पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२३२

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टॉट पट्टा - टॉगना १८४८ टोन कहते हैं। (ख) बाहरी टांग-जब दोनों पहलवान टॉगी--संह की हिटगी ] कुल्हादी। . मामने सामने छाती से थाती मिलाकर मिड़े हों तब विपक्षी टॉगन-संज्ञा स्त्री० [ देरा० मा हि० ककूनी ( वैसे ही जैसे किंशुक से

  • घुटने के पिछले भाग में पोर से टांग मारने को बाहरो टेसूबाजरे या कॅगनी की तरह का एक मनाज जिसकी

टोग कहते हैं। (ग) बगली दोग-विपक्षी को बगल में पाकर फसल सावन भादों में पककर तैयार हो जाती है। बगल से उसके पैर में टांग मारने को बगली टोग कहते हैं। विशेष—इसके वाने महीन मोर पीले रंग के होते हैं। गरीब (घ) भीतरीट पर विपक्षी पीठ पर हो, तब मौका लोग इसका भात खाते हैं। पाकर भीतर ही से उसके पैर में पैर फंसाकर झटका देने को टॉपना-संह पुं० [हिं०] दे०. टागन । भीतरी टाँग कहते हैं। (ब)भड़ानीटांग-विपक्षी को दोनों टॉच'-समस्त्री० [हिं० टॉकी] ऐसा वचन जिससे किसी का टांगों के बीच में टांग फंसाकर मारने पहानी टांग कहते हैं। चित्त फिर जाय और वह जो कुछ दूसरे का कार्य करनेवासा (३) चतुर्षांचा पौपाई भाग। बहारुम । -(दलाल)। हो, उसे न करे। दूसरे का काम बिगाड़नेवाली बात या टॉगना-संह पुं० [सं० तुरंगम या हिं० ठेगना ] छोटी जाति का वचन । मांजी। उ.-मेरे व्यवहारों में टाप मारी है, मेरे घोडा।बह घोड़ा जो बहुत कम ऊंपा हो। पहाड़ी टट्ट । मित्रों को ठंठा भौर मेरे शत्रुपों को गर्म किया है। विशेष-नेपाल और परमा टोपन बहुत मजबूत भोर तेज भारतेंदु. , माग०, पृ. ५६ होते हैं। क्रि०प्र०--मारना। टाँगना-क्रि० स० [हिं.टॅगना] १. किसी वस्तु को किसी चे माधार से बहत योग सा लगाकर इस प्रकार पटकाना या । मा टाँच-सक औ•[हि. टाका] १.टीका सिताई। गोमा २. ठहराना कि उसका प्रायः सब भाग उस पाधार से नीचे टकी हुई पाती। पिगली। उ.--देह जीव जोग के सहा को पोर हो। २.किसी वस्तु को दूसरी वस्तु से इस भूषा टाँच न वाचा। तुलसी (शब्द०)। ३. छेद । सूराक्ष । प्रकार से बापना या फंसाना प्रयवा उसपर इस प्रकार टाँचा–संबा दौ• [देश॰] हाथ पैर का सुन्न पड़ जाना या सो टिकाना या ठहराना कि उसका (प्रयम वस्तु का ) सब जाना। टास। . (या बहत सा) भाग नीचे की मोर मटकता रहे। किसी क्रि०प्र-धरना !-पकड़ना।-होना। - वस्तुको इस प्रकार ऊँचे पर ठहराना कि उसका पाषय । १५ टाँचना-क्रि० स.[हिं० टच] १. टांकना । डोम लगाना। कपर की मोर हो। लटकाना । जैसे, (खूटी पर) कपड़ा सोना। उ०-देह जीव जोग के सखा मृषा टाँच नटायो।- टोगना, परवा टांगना, भार टांगना। तुलसी (शम्द०)।२.काटना । तराशना । छोलना । छोटना । विशेष—यदि किसी वस्तु का बहुत सा मंथ माधार के नीचे सटकता हो, तो उसे 'टागना नहीं करेंगे। टांगना' और चना-क्रि.५० फूला फूला फिरना । गुलबरें उड़ाते हुए घूमना। 'लटकाना' में यह पता है कि 'टांगना' मिया में वस्तु के टाँचो'-सा श्री. [सं० टन (= रुपया)] रुपया भरने की लम्बी फंसाने, दिकाने या ठहराने का भाव प्रधान है भोर 'लटकाना' थैली जिसमें रुपए भरकर कमर में बाष लेते हैं। न्यौजी । में उसके बहुत से पंस को नीचे की पोर दूर तक पहुंचाने का न्यौली। मियानी । बसनी। भाव है। जैसे,-कुएं में रस्सी सटकाना कहेंगे रस्सी टांगना टाँची-संधाको [हि. टांकी ] भाषी। नहीं कहेंगे। पर टापना के प्रर्य में घटकाना का भी प्रयोग क्रि.प्र.-मारना। होता है। टॉप-संज्ञा स्त्री० [हिं. . 'टच' .. संयोगक्रि०-देना। टॉटी-सक पुहि . टट्टी ] खोपड़ी। कपाल । २. फासी बढ़ाना । झाँसी खटकाना । महा.-टोटके वास उड़ना= (१) सिराम उड़ना । (२) टाँगा'---संक • [सं० टङ्ग] बड़ी कुल्हाड़ी। सर्वस्व निकल जाना। पास में कुछ न रह जाना। (३) टॉगा-सपु. [७० टॅगना ] एक प्रकार की दो पहिए की गाड़ी खूब मार पड़ना। भुरकुस निकलना । टोटबास रहाना जिसका कोपा इतना ढीमा होता है कि वह पीछे की भोर कुछ सिर पर खूब चूठे लगाना। मारते मारते गिर पर बास झुका या मटका या पागे पीछे टया भी रहता है। तोगा। न रहने देना। टाट खुजाना=मार बाने को जी बाला। विशेष-इसमें सवारी प्राय. पीछे की पोरहो मुहकर बैठती कोई ऐसा काम करना जिससे मार जाने की नौबत माये। है और जमीन से इतने पास रहती है कि घोड़े के भड़कने मादि दंड पाने का काम करता। टॉट गंजी कर देना - (१) पर झट से जमीन पर उतर सकती है। इस गाड़ी पर मारते मारते सिर गंवा करना । (२) खूबसरवाना। पर उलटने का भय भी बहुत कम रहता है। यह प्रायः खूब रुपए गलवाना। खर्च के मारे हैरान कर देना। पास पहाडी रास्तों के लिये बहुत उपयुक्त होती है। इसमें घोड़े या का पर निकलवा देना । टोट गंजी होना-(0) मार बल दोनों जोते जाते हैं। खाते साते सिर गंजा होना। खून मार पडला। (२) म टॉगानोचन-सक को [ हि टाँग+नोचना) नोषखसोवासींचा * मारे धुर निकलना। सकरते करते पाहतम पापी।बींचातानी। रहबाना।