पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२८७

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सेंगरा इंगरा-संवा पुं० [सं० दशान ल] सरवूजा। होती है। २. मकरी या लोहे का संबाचा जो दरवाजे का ढंगरी-सक्षा बो• [हिं० डंगरा ] लंबी ककड़ी । डांगरी। खुलना रोकने के लिये किवार के पीछे लगाया जाता है। डंगरी-त्रा सी० [हिं० डागर (= दुवला)] एक प्रकार की उँहरी'-सक बी० [वंश] एक चोटी मछमी जो पासाम, बंगाय, चुड़ल। हाइन । उ०-डाइन डेंगरी नरन चबावस । गजन उड़ीसा और दक्षिण भारत की नदियों में पाई जाती है। घुमाइ मकास पठावत।-गोपाल (शब्द०)। उसहरी -सहबी. [सं०दएड + हि. हरी (प्रत्य॰)] टहनी। ढंगरी-मुचा सौ• [ देश०] एक प्रकार का मोटा वेत। हुँरहिया–सश० [हिं० ] वह रहा जिससे बसों की पीठ विशेष--यह बेत पूर्वी हिमालय, सिक्किम, भूटान से लेकर पट पर पदे हुए मोरे फंसाए रहते हैं। गांव तक होता है। यह सबसे मजबूत होता है और इसमें से दिया-सखी० [हिं० सदी (रेखा)] १. वह सारी महत प्रच्छी चहिया और हरे निकलते हैं। टोकरे बनाने के जिसके बीच में लाई के बल गोटे टॉककर लकीरें बनी काम में भी यह पाता है। हों। छड़ीदार साडी। 30--(क) साल घोहो नीख उँडिया ढंगवारा-संशा पुं० [हिं० डगर (=बैल, चौपाया)] इस देन मारि संग युवतिन भीर । सूर प्रभु छवि निरखि रीमे मगन मौ मन को वह सहायता जिसे किसान एक दूसरे को देते हैं। जिता। कीर।-सूर (शम्द०)। (ख) नस सिख सणि सिंगार डंगौरी-सचा वी० [ देश० ] एक पेड़ जिसकी सकसी मजबूत और युवती तन रंडिया कुसुमे चोरी की।-सूर (शब्द०)। चमकदार होती है। विशेष-इसे प्राय' कुमारी सकियां पहनती हैं। कभी कभी पह रंग बिरगे कई पाट बोड़कर बनाई जाती है। विशेष-इस पेड़ की लकड़ी से सजावट के सामान पात मच्छे बनते २ गेहूँ के पौधे में वह मबी सी जिसमें बाम समी रहती है। हैं। यह पेड़ प्रासाम पोर कचार में बहुतायत में होता है। दिया-सबा पु० [हिं० ( अर्थदंड सीमा)]. महसूल ऊँटया -सा पुं० [हिं० डौटना टोटनेवामा । ४ट पतामेवाला। वसूल करनेवाला । कर नाहनेवसा। २. सीमा या हद पर घुड़कनेवाला । धमकानेवाला। 80---सासति घोर पुकारत भारत कौन सुनै च पोर टया।-तुलसी (धन्द.)। कर उगाहनेवाला। ऊँठरी-सशसी हि० उठल ] दे० 'ठम'। दिया--सबा श्री कुमा• हाडी, मेपा० गडी(होली)] उ.- (क) मालक्षिबीर कटाइम रडिया फवाइन हो साधी।- उँदा--सा पुं० सं० श्रावप्रो० ] एक प्रकार का व्यायाम । पलटू०, पु.५५ । (३) छोटि मोटिड़िया पंदन के हो, छोटे चार कहार-कबीर १०, मा. २, पृ.१२।२०'डी'। यौ०-हसबैठक। इंडपेल। दियाना-क्रि० स० [हिं०डी] किसी कपड़े के दो या मधिक का-सया पुं० [हिं० डहा ] सोढ़ा का रहा। पार्टी को सीकर जोड़ना । वो कपड़ों की लबाई के किनारों उडवारा'-सहा पु. [ हिट+वार ( - फिनारा)] [श्री. को एक मे सीना। मल्पा० डेस्वारी] वह कम ऊंची दीवार को रोक लिये या डियारा गोखा-सका पु० [हिं० म+गोमा ] दोहरे सिरे का किसी स्थान को घेरने के लिये उठाई जाय । दूर तक गईई पंगा (खोप का) पोषा। पठिया ।-(बश०)। खुली दीवार। उडीर-सा बी० [हि. ही ] सोधी पकीर । क्रि०प्र०-उठाना। डॅडूर उँडूल-स ० [हिं०] ३० 'हंदूर,' 'महल' । मुहा०--डॅवारा खींचना = इंटवारा उठाना । टोरना-क्रि० स० [मनु० हूँढना। हिलोरकर हूँदना। उलट दवारा-सा पुं० [हिं० क्विन+वार (प्रत्य॰)] दक्षिण का पलटकर खोजना। उ०-प्रवकै जब हम दरस पावै वेहि वायु । दखनहरा । दखिनया । लाख करोर । हरि सोहीरा खोई के हम रही समुद देठोर । कि०प्र०-चलना। -सूर (चम्ब०)। हँदवारी-समा श्री. [हि. डह+वार (=किनारा)] कम ऊँची उभाना -कि० स० [वेद्य ] दगवाना । वाग दिखाना । उ--- दीवार जो रोक लिये या किसी स्थान को घेरने के लिये करहर फूटा ममि थक पग राखीपत जाण । ककरही डोका उठाई जाती है। मुगइ प्रपसभापत प्राण । - ढोला,दू० ३३६ । मुहा०-डेवारी खींचनावारी या चारदीवारी उठाना। सुंदर-सका पुं० [ देव ] या हि.बाँव ] दौव। मौका । युक्ति। हँदवी -सका पुं० [देश॰] दर मा राजकर देनेवाला। कर। जैसे, कोई व बैठ जाय तो काम होते क्या देर। १०-- हवी डांड़ दीन्ह जेह ताई। माप उडवत फोन्ह उपरुषा-सम० [सं० रमझ ] दात का एक रोग जिसमें शरीर सवाई। जायसी (पाच्द०)। के जोड़ कर जाते है और उनमें दर्द होता है। गठिया । डेडहरा-संवा श्री० [देश॰] १. एक प्रकार की मछली जो बगाल, उ.---महंकार प्रति दुखद डेंवरुपा दम कपट मद मान मध्यभारत और बर्मा मे पाई जाती है। यह तीन इच लवी नहरुमा।-तुलसी (शब्द॰) । ४-३५