पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२३४

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टाइमपीस १८८० टाला टाइमपीस-सज्ञा श्री.[40] कमरे में मेज, पालमारी प्रया गही उलटकर रख देता पा जिससे व्यवहार करनेवाले लौट टेस्क पर रहनेवाली वह छोटी घड़ी पो फेवल समय बताती पाते थे। है, बजती नहीं। किसी किसी में पपाने की घंटी समय टाट–वि० [म. टाट ] कसा हुमा ।-( लक्षा)। निर्धारित करने पर बजती है। महा.-टाट करना = मस्तूल खड़ा करना। टाई-ससौ .मि.]१.फपढ़े की एक पट्टी जो. भग्रेजी पहनावे टाटका'-वि० [हिं०] दे० 'टटका' 1 30-(क) घिउ टाटक में कालर के प्रदर गोठ देकर बांधी जाती है। नेकटाई।२. महें सोषि सेरावा ।-पदमावत, पृ० ५८६। (ख) भीमा पहाज के ऊपर के पाल की वह रस्सो जिसकी मुखी मस्तुल के पावत मगन रैन दिन टाटक होत व यासी।-भीखा श., छेदो में लगाई जाती है। दान--सश [प्र. शहर । कसबा। टाटक-सचा पुं० [से त्राटक ] ६० 'पाटक'। उ०-टाटक ध्यान टाउन ड्यूटी-श खो [म. ] {गी। पौंदी। पपेनोकारा। जब या जीव को होइ वारा-घट०, पृ०५५। टाउनहाल-सधा पुं० [ मं०] किसी नगर में वह सार्वजनिक भवन यो०-टाटक टोटका जिसमें नगर की सफाई, रोशनी पादि के प्रबंधकर्तामों की टाटबाफ-सक पुं० [हिं० टाट+फा.बाफ] १. टाट बुननेवाला। तथा दूसरी सर्वसाधारण संवधी सभाएं होती है। २. कपड़ो पर कलावतू का काम करनेवाला। टाकरी लिपि-सक्ष श्री. [हिं० ठाकुरी, ठकुरी?] एक प्रकार की टाटवाफी-सा बी० [हिं• टाट+फा बाफो ] १. कलावतू का लिपि जो शारदा लिपि का घसीट रूप है। काम । २. टाट बुदने का काम । विशेष-इस लिपि में इ, ई, उ, ए, ग, घ, च, ब, ग, ट, त, थ, दाटबाफीजुवा-सा पुं० [फा० तारवाफ़ी] वह वृठा जिसपर द, घ, प, भ, म, य, र, ल, पौर ह वर्ण वर्तमान शारदा कलाबत्तू का काम हो । कामदार वृता। लिपि से मिलते जुलते हैं। शेष वर्ण मिल हैं, जिसका कारण टाटर--सबा पुं० [सं० स्थातृ ( = पो खड़ा हो)] १. टट्टर । टट्टो। सभवत' पीघ्रता से लिखना मोर पलतू कलम है । इसमे 'ख' २. सिर की हड्डी या परदा । खोपड़ो। कपाल । उ०-टाटर के स्थान पर 'ब' लिखा जाता है। टूट, टूट सिर तास । -जायसी (शब्द०)। टाका-सा पुं० [हिं०] फंडाल । दे० 'टीका'। उ०-मागे टाटर-सबा पु[?] घोड़ों को सजाने की सामग्री। उ०- सगुन सगुनिमा ताका। वहिउ मच्छ रूपे कर टाका ।—जायसी टाटर पाषर सज्जित कियो राव !--बी. रासो०,१०१ मं (गुप्त), पृ० २११ । टारिकएसिर-सया पुं० [म.] इमली का सत । इमला का बुक । टाकू-संक्षा० [सं० त' ] कुम्मा । तकला । टेकुरी। टाटिकाल-सहा स्त्री० [हि. टाटी] टट्टी। उ०-विरचि हरि टाकोली:-सन स्त्री॰ [देश॰] भेंट। नजराना । उ०-उन्होंने भक्त को बैष वर टाटिका, कपट दल हरित पल्लवनि छाको । उडीसा के समस्त जमीदारो से टाकोसी या पेशकश वसूल तुलसी (शब्द०)। किया 1- शुक्ल ममि०० पु. ६९ । टाटो-सा बी० [हिं० स्यात्री ता तटी] छोटा टट्टर । टट्टी। टाट–स ० [सं० तन्तु] १ सन या पटुए की रस्सियो का बना 3.-(क) पाँधी भाई ज्ञान की दही भरम की भोति। हुमा मोटा खुरदुरा कपड़ा जो विधाने, परदा डालने मादि के माया टाटो उड़ि गई भई नाम सौ प्रोति ।-फबीर (शब्द॰) । काम में पाता है। (ख) सुरदास प्रभु कहा निहारी मानत रक त्रास टाटा को। महा०-टाट में मूज का बखिया = जैसी भद्द। चीज, वैसी ही —सूर (शब्द॰) उसमें लगी हुई सामग्री या सापा टाट में पाट का पाखिया- टाठी-सबा खी० [सस्थानी (= बटलोई), प्रा.ठालो, ठाडी] चीज तो भद्दी भौर सस्ती, पर उसमें लगी हुई सामग्रो बढ़िया याखी। भौर बहुमूल्य । वेमेल का साज। दाद-सका स्त्री० [स. ता] भुजा पर पहनने का एक गहना। २. बिरादरी। कुल । जैसे,-वे दूसरे टाट के हैं। दौड़।डिया । बहुंटा। उ.-बाहु टाड़ कर कान पाक्य, मुहा०-एक ही टाट के=(१) एक ही बिरादरीके। (२) एक एते पर हो तौकी 1-सूर (सन्द०)। साथ उठने बैठनेवाले। एक ही मडली के। एक ही दसके।' टाडर-सस बी [ देरा०] एक प्रकार की चिड़िया। एक ही विचार के। टाट बाहर होना-बहिष्कृत होना। टापौल-सका पु० [?] (विवाहादि) उत्सव । उ.-मदता जाति पाति से अलग होना। टाणा ऊपर, वाणा सरचे नाहिं।-चौकी. भा० ३, ३ साहकार के बैठने का विछावन । महाजन की गद्दी। ५०८२॥ मुहा०-टाट उलटना = दिवाला निकालना । दिवालिया होने की टान-सम बी [ सं• तान( = फैसाव, सिंपाव) ] १. तनाव । सूचना देना। सिंचाव । फैलाव । २. सोचने की क्रिया ।बीच। ३. सितार विशेष पहले यह रोति यो कि जब कोई महापन दिवासा के परदे पर ऊंगली रखकर इस प्रकार खीचने की क्रिया बोसता था, तब वह अपनी कोठी या दुकान पर का टाट पौर जिससे बीच के संर विकस पावें। ४. साप दांत