पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२७३

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ठानना कार्य। उ.-जानती श्तेक तो न ठानती पठान ठान भूलि पथ ठार- [सं० स्पान, प्रा. ठाण; मप० ठाम, ठाव, ठाय] १. प्रेम के न एक पग हारती।-हनुमान (शब्द०)।३ चेष्टा । स्थान । ठौर। पगह। -(क) राति दिवस करि मुखा । भगस्पिति या सचालन का ढब | प्रदाज 180- चालीयन, पुनरमा विवस पहतो तिणि ठार । - बीरासो, पाछे यक पिते मधुर हँसि घाव फिप उलटे सुठान सौं।-सूर पु० १०४। (ख) माभो, तू' मालिक राह दिवाने चलते न (शब्द॰) । ४.८द निश्चय । सकल्प । पक्का इरादा । लाए बार। मुकाम राहे मंजिल वूम उसषा हे किस ठार।- 3०-यो निर्दोपियों को हलाकान करने की ठान ठानते हो? दक्सिनी, पृ०५४।२. खेत या सविहान का वह स्थान जहाँ -प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ०४६७ । किसान पपने सामान प्रादि रखता है और देखरेख करता है। महा-ठान ठानना = दृढ़ निश्चय करना । पक्का इरादा करना। कार-नियहि वि० श्री.ठारि12.'ठाई', 'ठादा'। 10- ठानना-क्रि० स० [सं० मनुष्टान, हि० ठान अथवा ० स्थापन> (क) तन दाहृत कर घोचाहिं तुरठ, ठार रहत सोई। मासन प्रा. ठामन,>ठाव+ना (प्रत्य॰)] १ किसी कार्य को मारि विवोरी होवै, तबहूँ भक्तिन होई।-जग.., भा.२, तत्परता के साथ भारभ करना। बढ़ संकल्प के साथ प्रारभ पृ० ३३ । (ख) ठारि भेखिहि पनि पांगो न होते 1- करना। मनुष्ठित करना। छेडना । जैसे, काम ठानना, विद्यापति, पृ०४६ झगडा ठानना, पैर कानना, युद्ध ठानना, यज्ञ ठानना । उ.- ठारी-सका पु०, वि० [सं०मटावथ, प्रा०पट्ठार, भट्ठारस, भट्ठारह] (क) तब हरि भौर खेल इक ठान्यो।-नद. ० पू० ३० 'पट्ठारह। 30-ठारे सेरु दुहोठरा प्रगहन मास सुजान। २८५१ (ख) विन सो को पुत्र हित हम मस हम दोनो है --सुजान०, पृ०७। ठानी ।-रघुराज (शब्द०)। २. 1 मन मे) स्थिर ठाला-सचा श्री दिशी ठलिय (=रिक्त), मयदा हि. निठल्ला] करना। (मन में ) ठहराना । निश्चित या ठीक करना। १ व्यवसाय या काम पधे का प्रभाव । जीविका का भभाव। पक्का करना। चित्त मे रखतापूर्वक धारण करना । दृढ़ संकल्प बेकारी । वेरोजगारी । २. खाली वक्त । फुरसत । अवकाश । करना । जैसे, मन में कोई बात ठानना, हठ ठानना । ठाल-वि० जिसे कुछ काम पधा न हो । खासी। निठल्ला । (क) सदा राम पहि प्रान समाना। कारन कोन फुटिल पन ठाला-समा पुं० [ देशी ठल्ल (= निर्धन), वा हि निठल्मा] ठाना ।—तुलसी (शब्द०)। (ख) मैंने मन में कुछ ठान १.व्यवसाय या काम धषे का प्रभाव । बेकारी। रोजगार का उनका हाथ पकड़ बोली 1-श्यामा०, पृ०६८ । न रहना । २. रोजी या पीविका का प्रभाव । मामदनी का ठाना --क्रि० स० [हिं० ठान] १ ठानना। प्ढ़ सकल्प से न होना । वह दया जिसमें कुछ प्राप्ति न हो। रुपए पैसे की साथ प्रारंभ करना । छेडना। करना। उ.-काहे को सोहैं कमी। जैसे,-प्राजकर बड़ा ठाया है, कुछ नहीं दे सकते । हजार करो तुम तो कबहूँ अपराषन ठायो । मतिराम मुहा०-ठाले पड़ना-मुन्यता, रिक्तता या खालीपन का अनुभव (पशब्द०)। २. मन में ठहराना । निश्चित करना । दृढ़ता- होना । ठासा बताना-बिना कुछ दिए पलता करना। पूर्वक चित्त में धारण करना । पक्का विचार करता। 30- पता बताना (दलाल)। बैठे ठाले साली बैठे हए। कुछ विश्वामित्र दुखी ह वह पुनि करन महा नपठायो।-रघुराज काम पधान रहते हुए । पैसे,-बैठे ठाले यही फिया करो, (शब्द०)। वि० दे० 'ठयना'1३. स्थापित करना। रसना । अच्छा है। परना। उ---मुरली तक गोपासहि भावति । प्रति माघीन यो०-ठाला हुलिया-साखी। रीता । छछा। उ०--नैन सुजान कनौठे गिरिधर नार नवावति। भापुन पोढि मघर नपावत वषि मटुकिन को करिक ठाला लिया ।भारतेंदु सज्या पर करपल्लव पदपल्लव ठावति!-सुर ( शब्द०)। प्र०, मा०२, पृ० १९४॥ ठाना-मक्ष पु० [हिं०] दे० 'पाना'। ठालोg-वि० [ देशी ठलिय (=रिक्त), बाहि. निठल्ला ठामा-संसपु०, खी० [सं० स्थान] १ स्थान । जगह । उ०- १ खाली । जिसे कुछ काम षषा व हो । निठल्या । काम । (क) पर अपुरा को फरमो वीरत्तण निज ठाम |--कीतिक, उ.--(क) ऐसी को वाली बैठो है तोसों मुर परावै। झूठी पृ.६०1 (७) षो चाहत जित पान उतै ही यह पहुंचावत । बात तुसी सी बिनु कन फरकत हाप न माव। -सूर बषे बीष के गाम ठाम को नाम भुलावत ।-प्रेमघन०, (शब्द॰) । (ख) ठासी ग्वालि पानि पध्य प्रति कमो पछोरन मा.१,१०७ यो।-सुससी (चन्द०)। (प) प्लेटमम पर ठामीठे विशेष-दे० 'ठा। समय की परवादी अनुभव करने सये। -भस्मा०, पृ.४३ । २.प्रगस्थिति या पंगसंचालन का ढम। ठवनि । मुद्रा । मदाज । ठाली --समा श्री[?] मरस । परोसा । पाश्वासन | उ.- ३ पंगेट । मंगलेट । कहा कहाँ पाली सामी देत सब ठाली, पर मेरे बनमाली की ठाय-सा पुं० बी० [सं० स्थान ] दे० 'डाव', ठाय', नकासी छुड़ावहीं।-रसहान०, पृ. ३० । ठाय-सबा पुं० [पनु.] दे. हाय! ठाव- बी० [वि.] 'ठाव' ठार- ० [सं० स्तव्ध, प्रा० ठ ठर या देश०] १. गहरा पाहा। ठाव-सहा पुं० [ह वा स्वाद । १०होरीस ठावन प्रत्यत थोत गहरी सरयो। २. पाया। हिम । राखी पूजन से पैरोरी। पर काठ गरि सरदीने पावन कि०म०-पहचा। पीत व पोरी।-पार , ०२.०४०७ ॥