पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२९

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II १६७२ जगबंध' जगन्मोहिनी जगवंद्य-सझा पुं० [सं० जगत् + वन्ध ] श्रीकृष्ण का एक और माहात्म्य दिए गए हैं। इतिहासों से पता चलता है कि नाम [को०] । सन् ३१८ ई० में जगन्नाथ जी की मति पहले पहल किसी जगल जगदुध-वि० ससार द्वारा पूजनीय या पूज्य । में पाई गई थी। उसी मूर्ति को उड़ीसा के राजा ययाति- केसरी ने, जो सन् ४०४ में सिंहासन पर बैठा था, जगल से जगदहा-सहा सी० [सं०] पृथिवी। दढ़कर पुरी में स्थापित किया था। जगन्नाथ जी का वर्तमान जगविख्यात--वि० [सं० जयत् + विख्यात ] लोकप्रसिद्ध । भव्य और विशाल मदिर गगवश के पांचवें राजा भीमदेव ने सधख्यात । सन् १९४८ से सन् १९६८ तक में बनवाया था। सन् १५६८ जगद्विनाश-समा पु० [20] प्रलय काल | में प्रसिद्ध मुसलमान सेनापति काला पहाड ने उड़ीसा को जगन -सा पुं० [सं० यजन् ] दे॰ 'यज्ञ' । To....जोवैजो गृहि जीतकर जगन्नाथ जी की मूगि भाग मे फेंक दी थी। जगन्नाथ गृहि जगन जागवे, जगनि जगनि कीजै तप जाप ।- पौर बलराम को आजकल की मूतियो में पैर बिलकुल नहीं वैलि, दु०५०। होते और हाथ विना पजों के होते हैं। सुभद्रा की मूर्तियों जगनक-मक्षा पुं० [सं० यजनक, अथवा देश.] महोषा के राजा में न हाथ होते हैं और न पैर । अनुमान किया जाता है परमाल के दरवार का प्रसिद्ध फषि । कि या तो प्रारम में जगल में ही ये मूर्तियाँ इसी रूप में जगना-कि०म० [सं० जागरण ] १. नीद से उठना । निद्रा त्याग मिली हो पौर या सन् १५६८ ई० में अग्नि में से निकाले करना । सोने की अवस्था मे न रहना । जाने पर इस रूप में पाई गई हो। नए कलेवर मे कि०प्र०-उठना ।—जाना -पड़ना। मूतिया पुराने मादर्श पर ही बनती हैं। इन मूर्तियों को २. सचेत होना । सावधान होना। खवरदार होना। ३ देवी पधिकाश भात भीर खिचडी का ही भोग लगता है जिसे देवता या भूत प्रेत मादि का अधिक प्रभाव दिखाना। ४ महाप्रसाद कहते हैं। भोग लगाहमा महाप्रसाद चारो वणों उत्तेजित होना । उमडना या उभडना । वेग से प्रकट होना। के लोग बिना स्पर्शास्पर्श का विचार किए ग्रहण करते हैं। जैसे, शरीर मे काम जगना। ५. (भाग का) जलना । महाप्रसाद का भात 'मटका' कहलाता है, जिसे यात्री लोग बलना। दहकना । जैसे, माग जगना । 10-करि उपचार अपने साथ अपने निवासस्थान तक ले जाते मोर अपने थकी सबै चल ताल नंदनंद । घदक चंदन चद ते ज्वाल जगी सबषियों में प्रासाद स्वरूप पौटते हैं। जगन्नाथ को जगदीश पोचद।---१० सत० (शब्द०)। ६ जगमगाना। चमकना । भी कहते हैं। जैसे, ज्योति जगना। यो०-जगन्नाथ का प्रटका या भात-जगन्नाथ जी का निवास-संस पु०सं० जगनिवास 1 दे० 'जगनिवास'। उ०---- महाप्रसाद जपनिषास प्रभु प्रगटे अखिल लोक विश्राम ।-मानस ४ बगाल के दक्षिण उड़ीसा के प्रतर्गत समुद्र के किनारे का प्रसिद्ध तीर्थ जो हिंदुओं के चारो धामों मर्गत है। जगनीदी-सहा श्री० [हि जग+ नीदी] सनीदी। भर्घसुप्त । विशेष-इसे पुरी, जगदीशपुरी, जगन्नाथपुरी, जगन्नाथ क्षेत्र सोते जागते सी दशा । उ०-वह सोता तो रहा पर जग और जगन्नाथ धाम भी कहते हैं। मधिकांश पुराणो मे इस भी रहा था। सच पूछो, तो वह जगनींदी मे पड़ा था। क्षेत्रको पुरुषोत्तम क्षेत्र कहा गया है। जगन्नाथ जी का -सुनीता, पृ० ३०८ प्रसिद्ध मदिर यही है। इस क्षेत्र में जानेवाले यात्रियों में जातिभेद मादि बिलकुल नहीं रह जाता। पुरी में समय जगनु-सा पुं० [सं०] दे॰ 'जगन्नु' को। समय पर अनेक उत्सव होते है जिनमे से 'रथयात्रा' और जगन्नाथ-सधा पुं० [सं० जगद+नाथ ] जगत का नाथ । ईश्वर । 'भयकलेवर' के उत्सव बहुत प्रसिद्ध हैं। उन अवसरों पर २ विष्णु। ३ विषणु की एक प्रसिद्ध मूति जो उडीसा के प्रतर्गत पुरी नामक स्थान में स्थापित है। यहाँ लाखों यात्री पाते हैं। यहाँ और भी कई छोटे बडे तीर्थ हैं। विशेष—यह मूर्ति पकेली नहीं रहती, बल्कि इसके साथ सुभद्रा जगन्नियता--सहा पु० [सं० जगनियन्ती परमात्मा । ईश्वर । पौर बलभद्र की भी मूर्तियां रहती हैं। तीनो मूर्तियाँ बदन की होती है। समय समय पर पुरानी मतियों का विसर्जन जगन्निषास-ससा पुं० [सं०] १ ईश्वर । परमेश्वर । २ विष्णु । किया जाता है पर उसके स्थान पर मई मतियाँ प्रतिष्ठित जगन्तु-शा पुं० [सं०] १ मरिन । २ जतु । कोट । ३ पशु । की जाती हैं। सर्वसाधारण इस मति बदलने को 'मबकलेवर' । जानवर (को०)। या कलेवर बदलना' कहते है। साधारणत लोगों का विश्वास जगन्मय-सहा पुं० [सं०] विष्णु । है कि प्रति बारहवें वर्ष जगनाय जी का फलेवर बदलता जगन्मयी-सधा पुं० [सं०] १. वक्ष्मी। २ समस्त ससारको चलाने- है। पर परितों का मत है कि जब प्राषाढ़ में मलमास भोर वाली शक्ति। दो पूणिमाएं हों, तर कलेवर बदलता है। कूर्म, भविष्य, जगन्माता-समा श्री० [सं० जगत् + मातृ] १. दुर्गा का एक नाम । ब्रह्मवैवतं, नसिह, पग्नि, ब्रह्म भौर पप मादि पुराणों में २ लक्ष्मी को । जगन्नाथ की मूर्ति मौर तीर्थ के सबंध में बहुत से कथानक जगन्मोहिनी-सक्षा खो० [सं०] १. दुर्गा। २. महामाया ।