [हिं॰] दे॰ 'झोल' । उ०--यह नर गरम मुसह्या तकरार शहौरा। विवाद। देखि माया को झोस !-कबीर सा०, पृ.५४३ । क्रि० प्र०---करना ।-मघामा । मौवा-संघ पु० हि० झावा ] रहठे की बनी हुई वह छोटी पौरी यौ०-होरा झोरा। जिसमे मजदूर लोग खोदी हुई मिट्टी भरकर फेंकने के लिये मौरी--बाबा [हि झोल] दे॰ 'झोले' । उ०—उलटा कुम जाते हैं। संघिया। भरे षड नाही बगुला खोले झोरी।--सं० दरिया, पृ० १२७ । मौहाना-कि. भ. [अनु॰] १.गुर्राना। २.बोर से चिरचिड़ाना। मोरे-कि० वि० [हि. धोरे] १. समोप। पास। निकट। कोष में मल्लाना। २ साप। संय। उ०-सौरे मंग सूझत न पोरे खोलि झयूक्षना@-क्रि० स० [हि.] दे० 'भूलना। 10-12 पाए दौरे राति भषिक लो राधिका के झोरे ई सगे रहैं।-देव फिर वासुदेव बोले । ज्यो मानंद मद सूझ्यूसे-वविखनी,. (सन्द०)। पु० १२२ । ट-संस्कृत या हिंदी वर्णमाला मे ग्यारहवा व्यंजन पो टवर्ग का टककपवि-सहा पुं० सं० टएकपति] दे० टकपतिकोना पहला वर्ण है। इसका उच्चारण स्थान पूर्षा है। इसका टंककशाला-सक्षबी. [सं०कशाला ] टकसाल पर। उच्चारण करने में वालु पोम का प्रग्न माग गाना टंकटीक-सझा पुं० [सं० प्लूटोक] शिव। पड़ता है। टंकण'-सया पु० [सं०१ण ] १ सूहागा। २ पातु को पोज में । टंक'-सका पु० [सं० ट ] १.एक तीस लो चार माशे की टौका मारकर जोड लगाने का कार्य। ३. घोड़े की एक पाति । होती है। ४ एक देश जिसका नाम जो बृहत्सदिता में कॉकरण पाविक विशेष-कोई कोई इसे तीन माशे या २४ रत्ती की भी साथ भाया है। मानते हैं। टकण-सा पुं० [भनुध्व.] टाइपराइटर पर दकित करनेका कार्य। २ वह नियत मान या बाट जिससे वोल तौलकर पातु उकसाल टाइप करना । 3.-छपाई भोर टकरण की कठिनाइयों कैसे में सिक्के बनने के लिये दी जाती है। ३ सिक्का । ४ मोती पुर हो।--भा० शिक्षा, ३०५६ । की डोल जो २१७ रती की मानी जाती हैं। ५ पत्पर काटने कासार-समा ०। या गड़ने का पौजार । टॉकी। छेनी । ६ कुल्हाड़ी । परशु । । टंकन-सका पुं० [सं०] ३० 'टफरण'। 30-एक मोर को प्रेम, घोर फरसा। कुदाल । ८. खम। तलवार । ९. पत्थर का करने परजोरिए । ज्यो टकन में हेम, पिपरम प्रान पकोरिए। कोटा हया टुकड़ा। १०.ग। ११ नीष कपिस्प । नीला कैप । खटाई। १२. कोपा हीष। १३. वर्ष। पभिमान । १४ पर्वतका सह । १५ महागा। १६ कोष। सपाना । टैकणयंत्र--सका [हिं० टंकण+सं. यात्र] एक प्रकार का छापने का छोटा यत्र जिसपर अक्षरों की पत्तियां प्रमग ममप लगी १० सपूर्ण बाति का एक राग पो बी, भैरव पौर कान्हड़ा के योग से बना है। होती है पर जब छापना होता है तो उन्हीं पक्तियों को उप- विशेष-इस गाने का समय रात १६ दर २० दातक है। लियों से दबाते जाते हैं पोर यंत्र- ऊपर लगे हुए कागज इसमें कोमल ऋषभ लगता है और इसका सरगम इस प्रकार पर मखर अपते जाते हैं । टाइपराइटर । 'है--सा रे ग म प ध नि । हनुमत्के मत से इसका स्वरग्राम विशेष-कार्वन पेपर की सहायता से इस पर पर एकाधिक है- ग म प ध नि सा सा। प्रतियोक्ति की जा सकती है। १८ म्यान । १९ एक कोटेदार पेड़ जिसमें वेल या परापर टंकना-कि०म० दे० [हिं० टकना ] दे० 'टेकना'। फल लगते है। २०. सौंदर्य (को०) ! २१ गुरुफ (को०)। टंकना -क्रि० स० [?] टकना। मात करना । उ०-बट्टन टक'-सबा पुं० [अ० टैक] १ तासाब, पानी रखने का होज । सील कांठ छोन ह्र बज्ज मान दनि फिरे।-पु. रा., २५81 टंका -समा [7] पल्पांस। योहा प्रश। उ.-जाको जस टक सातो पोप नव खंग महिमब्ल को कहा ब्रह्मर ना समात टंकपति-सहा पुं० [सं० टङ्कपति ] टकसाल का पषिपति । है।-सूषण००, पृ०२२२। टंकवान-सहा पुं० [सं० टद्वत् ] एक पहाड़ जिसका नाम वाल्मीकि टंफक–समा पुं० [सं० टस्क-] १ चांदी का सिक्का या रुपया । २. रामायण में पाया है। टॉकी। छेनी (को०)। टंकवाना-क्रि० स० [हिं० टकवाना ] दे० 'टकाना' । टंककर-संवा पुं० [हिं० टकरण ] टकण यत्र पर टकरण कार्य करने- टंकशाला-सबा बी० [सं० टकशाला ] टकसाल । वाचा पक्ति। (मं टाइपिस्ट)। टंका-समापुं० [सं० १.पुराने समय में चांदी की एक टीम