पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२६६

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ठनकाना ठमक स उनकाना-क्रि० स० [हिं० ठनकना] किसी धातुसर या चमड़े से ठनाका-सया पुं० [भनुध्व० ठन] उन ठन पाद । ठनकार। मदेवाजे पर पाघात करके शब्द निकालना। बजाना । जैसे, ठनाठन-क्रि० वि० [मनुध्व० ठन ठन] टन ठन शब्द के साथ। तबला ठनकाना, रुपया उनकाना। झनकार के साप । बैसे, ठनाटन वजना। मष्टा० रुपया ठनका लेना- यपया मजाकर ले लेना । रुपया उप-सबा [मनुध्व.] १ खुले तए नय को एकाएक बद करने वसूल कर लेना । -जैसे, तुमने रुपए तो उनका लिए मेरा से उत्पन्न शब्द या ध्वनि । २.न्सिी कार्य या व्यापार का काम हो या न हो। पूरी तरह बद रहना या रुक जाना! उनकार-स पुं० [अनुष्व० ठन ठन] धातुखड के बजने का शन्द । क्रि.प्र.-फरना । -रहना ।-होना। उनकारना-क्रि०. [हिं० ठनकार] फुफकारना। क्रुद्ध सर्प का उपका-सहा . [देश॰] का । ठोकर। ठेस । -यह तन फन काढ़कर फुफकारना। ३०-सन सन फर रात खनकती काना फुम है लिया फिरे या साप। ठपका साम्या फुटि ग्या झींगुर झनकार। कभी कमी दादुर रट फर जिय व्याकुल फहन माया हाथ।-फवीर (सन्द०)। फर बार। साप खंडहर पर ठनकार।-भारतेंदु न, भा॰ २, " ठपाका-साधा पुं० [फा० तपा] गोश । मायेप। वेग। तेजी। पु० ४८६ । उ.--रामसिंह नशे में थे ही ठपाक से पाल्हा की लड़ियाँ ठनगन-सा पुं० [हिं० ठनना] विवाह प्रादि मगस अवसरो पर गाने लगे।-फाले०, पृ०२४। नेगियों या पुरस्कार पानेवालों का अधिक पाने के लिये हठ ठपोरना-क्रि० स० [हिं० ठप ठप मनुध्व.] थपथपाना । ठोकना । या भड़। उ०-ठनगन ते सव वाम बसनन सजि सजि प . 70-जन दरिया पान बना गुरू ठपोरी पूट!-दरिया. गई।-नद. ०, पृ० ३३३ । वानी, पृ० १६. क्रि०प्र०—करना ।-ठानना ।-होना । ठप्पा--समा पु० [मे० स्थापन, हि यापन, पार, अपना यनुन ठप] २. हठ । मड़ । मान । उ०—पनि माएं ठनगन ठानति है सोपर राधे तोहि लहौं।-धनानद, पु० ४५९ । १चकठो, धातु, मिट्टीमादि का राड जिसपर किसी प्रकार की प्राति, अलवूरे या पक्षर मादि इस प्रकार खुद हो कि ठनठन-क्रि० वि० [मनुध्व०] धातुख हि बजने का पन्ध । 30सी दूसरी वस्तु पर रखकर दराने से या दूसरी वस्तु ठनठन गोपाल-सक्षा पुं० [अनुच्य० ठनठन + गोपाल (-कोई गो उमपर रखकर दबाने से उम दूसरी वस्तु पर वे पालिया, व्यक्ति)] १. सुधी भोर नि:सार वस्तु । वह वस्तु जिसके वेलबूटे या प्रक्षर भर भावें प्रगना बन जाय । साना । भीतर कुछ भी न हो। २ खुपक्ष भादमी। निधन मनुष्य । वह व्यक्ति जिसके पास कुछ भी न हो। क्रि० प्र०-लगाना। ठनठनाना'-क्रि० स० [मनुध्व] किसी धातुसंट या चमटे से मढ़े २. नाली का टुकडा जिसपर उमरे हुए वैसयूटे वो रहते हैं पौर वाजे पर भाघात करके पाब्द निकालना । बजाना। जिगपर रग, स्याही मादि पातकर उन वेजबूटो को कपडे मादि पर छापते हैं। बा ३. गोटे पट्टे पर वेलबूटे ठनठनाना-कि.म.ठन ठन बजना या पावाज होना। ठनठन की नारने का चा। ४ मा के द्वारा बनाया हुमा चिह्न, ध्वनि होना। बेलबुटा भादि। छाप । नकश । ५ एक कार का घोड़ा उनना-क्रि० प्र० [हिं० ठानना] १. (किसी कार्य फा) तत्परता नकाशीदार गोटा। के साथ प्रारभ होना । घढ़ सकल्पपूर्वक भारंभ किया जाना। अनुष्ठित होना। समारंभ होना । छिडना । जैसे, काम ठनना, ठयका---पक्षाही. [ हि. ठपफा ] पाघात । ठोकर । ठेग। उ.- झगड़ा ठनना, वैर उनना, युद्ध ठनना, लडाई ठनना। २. या तनुको नाहन करत हे प्रोता ज्यो गल जाये रे। पैसे बर्तन बनो फौच को ठबक लगे निगमा रे।--राम. धर्म, (मन में) स्थिर होना। ठहरना । निश्चित होना। पक्का होचा। दृढ़ होना । चित्ता में तापूर्वक धारण किया जाना। एढ़ पु० ३६०। संकल्प होना। जैसे, मन में कोई बात ठनना, ठठनना। ठवकना-क्रि०प० [हिं० ठनक ] स या ठोकर देहए चलना । उ.---हरिपद तू बात ठनी तो ठनी नित को कलकानि ते ठसम के साथ पलना। उ.---हति न बोलिवा, ठयकिन छूटनो है।-हरिश्चद्र (पद०)। ३. ठहरना। लगना। चालिया घोरे परिवा पावं। गरवन करिबा, सहजै रहिवा जमना । धारण किया जाना। प्रयुक्त होना। 30-दुलरी भरणत गोरख रावं।-गोरखा, पृ० ११ कल फोकिल कठ बनी मृग खजन मंजन मांति ठनी। केशव ठभोली -मास्त्री [हिं० ठठोली वा देश ] दे० 'ठठोलो। (पाब्द०)। ४ उद्यत होना । मुस्तैद होना। सनत होना। ठमंकना -फ्रि० स०मिन० 1 ठम की ध्वनि के साथ गिरना, उ० रन जीतन काजै भटन निवाजे मानद छाजे युद्ध ठने। ठहरना या रुकना उ०-उरं फुद्र सप्ताह घरनी ठमके।-५० -~ोपाल (सन्द०)। रासो, पृ० ४५। मुहा०-किसी बात पर ठनगा=किसी बात या काम को करने । ठमक-समा सी० [हिं० ठमफना] १ चलते चलते ठहर जाने का के लिये उद्यत होना। भाव । रुकावट। २. चलने की ठसक । पलने मे हायभाव ठनमनाना-कि० म० [हि.] दे॰ 'उनमनाना'। लचक ।