पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२६४

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ठटना १६१० उठिरिज ठटनारे-क्रि०प०१ सड़ा रहना । मड़ना। पटना । 8.--संचत सिलसिलाना। पट्टहास करना । ठट्ठा में नहाना=किसी को स्वाद स्वान पातर ज्यों चातक रटत ठटी।-सुर (शब्द०)। पर्चा या फवन को मजाक समझना। खिल्ली उड़ाना। २ विरोष में जमना। विरोष में बटा रहना । ३ सजना। ठद्वा लगाना - खिखिलाकर हंसना । ठठाकर हंसना । सुसज्जित होना। तैयार होना। उ.--बही पाइपई दल पट्टहास करना। ठटा। देखत जैस पयन घन घटा।--जायसी (पान्द०)। ठठ-सधा पुं० [हि.12.'ठ'। २ 'ठाठ' । उ--करि पान गगा ४ एकत्र होना। अमाव होना। पुषीभूत होना । 30- बल विमल फिर ठठे ठठ घमसान के |--हिम्मत०, पृ. २२ । छत्तीस राग रागनि रसनि तत ताल कठन ठटहि-पृ० -सश स्त्री० [सं० टट्टरी ] हंसी। ठट्ठा। मसखरापन । रा०, ERI ५. स्थित होना। धरना करना। साषना । ३०-हुतो न साँचो सनेह मिटयो मन को, हरि परे उपरि, 30--कोई नांव रठे कोई ध्यान ठट कोई खोजत हो थक संदेसहु ठठई।-तुलसी न०, पृ. ४३ । जावता है।-सुधर० ५०, मा० १, पृ० २९८ । ठटकना -फि० प. [७• स्पेय+करण] १. एकबारगी एक ठटनि, ठटनी-पहा स्त्री० [हि. ठटना] बनाव । रचना । या ठहर जाना । ठिठकना । उ०-(क) टठकति पले मटकि सजावट । उ०-नामि भंवर त्रिवली तरंग गति पुलिन मुंह मोरे चकट मौह चलावै ।-सूर (शब्द॰) । (ख) तुलिन ठटनी ।—सूर (शब्द०)। डग कुडगति सी चलि ठठकि पिवई पली निहारि। सिये ठटया--सपा पुं० [देश॰] एक प्रकार का जपली जानवर। पाति चित पोरटी वहे गोरटी वारि-बिहारी (शम्द०)। ठटरी-सक्षा स्त्री० [हिं० ठा०] १. हड्डियों का वा । मस्पिपजर । २ स्तभित हो जाना। क्रियानन्य हो जाना। 36 रह मुहा०-ठटरी होना- दुबला होना। यांग होना। जाना । उ०--मन में का कहन बहे देखत ही ठठकि रहे २ घास भूसा पावि बांधने का जाय । सरिया । वड़िया । ३. सुर श्याम निरखत दुरी तन सुधि बिसराय ।- सूर (चन्द०)। किसी वस्तु का ढाँचा। ४. मुरदा उठाने की रपी। भरपी। ठठकाना-सश खी• [हि. ठठकना ] ठठकने का भाव। ठा-सा ई० [हिं० ठाठ] बनाव । रचना। सजावट । ठठना-क्रि० स० क्रि० स० [हि. ] दे० 'ष्टना' 1 उ.-कोकि ठट्ट-सधा पुं० [सं० तट, हिं० टट्टी वा है. स्थाना] १. एक स्थान पले, ठठि छैल छले, सु छबीली घराय लौ छह न छवावै:- पर स्थित बहुत सी वस्तुों का समूह। एक स्थान पर सट्टे घनान, पु० २१२ । बहुत से लोगों को पक्ति । २. समूह। । समुदाय। ठठरी-सशो• [हिं०] ३. 'उटरी। पक्ति। उ.-(क) इस रहदि गणंता विरुद भणता, भट्टा ठठवा-समपु०हि. टाट] एक प्रकार का रूखा मोर मोटा ठट्टा पेक्खीमा ।--कोति०, पु. ४८ । (ख) देखि न जाय कपडा । इकतारा । समगया। कपिन के ठट्टा । प्रति विशाल तनु भालु सुभट्टा ।-तुलसी ठठा-सक्ष पुं० [हिं०] दे० 'ठट्ठा' । (शव्य.)। (प) पियत भट्ट की ठट्ट पर गुजरातिन के वंद। ठठाना-क्रि० स० [अनु० ठक ठक ] ठोकना। पापात सगाना। -हरिश्चद्र (सन्द.)। पीटना। जोर जोर से मारना। उ०-फले फूल फलें खल, ठट्टना-क्रि० प.[हिं. गठना] प्रायोजन फरना। ठाटना। सीद साधु पल पल, बाती दीपमालिका ठठाइयत सूप है।- उ०-सु रोमराइ राजई उपम कन्धि साजई। सुमेर शृग तुलसी (शब्द०)। () दत ठठा ठोठरे कोने । रहे पठान कंद के, घई पपीस पद फै। उमर कन्दि ठट्टई धपक्क मुट्टि सकल भय भीने ।-चाल ( शन्द०)। चड्डई। -१०रा०, २३। १३९ । ठठाना-कि.. [सं०मट्टहास] सिलखिलाना। पट्टहास ठट्टो-सक्षा बी० [हिं० ठाठ ठटरी। पजर । हड्डी का ढाँचा। उ०- फरना। कहकहा लगाना। पोर से हंसना । उ०-दुर कि उर पतर घुघुमाइ परे बस कोष को भट्टी। रक्त मांस बरि होद इक सग भुभालू । हंसर ठठा फुलाउन गालू ।-तुलसी पाय रहे पांजर की ठट्टो!-गिरधर (अन्य )। ठा-सचा पुं० [हिं. ठट्ट ] दे० 'ठट' और 'ठट्ट'। ठठियाtg-सधा श्री [हिं० ठट्टर (Dढाँचा या ठठरी)] हड्डियों ठट्ठई-सपा श्री [हिं० ठट्ठा ] ठट्ठा । दिल्लगी । हँसी। का ढाँचा । काया । शरीर । -काह भए टठिया के भेटे । ठट्रा-यच पुं० [सं० अट्टहास या सं० टट्टरी ( = उपहास)]ीय दरस दिनु भरमन मेट-कवीर सा., पृ०४१२ । हँसी । उपहास। दिल्लगी। मसखरापन । सिस्ली। उ०- ठठियार..-सका श्री० हिं० ठठरी-ढापा)] ढांचा टट्टर। तम नीरू ने कहा कि लोग मुझको हसेने मोर ठट्ठा में भस्पिष। 80-dस सिंगार सब लीन्हेसि मोदि कीन्हेसि उड़ावेंगे।-कबीर मं०, पृ.१०४। ठठियारि।-जायसी न (गुप्त), पृ० ३४१। क्रि० प्र०-करना। ठठियार-सया पुं० [देश॰] जगली पौपायो को चरानेवाला । यौ०-ठट्ठाबाज, द्वेबाज - दिल्लगीमाण । 8 गाणी = दिल्लगी। चरवाहा । -(नेपाल तराई)। महा.--ठट्टा उड़ाना-उपहास फरना। दिल्लगी करना । ठठिरिना- सच्चा श्री० [हि. ठठेरा ] टेरिन । ठटरे को ली। 30-मोर लोग तरह तरह की मकवं करके उसका ठट्टा उ.-ठठिरिन बहुतइ ठाठर कोन्ही । चलो महोरिन काजर उहाचे वये।-श्रीनिवास पं., पृ० १७६ । ठट्टा मारना - दोन्ही।-बायसी (शब्द॰) ।