पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२६९

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ठहना ठहराना सुलगे, कसपर राख चढ़ाई।--पलटू०, भा० ३, पृ०४.! गोला उहे की नोक पर ठहरा हुमा है। (ख) यह घड़ा फूटर (क) दम को दारू सहज को सीसा ज्ञान के गज ठहकाई:-- हमा है इसमें पानी नहीं ठहरेगा। (ग) बहुत से योगी देर कबीर० १०, भाग २, पृ० १३२ । तक घर मे ठहरे रहते हैं। ठहना-क्रि० स० [मनुध्व.] १. हिनहिनाना । घोडे का बोलना। संयो० क्रि०-बाना। २ घनघनाना । घटे का बजाना। ५ दूर न होना। बना रहना । न मिटना या न नष्ट होना । ठहना-क्रि० म० [सं० स्पा, प्रा० ठा] किसी काम को करते हुए जैसे,---यह रग ठहरेगा नही, उड जायगा । ६ जल्दी न सोच विचार करने या बनाने संवारने के लिये वीष बीच में टूटना फटना । नियत समय के पहले न न होना । कुछ दिन ठहरना । धीरे धीरे धैर्य के साथ करना । बनाना । संवारना । काम देने लायक रहना । चलना। पैसे,---यह जूता तुम्हारे किसी काम को करने में खून जमना। पैर मे दो महीने भी नहीं ठहरेगा। ७ जिमी धुली हुई वस्तु मुहा०-ठद ठहकर बोलना%हाव भाव में साथ रुक रुककर के नीचे बैठ जाने पर पानी या प्रर्क का स्थिर मौर बोलना। एक एक शन्द पर जोर दे देकर बोलना । मठार साफ होकर उपर रहना । घिराना। प्रतीक्षा करना । मठारकर बोलना । ठहकर-पच्छी तरह जमकर । घेर्य धारण करना । धीरज रखना। स्थिर भाव से रहना । ठहनाना-क्रि० म० [मनुध्व.] १ घोडों का वोखना। हिन चचल या माकूल न होना। जैसे,-ठहर पामो, देते हैं, दिनाना। उ०-गज पढ़ फुरुपति छवि छाई। पहुँदिति माफत क्यों मचाए हो। ६ कार्य प्रारम करने में देर करना । तुरप रहे ठहनाई।सबल (शब्द०)। घटे का बजना। प्रतीक्षा करना । प्रासरा देखना । जैसे,-मब ठहरने का वक्त धनधनाना । ठनठताना उ०-दर घंट ध्वनि मति ठहुनाई। नहीं है झटपट काम मे हाथ लगा दो। १० किती लगातार मारु राग सहित सहनाई।-सवल (शब्द०)। ३ दे० होनेपाली क्रिया का बद होना । लगातार होनेवाली बात 'ठहना"। या काम का रुकना। थमना । जैसे, मेह ठहरना, पानी ठहर-संक्ष पुं० [सं० स्थल या स्थिर]१ स्थान | जगह । उ०-ठाकुर ठहरना। महेस ठकुराइनि उमा सी जहाँ लोक वेव हैं विदित महिमा सयो० कि०-जाना। ठहर की।-तुलसी (शब्द॰) । २. रसोई के लिये मिट्टी ११ निश्चित होना । पक्का होना। स्थिर होना। ते पाना । से लिपा हुमा स्थान । चौका। ३ रसोईघर मादि मे मिट्टी करार होना । जैसे, दाम या कीमत ठहरना, भाव ठहरना। को लिपाई। पोताई। चौका। उ०-नेम मचार पटकम बात ठहरना, व्याह ठहरना। नहीं नाहीं पोति को पान। चौका पदन ठहर नही मीठा देव मुहा०-रिसी बात का ठहरना=किसी बात का सकल्प होना । निदान -सं० परिया०, पृ. ३८। विचार स्थिर होला। धनना । जैसे,—(क) क्या अब चलने क्रि०प्र०-लगाना। ही की ठहरी ? (ख) गप बहुत हुई, अब खाने की ठहरे। मुहा०-ठहर देना=रसोईघर वा भोजन के स्थान को लीप पोत- ठहरा-है। जैसे,—(क) वह तुम्हारा भाई ही ठहरा कहाँ कर स्वच्छ करना । चौका लगाना। तक खबर मलेगा? (ख) तुम घर के मादमी ठहरे तुमसे ठहरना--कि. म.[सं० स्थिर+हिना (प्रत्य॰), अथवा सं० क्या छिपाना ? (ग) परने सवषी ठहरे उन्हे क्या कहें। स्थल, हिं. ठहर+ना (प्रत्य०)] 1 चलना बद करना । विशेष-इस मुहा० का प्रयोग ऐसे स्थलो पर ही होता है जहाँ गति में न होना । रुकना । थमना । जैसे,—(क) थोड़ा ठहर किसी व्यक्ति या वस्तु के अन्यथा होने पर विरुद्ध घटना या जामो पीछे के लोगों को भी पा लेने दो। (ख) रास्ते में व्यवहार को सभावना होती है। कही न ठहरना। ११. (पशुओं के लिये) गर्भ धारण करना । सयो० कि०-जाना। ठहराई-सका स्त्री० [हिं० ठहराना] १ ठहराने की क्रिया । २ २ विधाम करना। डेरा डासना। टिकना ! कुछ काल तक के ठहराने की मजदुरी । कन्ना। प्रधिकार । लिये रहना । जैसे,-पाप काशी में किसके यहाँ ठहरेंगे? ठहराउ-सचा पुं० [हिं॰] दे० 'ठहरार' । सयो०क्रि०-जाना। ठहराऊ-वि० [हिं० ठहरना-रव्हरनेवाला। कुछ दिन बना ३ स्थित रहना। एक स्थान पर बना रहना। इधर उधर न रहनेवाला। जल्दी नएन होनेवाला । २. टिकाऊ । घलने- होना। स्थिर रहना । जैसे,-यक्ष नौकर चार दिन भी किसी वाला । दृढ़ । मजवूत । ३ ठहरानेवाला । टिकानेवाला। के यहाँ नही ठहरता। किसी काय को निश्चित करानेवाला। किसी व्यक्ति को कही संयो० क्रि०-जाना। टिकानेवाला। . माहा०-मन ठहरना चित्त स्थिर और शात होना । चित्त का ठहराना'-क्रि० स० [हिं० सदरता का .ent माकुलता दूर होना। रोकना । गति बद करना। स्थिति कराना । जैसे,—(क) ४ नीचे न फिसलना या गिरना। मड़ा रहना । टिका रहना। वह चला जा रहा है उठे ठहराभो। (ख) यह चलता हुमा बहुने या गिरने से पकना । स्थित रहना । जैसे, (क) यह पहिया ठहरा दो।