पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२७०

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ठहरानारे ठासना संयो० कि० देना।-लेना । रुषि पारसी देखि कहैं हमठाई।--केशव (शब्द०)। ३. २.टिकाना। विश्राम कराना। डेरा देना। कुछ काल तक के समीप । पास निकट। लिये निवास देना। जैसे,—इन्हें अपने यहाँ ठहरामो। ३ ठा. ठाँटी-सहा त्री० [सै० स्थान] १ ठौर। ठाव । स्थान । इस प्रकार रखना कि नीचे न खिसके या गिरे। पड़ाना । जगह । ठिकाना । उ०-रक सुदामा कियौ पजापी, दियो टिकाना । स्थित रखना। जैसे, ठडे की नोक पर गोला अभयपद ठाउँ।-सूर०, ११६४ । २. पास । समीप । १०- ठहराना। चार मीत जो मुहमद ठाऊँ। जिन्हहिं दीन्हि जग चिरमर संयो०क्रि०—देना। ना -जायसी (शब्द०)। ४ स्थिर रखवा । इधर उधर न जाने देना। एक स्थान पर ठाठ-वि० [सं० स्थाणु (हूँठा पेड़) वा अनु० ठन ठन] १. जो बनाए रखना। ५ फिसी लगातार होनेवाली क्रिया को बद सूखफर विना का हो गया हो। नीरस । २ (गाय या करवा । किसो होते हुए काम को रोकना । भैंस) जो दूध न देती हो। दुध न देनेवाला (चौपाया)। संयोकि०-देना। जैसे, ठाठ गाय! दे० 'ठठ'। ६. निश्चित करना । पक्का करना । स्थिर करना । तै करना । ठाँठरा-सक्षा हिं] ठठरी। ढांचा। जैसे, वात ठहराना, भाव ठहराना, कीमत ठहरावा, ब्याहू ठाँठर-वि० [हिं० ठाँठ] दे० 'ठोठ'। ठहराना । ठाणा-सबा पु० [सं० स्थान, प्रा. ठाण] पान । बगह । उ०- ठहरानाव...--क्रि० स० [हिं० ठहरना] रुकना। टिकना । स्थिर खूटइ जीण न मोजड़ी फटयाँ वही केकारण । सानिया साखर होना। 10--(क) रूप दुपहरी छाँह कर ठहरानी इक ठोर। नहीं, सालइ माही ठो।-ढोला०, ९० ३७५ -स० सप्तक, पु.१८३। (ख) जवै माऊँ साघु संगति कछक ठोमा-सका स्त्री॰ [हिं०] ठाव । स्थान । उ०-ठगिया रूप निहारि, मन ठहराह ।—सूर (शब्द॰) । ठाम ठामि ठाढ़ो खरो।-प्र० प्र०, पृ०२। ठहराव-सज पुं० [हिं० ठहरना] ठहरने का भाव । स्थिरता। २ ठाय'-.-या स्त्री० [सं० स्थान, प्रा० ठाण] १. स्पान । जगह। निश्चय निर्धारण । नियति । मुकररी। ३ दे० 'ठरोनी'। ठिकाना। ठहा -सया पुं० [हिं०] दे० 'ठहर'। विशेष-२० 'ठौद। ठहरौनी-सहा स्त्री० [हिं० ठहराना, पुहिं० ठहरावनी] विवाह २ समीप । निकट । पास। उ०---विन लगि निज परलोक मे लेन देन का करार । २ किसी भी प्रकार का पारस्परिक बिगारयो ते उजात होत ठाढ़े ठोय । - तुलसी (ब्द०)। करार या निश्चय -ठाय-एशा पु० मिनुध्व.] बदूक छूटने का सन्द । -नयें ठहाका -सह. [अनुध्व०] पट्टहास । जोर की हसी। कहफहा। मोती मार दो। क्रि० प्र०-मारना। -लगाना। ठाय ठॉय-सहा स्त्री० [अनुध्य०] १. लगातार बंदूक टने का ठहाकार-वि० पटपट । तुरत । तह से। शब्द १२ रगड़ा । झगड़ा । उ०-खैर अब इस ठाएँ ठाय से क्या मतलब !--फिसाना, भा० २,५०७७ । उहिया -सका स्त्री० [हिं० ठह, ठाव] ठह। जगह। ठिकाना। स्थान। ठाँव-सा स्वी, पुं० [सं० स्थान, प्रा० ठार स्थान । जगह। ठही-सहा स्त्री [हिं० ठह] स्थान । ठाव । ठाह । ठिकाना । १०.-(क) निर, नीच, निगुन निर्धन कह जग दुसरों न ठाकुर ठाव । -तुलसी (शब्द०)। (ख) ठहोर -सधा बी० [हिं० ठहर ठहरने योग्य स्थान । विश्राम योग्य नाहित मेरे और कोउ बलि परन फमत बिनु च ।-सूर स्पल। उ०-कतए भवन कत पागन बाप कतए फत माय। (एब्द०)। कतहु ठहोर नहि हर ककर एहन जमाय । -विगपति, विशेष- इस पान्द का प्रयोग प्राय. सब कवियों ने पु० किया है पु० ३६८ । और अधिक स्थानों मे पुं० ही पोला जाता है पर दिल्ली ठाँ'-संशाबी.पुं० [सं० स्थान, प्रा. ठाण] दे० 'ठाव' । उ०- मेरठ मादि पश्चिमी मिलों में इसे खोबोलते हैं। यो सब ठो परसै बरसै घवमानद भीजि मराषि कुपाई।- २ अवसर । मौका । उ.- ठाव हो भारति रही।-- जायसी घनानंद, पृ० १५०1 प्र०, पृ.८४ । ३. कने या टिकने का स्थान । ठहराम । यौ०-ठोठी स्पान स्थान पर। १०-ठाठी मधुर मयानी उ.--चारकोस के गाँव, ठाव एफो नहीं।-घरनी २० __ वर्ष । बनु नव मानव दुद मगज ।-नद० म., पृ० २४८ । पृ० ४५ ! ठार-संका पुं० [मनुध्व०] बदक की भावाज। ठासना-क्रि० स० [सं० स्थास्तु (दृढ़ता से बैठाया हुभा)] १ ठौ -सवा स्त्री. [हिं० ठाव स्थान। जगह । उ.-मौन रूप जो जोर से घुसाना । फसफर घुसेड़ना । दबाकर प्रविष्ट करना । फोन बनाई। तीन छोड़ रह चौथे ठाई।कबीर सा०, २ फसकर मरना। दवा दवाकर भरना । ।३ रोकना। पृ० १७। २.तई। प्रति। 30--पाच भले मुख नैन रपी प्रवरोध करना । मना करना।