पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२३०

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टहका टोका टहकाकु-सक्षम पु० [हिं० टूहूकना पावाज । स्वर । उ०-टहूका सोना । जैसे, चकती टकना, गोटा टांकना, फटा जूता मोर का साले। हिये मे हुक सी चाले ।-राम. धर्म, टांकना। पु० ३८। संयो० कि०-देना।लेना। टखg-या स्त्री० [हिं० टहल ] दे० 'टहप'। उ०-सो वह ३. सीकर पटकाना। मुई तागे से एक वस्तु पर दूसरी इस प्रकार वीरी नित्य अपने हाथ सौं श्री ठाकुर बी की सेवा टहेल लगाना पा ठहराना कि यह उसपर से न हटे या गिरे। करती।-दो सौ बावन०, मा०१, पृ. १२१ । जैसे, बटन टोकना । मोती कना। दहोका-सपा पुं० [हिं० ठोफर अथवा ठोका हाथ या पैर से दिया संयो.क्रि०---दिना।--लेना। हुमा धक्का । झटका। ४ सित, चाकी पारिको टॉफी से गड्डे करके खुरदरा करना। महा.-टहोफा वेना-हाथ या पैर के धक्का देना । झटकना। कूटना। रेहना। छीलना। ढकेलना। ठेबना। टहोका खाना=धक्का खाना । ठोकर संयो० कि०-देवा । लेना। सहना । उ०—मैने इनकी ठंडी सांस की फांस का टहोका ६ किसी फागज, ही या पुस्तक पर स्मरण रखने के लिये खाकर मुझलाकर कहा ।-इशा पल्ला खां (शब्द०), लिखना। दर्ज करना । चढ़ाना। पैसे,--ये दस रुपए भी बही टांक-सा पुं० [सं० टाडू] एक प्रकार की शराब [को०] । पर टाक लो। टोफर-स . [ से• टाङ्कर%] 1 कामी। लपट । २. कूटना संयो० कि०-मा।-लेना। चुगलखोर को मुहा०-मन मे टॉक रखना - स्मरण रखना । याद रखना। टांकार-सक्षा पुं० [सं० टासार ] दे॰ 'टकोर' को०] । १७. लिखकर पेश करना। दाखिल करमा । जैसे, अर्जी टोकना। टॉक'-सका श्री० [सं० टङ्ग] १. एक प्रकार की तौल जो चार ८ घट कर जाना। उड़ा जाना । खाना। (बाजारू)। जैसे- माशे की (किती किसी मत से तीन माशे की) होती है। देखते देखते वह सब मिठाई टोक गया। इसका प्रचार पौहरियो मे है। २ धनुष की शक्ति की परीक्षा संयो• क्रि.-जाना। .लिये एक तौल ओं पचीस सेर की होती थी। . मनुचित रूप से रुपया पैसा प्रादि से लेना। मार लेना । उड़ा विशेष-इस सौलो पटखरे को पमुष की रोरी में प्रषिकर लेवा। -विलाल)। लटका देते थे। जितने वटसरे बांधने से धनुष की गरी अपने टॉकली-सहा श्री.[]पाल रापेटने को घिरनी या गहारी। (लस.)। पूरे सपान या खिचाव पर पहुँच जाती पी, उतनी टाका, टाकली-- स्त्री. [सं० ] एक प्रकार का पुराना बाजा वह धनुष समझा पाता पा । बसे,--कोई धनुष सवा टॉक का, कोई डेढ टीका का, या सक कि कोई दो या तीन टाक तक जिसपर चमड़ा मढ़ा होता था। होता था जिसे मत्यत बलवान पुरुष ही बढ़ा सकते थे। टॉका-धमा पु० [हिं० टोकना] १. वह बड़ी हुई कील जिसने दो वस्तुएँ । विशेषतः पातु की चद्दरें) एक दुसरेचे अड़ी रहती ३. जांच । कूत । पवाण । प्राक। ४ हिस्सेदारों का हिस्सा। है। जोड मिनेवाली कील या काटा। बखरा । ५ एक प्रकार का छोटा कटोरा। उ.-घोउ टाक मह सोध रावा । लौंग मिरिच तेहि ऊपर मावा ।-बायसी क्रि० प्र०-उसना। --निकालना । —लगना। -कागाना। (शम्द०)। सीयन का उतना पर जितना सुई को एक बार कार से नीचे और नीचे से ऊपर ले जाने में तैयार होता है। सिलाई का टॉक-सवा स्त्री० [हिं० टकना लिखायट । फिसने का अंक , पुपर पृथक् प । सोभ । जैसे,-दो चौके लगा दो। ज्यादा या चिह्न । चिच्चन । १०-छतो नेह कागर हिये भई लखाय काम नहीं है। र टाक। विरह सज्यो उघरयो पव सहा को सो पक।- कि०प्र०--उधना-खुचना ।-टूटवा ।-लगना |--समाना। बिहारी (शब्द०)। २ कलम की नोक । लेखनी का उक। उ०-हरि खाय चेत चित मूखि स्याही झरि पाग, बरि वाय मुहा०-टीका पसाना= सीने लिये कपडे मादि में मार पार' सुईगमना। टीका भरना - सुई से छेदकर तागा फंसाना कागव कलम टोक परि षाय ।-रघुनाय (थव्य.)। या भटकावा । सीना ! सिलाई करना । टीका मारना=३० टॉकना-क्रि० स० [सं० टकन] १. पक वस्तु के साथ दूसरी वस्तु 'टांका मरना। कोकीन पापि षड़कर षोड़ना। फील कोटे ठोककर एक ३. सिलाई सीवन । ४ टंकी हई पकती। थिगली । चिप्पी । वस्तु (धातु की पदर पालि) को दूसरी वस्तु में मिलाना या ' . .शरीर पर घाव या कटेप स्पान की सिवाईको प्राव, एक वस्तु पर दूसरी को बैठाना । जैसे, फूटे हुए बरतन पर पूजने के लिये की जाती जोर। चिप्पीटकना। क्रि०प्र०-उखड़ना।-खुलना।-टूटना -लगना ।—लगाना। संयो०क्रि०-देना -लेना। ६ धातुपो के.जोडने का मसाला जो उनको गलाकर बनाया २. सुई के सहारे एक ही तागे को दो वस्तुमों के नीचे उपर ले __जाता है। जाकर उन्हें एक दूसरे से मिलाना । सिचाई के द्वारा जोड़ना । क्रि० प्र०---भरना।