पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२७२

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ठगहर १९१८ ठान अपना रुपया वहां से निकालो। (स) यह ऐसे ठाट से मांगता उ०-ठठिरिन बहुतय ठाटर कोन्ही । चली महीरिन काजर है कि कुछ न कुछ देना ही पड़ता है। -राज करत बिनु दीही।-जायसी (शब्द॰) । काजही ठटहिं जे फूर कुठाट । तुलसी ते कुरुराज ज्यों बह ठाटी-संशा श्री. [ हि. ठाट ठट । समूह । प्रेणी। उ स बारहबाट।-सुससी (छन्द०)। १०. कुश्ती या पटेबाजी में रय रॅपि पसह गज ठाटो। बोहित पले समुद्र मे पाटी।- खुढे होले या वार करने का ढंग । पैतरा। पायसी (शब्द०)। महा०-ठाट पालना-दूसरी मुद्रा से खड़ा होना। पैतरा ठाढ़ा-संज्ञा पुं० हिं० ठाट 12. 'ठाट'। पदसना । ठाट पिना-चार करने की मुद्रा से खड़ा होना। ठाठ - सं ह ठाट दे० 'ठा । ११. कबूतर या मुरगे का प्रसन्नता पर पहफडाने या झाड़ने ठाठना-क्रि० स० [हिं० दे० 'ठाटना'। का ढंग। ठाठर-संक.[हिं॰] [बी. ठाठरी] ढांचा। ठठरी। उ०- मुहा०--ठाट मारवापर फरफराना। पंख झारना। पाए पोरा जीव चलावा। निकसा जिव ठाठरी पावा।- १२. सितारा तार। १३. संमीत में ऐसे स्वरों का समूह पी कबीर सा०, पृ०५६३ 1 ३० 'ठाटर। किसी विशेष राप में ही प्रयुक्त होठे हों। जैसे, ईमद का ठाट, ठाठ-बाप [ देश बदी में वह स्थान बहा पषिक गहराई मैरवी का ठार। कारण बस या लग्गी बगे।-(मल्मा)। मुहा०-ठाट बापना-सं वाय में किसी राप में प्रयुक्त होने- म प्रयुक्त हान- ठादा-संवा पुहि . ठाढ़ खेत की वह पोताई जिसमें एक बस वाले स्वरों को इस स्पाप पर नियोषित करना जिससे बोतकर फिर दूसरे बस जोतते है। प्रमोप्सित राप में प्रयुक्त स्वरों की ध्वनि प्राप्त हो। उ.- ठाडा--वि० [वि॰ स्त्री. ठाड़ी ] दे॰ 'ठादा। 3.-नंददास प्रभु बांधकर फिर ठाट, पपवे ग्रंक पर झंकार दो।-अपरा, वहीं वहीं ठाई होत, वही सही मटक पटक काहू सौहारी पु०७३। मौ ना करो।- ०, ०.३४३ । ठाट- ० [हिं० ठट्ट, ठाटी० ठाटो] १. समूह । मुट। ठा -कि.[हिं॰] दे० 'ठादा'। स.-ठा रहा पति पित उ.--(क) दिने रजनी हेरए पाट, अनि हरिनी विरल ठाट-विद्यापति, पृ० १६८1 (1) गज के ठाट पचास गाता-मानस, १४ । हजारा। मक्ष सहन रद पसवारा।-घुराज (शन्द ठाढ़ा --वि० [सं० स्थातृ (-को खड़ा हो)] १ । २. बहुतायत । अधिकता । मधुरता। . या सड़की दंडायमान । दरबन के ऊपर का पिल्ला । कूपर। क्रि०प्र०—करना ।—होना ।-रहना। ठाटना-क्रि० स० [हि० ठाठ+ना (प्रत्य॰)] १. रचना बनाना । २. जो पिसा या फुटा न हो। समूचा । सावित । उ०-- निर्मित करवा । संयोजित करना। 3.-बालक को तन भूजि समोसा घिउ मह काढ़। भोप मिर्षदेहि भीतर ठाढ़े। ठाटिया निकट सरोवर तीर । सुर नर मुनि सब देखहि साहेब पायसी (माम्द०)। ३ उपस्थित । उत्पन्न । पैदा । उ.-- कीन पहत लीला हरि पनहीं। ठाड़ करत है कारन तबहीं । घरेठ सरीर-कीर (शब.)। २. अमुष्ठाय करना। ठानना करता पायोजन करना । उ.--(क) महतारी को -विश्राम (शब्द०)। कयो म मानद कपट चतुरई ठाटी। सूर (बम्ब०)। (ख) मुद्दा -ठादा देना-स्थिर रखना। ठहराना। रखना। टिकाना पासव टिपेर पदकासुख मह सोक ठाठ परि ठाठा । २०-बारह वर्ष दयो हम ठाढ़ो यह प्रताप वितु जाने पर -तुलसी(धन.) ३. सुसस्पिट करता । सपाना । सवारमा । प्रगटे वसुदेव सुवन तुम गर्ग वचन परिमाने ।--सूर (शब्द०)। ठाठवंदी-सौ .हि. ठार+झा. बंदी ] छाजन पा परवे ठादार-विहट्टा कट्टा । दृष्ट पुष्ट । पली। ढाग । मजबूत । ठा पादि लिये फूस पोर यसको फट्रियों प्रादि को परस्पर ठाडेश्वरी- पुं० [हिं० ठाढ़ सं० ईश्वर + ई (प्रत्य॰)] एक प्रकार पोडकर ढांचा बनाने का काम । २. इस प्रकार का ढाँचा। केसापु पो दिन रात खड़े रहते हैं। वे खड़े ही बड़े जाते पीते ठाट । टट्टर। तथा बीवार मादि का सहारा लेकर सोते हैं। ठाटवाट-सका पुं० [f ठाट+पाट (-राह तरीका) 11. ठादर-समादिरा०] रार। झगड़ा । मुठभेड। -देव मापनों मजावट लावट स भा नहीं संभारत करत इंद्र सो ठादर। सूर (पम्द०)। शान शौकत । वैसे,-पान बड़े ठाट पाठ से राजा को सवारी ठान -सं० [सं० स्थान, प्रा. ठाण, भण] स्मान । ठाव । निकषी। बगह । उ.-तम तबीब तसलीम करि, ले घरि माइ लुहान । ठाटर-सका [हिं० ठाट ] १. बांस की फट्टियों भोर फुस मादि नव दोहे सिर झल्लयो, ढंढोलन गय ठान ।--पू० रा०,१६। को जोड़कर बनाया हमा ढांचा जो धावन पा परदे के काम (ख) राजे मोक सब कहे तू पापना । जब कास नहिं पाया में माता है। ठाट । टट्टर। टट्टी। २. ठळरी। पजर। ३ ठाना !-पक्खिनी, पृ.१०४। था। ४. कबूतर पादिके बैठने की तरी जो रट्टर कप ठान--सहबी. [सं०अनुष्ठान ] १. मनुष्ठान कार्य का मायो- में होती है। ५. ठाटबाट । बनाव । सिंगार। सजावट । बन । शुमारय । काम का छिड़ना। २. छोड़ा हमा काम।