पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२८८

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बरुमा साल उपरथा साल-सा. [ से समरू वाण)+हि. सासना] की मोर छूटकर फठ से शब्द के साथ निकल परने का पातु या जकड़ी के दो टुकड़ों को मिसाने के लिये रमरू के शारीरिक व्यापार । मुह से निकला हुमा वायु का उद्गार। समान एक प्रकार का जोड़ा क्रि० प्र०--माना।-लेना। विरोप-इसमें एक टुकड़े को एक मोर से पौदा मौर दूसरी भोर विशेष-योग मादि के अनुसार कार नाग वायु की प्रेरणा से से पटना काटते है मौर दुसरे टुकड़े मे उसी काट की नाप से माती है। गरदा करते है और उस कटे हुए प्रयको उसी गडढे में बैठा मुहा०-४कार न लेना = (१) किसी का धन या कोई वस्तु देते है। यह पोर बहत होता है मौर सींचने से नहीं भाकर पता न देना । चुपचाप हजम कर जाना। (२) कोई उमड़ता। काम करके उसका पता न देना । ढमहा-रामपु० [सं० हम दे०४मरू। 10-वर घट पो २. बाप सिंह आदि की गरज । पहाड़। गुर्राहट । वह हाया। गौरा पारवठी पनि साधा। -जायसी ग०, क्रि० प्र०-लेना। पु. ६.1 उकारना-क्रि० म० [हिं० कार+ना (प्रत्य॰)]१ पेट की बाडोल-[ हिरव+ोलना] मस्थिर। पचल । विलित! वायु को मुंह से निकालना। कार लेना। २. किसी का पररायामा । जैसे, पित्त वाडोल होना। 30--पावक माल उड़ाकर ले लेना । किसी की वस्तु चुपचाप मार मेना। पवन पानी भानु हिमवान जम काल नोकपास मेरे हर हजम करना। पचा जाना । जैसे,—वह सब माख रकार वाहोल हैं।--सुमसी (शब्द॰) । जायगा। क्रि० प्र०-होना। संयो॰ क्रि०--जाना। हँसना-क्रि-स.[.दशन, प्रा० इसण ] दे० 'सना'। ३. बाप सिंह पादिका गरजना । बहाना। -सधा पु .]१. ध्वनि । शब्द । २ नगाड़ा। ३. बावाग्नि । उकरा-सा पुं० [देश॰] पक्र की तरह घूमती हुई वायु । पवार। ४ मय । ५. शिव (को०)। चक्रवाती गूला। उउt- ० [हिं० टोल] दे'गेल'। डकैत-सचा पुं० [हिं० डाका+ ऐत (प्रत्य॰)] का मारनेवाला। -० [हि डौल ] डील डोलवाला । वयस्क बड़ा । जैसे जबरदस्ती माल छीननेवाला । लुटेरा। इतने बसे हक हुए, अक्ल नहीं पाई। डकैती-सहा खो[हिं० डकैत ] डकैत का काम । हाका मारने का रफ-सहा.म.डोक] १. एक प्रकार का पतला सफेद टाट काम । जबरदस्ती माल छीनने का काम लूटमार छापा। (कनवास) जिससे छोटे बम के जहाजों के पास बनाते हैं । २ कोत-सा . [ देश. ] भर भरी। सामुद्रिक । ज्योतिष एक प्रकार का मोटा कपड़ा। प्रादि का ढोंग रचनेवाला। डकर-सपा पु.[म.] १. किसी बंदरगाह या नदी के किनारे एक विशेष-इनकी एक पुपक जाति है जो अपने को राह्मण कहती पिरामा स्पान, वहाँ पहाज पाकर ठहरते हैं मोर जिसका है, पर नीच समझी जाती है। फाटक पानी में बना होता है। २ प्रदालत में वह स्थान जहाँ उक्कल1-सा श्री० [सं० डाकिनी] दे. 'भकिन उ.-सीत भभियुक्त स किए जाते हैं। कटपरा । सुट्टे तुरी बस नद्द करी:--पु. रा०, २४१ २११ । रकक्षा-सशा. [हिं० का+इत (प्रत्य॰)] दे० 'केत'। टक्करनाल-क्रि० स० [ मनु.] हकरना । ध्वनि करना । शम्म उकई- पु. [हिं० दाकार = एक नगर)] केले की एक जाति ओ करना । उ.---बुभुस्खा बहू डाकिनी डकरतो।--कीति, वाका में होती है। पु. १.६। उक्कारी-सपा सी० [सं०] चांडाल वीणा [को०] । रकना-क्रि० स० [हिं०] 'होकना साधना । 3.-कोटक वरुनि गुनमय सरीर तन सहित पसी कि। मात पिता उखना-मथा पुं० [ मनु० ] पखना । पख । पति बपु रहे मुनि रही कि। -नव , पृ. २६ । उग-सबा . [ हिना या संद] १. पलने में एक स्थान से पैर उठाकर दूसरे स्थान पर रखने की क्रिया की समाप्ति । सफरना-जि.प.हि. कार] १. कारना'। २.३० कदम । उ०-मुरि मुरि चितवति नवगली। रंग न परत कराना अजनाय साप मिनु, विरह भ्पपा मचली । -सूर (सम्द०)। इकरा- पु. [ देश.] काली मिट्टी जो तामकी दिया में (ख) ज्यों को पुरि घलन कौं करे। ऋम ऋम करिगग पानी सूख जाने पर निकलती है और जिसमें दरार फटे पग भरे।-सूर०, ३१३ । ोठे । कि०प्र०-पड़ना। उकराना-कि.प्र. [ अनु. बैल या भैस का बोलना । मुहा०-ग देना=चलने में धागे की भोर पर रखना। 30-- बाह- [हिक क का परासी । हाकिया। पुर ते निकसी रघुगोर बधु परि धीर दियो मग ज्यो रग। सार-संगो [मनु.]१. पेट की वायू का एकबारगी ऊपर ----तुलसी (पम्प)गि भरना-पसने में मागे पैर रखना।