पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२३५

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लगने का एक प्रकार जिसमें दांत धंसता नहीं केवल छोलता टापर'-संपा ० रा०] १ भोदने का मोटा कपड़ा। चद्दर । या सरोंच डासता हुमा निकल जाता है। २. घोगों को थोव से बचाने के लिये मोढ़ाने का मोटा वस्त्र । दान-सभा पुं० [सं० स्थाणु (-धून पा चकली का खंभा) । तप्पटा जीन के नीचे का मोटा कपड़ा। उ०--(क) पिणि मान। दोहे पासठ पाइ, टापर तुरी सहाई-ढोसा, द. २७६ ! टान--सहानी.म. टनं] प्रेस में किसी कागज को एकाधिक (ख) घाली टापर बाग मुखि, झेश्य उ राजदुमारि । करहर चार छापने का भाव । एक टान प्राय एक हजार प्रतियों का किया टहूका निद्रा जागो नारि-ठोमा दु०३४५) ३. होता है।

  • तिरपाल 1. झोपड़ा।

टानना--क्रि० स० [हिं० टान+मा (प्रत्य॰)] मानना। रापर- साहि० टाप छोटी मोटी सवारी । टट्र मादिकी खींचना। सवारी। टानिक-वा पुं० [म. टॉनिक 1 वह पौषष को पारीर का बल टापा-सद्धा सं० [सं० स्थापन, हि. याप] ट । मैदान । २. बढ़ाती हो। बलवीर्यवर्धक पौषध। पुष्टिकारक पोषष। उजाड़ मैदान । कसर मैदान। ३. उछाल । फूट। लोग। ताकत की दवा। पुष्टई। जैसे.--परायटर ने उन्हें कोई टानिक दिया है। टाप-सखी-सं० स्पापन, थाप 11 घोड़े के पैर का वह सबसे महाक-टापा देना -लवे डग भरना। 30--कविरा यह ससार निषला भाग जो जमीन पर परता है मौर जिसमें नाख्न लगा में घने मनुष मतिहिन । राम नाम जाना नही भाए टापा दोन । -कबीर (शब्द०)। रहता है। घोड़ो का मर्धचंद्राकार पाचवल । सुम । उ०-- के बस चसहि पलहिं की नाई। टाप न चूह वेग भाषिकाई । ४ किसी वस्तु को ढकने या बंद करने का टोकरा । झाबा। तुलसी (शब्द०)।२ घोड़े के पैरों के जमीन पर पटने का टापू-सबा पुं० [हिं० टापा या टप्पा] १ स्थल का वह भाग जिसके शब्द । जैसे,---दूर पर घोड़ो की टाप सुनाई पड़ो। ३. पलग पारो पोर जल हो। वह सूखंड जो चारो भोर अल से घिरा के पास का तल भाग जो पृथ्वी से लगा रहता है और जिसका हो। होप २. टप्पा । टापा। घेरा उभरा रहता है।४ बेंत या और किसी पेड़ की लचीली साबरी-सशपु०प० टम्बर १ बालक । लडका । उ०-घर टहनियों का बनाइमा मछली पकड़ने का माया जिसकी पेवी को सब टावर मुवी सुदर कही न बार---सुदर. 40, भा. मे एक छेद होता है। मछली पकड़ने का ढोचा। ५. मुरगियो २, ५० ७५२ । २. परिवार । के बद करने का झाया। टा-सभा ०[ देश रस्सी की बुनी हई कटोरे के भाकार की टापड़-पy [ हि. टप्पा ] ऊसर मैदान । जाली भिसे बैलो के मुंह पर इसलिये चढ़ा देते हैं जिसमें वे टापदार-वि.हि.टाप+का०दार (प्रत्य)] जिसके सिरे या काम करते समय इधर उधर चर न सके। पाका। छोर पर के कुछ भाग का घेरा उभरा हमा हो ! जिसके ऊपर टामा-पट[अनु० टिमटिमी। हिमडिमी । 10-दुभि या नीचे का छोर कुछ फैला हुमा हो। जैसे, टापवार पाया। पटह मृदंग ढोलकी डफला टामक । मदरा तबला सुमरु खंजरी टापना'-कि.म. हि. टा+ना (प्रत्य॰)]१ घोड़ों का तबला धामक। सुदन (शब्द०)। पैर पटकना । टामकटोया-सा पुं० [हिं०] टकटोहना । टटोलना । विशेष-प्राय जब पाना पाने का समय होता है, उस घोड़े टाप क्रि० प्र०-मारनामधेरे मे टटोलना या भटकना। पटककर अपनी भूख की सूचना देते हैं। इससे 'टापने' का प्रयं कमी कभी 'दाना मांगना भी लेते है। टामन-समा पुं० सं० तन्त्र ] तविधि । टोटका। उ०-जानत हाँ जुदई मुंदरी पढि राम का जनु टामन कीन्हो । हनुमान २ टक्कर मारना। किसी वस्तु के लिये इधर उधर हैरान फिरना। (शब्द०)। ३. व्यर्थ इधर उधर फिरना। ४ छलना । कूदना। यौ.-टामन टूमन - सर्वस्व । उ०-इतना कहत हाय तब जोरे। टापना-क्रि० स० कुदना। फोदना । उछलकर सोषना। पैसे, टामन टूमत्त सब ही तोरे 1-राम० षर्म०, पृ. ३४६ । दीवार टापना। टोपना'.-f० म०[.प18 विना कुछ खाए पिए पड़ा टार'--- सबा पुं० [सं०] 1. घोडा।२ गाडू संग। ३. रहना । बिना दाना पानी के समय पिताना । जैसे,-सबेरे से श्री पुरुष का सयोग करानेवाला व्यक्ति। फटनासाल। बैठे टाप रहे हैं, कोई पानी पीने को भी नहीं पूछता 1२. ऐसी भेडमा। बात के पासरे में रहना जो होती हुई न दिखाई दे। व्यर्थ टार-स . [सं० मट्टास, हिं० टाल ] ढेर राशि । टास। प्रतीक्षा करना। पाथा मे पड़े पढ़े उद्विग्न और व्यग्र होना। ठार-सक • [हि.ठारना ] टालटुल । वि०३. 'टाल'।' स,-घटों से वैठे टाप रहे हैं कोई भावा बाता नहीं दिखाई टार".-सबा . [ रा०] एक प्रकार हर विसमें भगी होगी देता। ३. किसी रात से निराश और दुखी होना। हाय बीज पिरता रहता है। ममना। पछताना । जैसे,-दह चला गया, मैं टापता रह टारन- स हि गया। टारना].टामने मा सरकाने की बस्त।