पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२९०

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१॥ बदमा समान.-- . शिनी । बोटी गला पठती शाखा। डट्टा-सा पुं० [हिं० डाटना ] १. एके का नैचा। टेकमा। २. उ.---जही दियो मषिक बनी होती है वहीं पक्षों की अट। काग। गट्टा। ३. बड़ी मेख । ४. छींट छापने का स्थानों को काटकर वे अबार फिर पानी बरस जाने ठप्पा । सौपा। बार और दो -द.अमि. प्र. (विषि), डडकना-क्रि० प्र० [ मनु.] जोर से बनाया शन्द उत्पन्न होना। उ.-डाक्कत डोर हूँ फेर सद्द ।-५. रामो, रगावनाल-कि.. [हरियाना . 'रिमाना'। उ.--- पू. ८२। कविरोणगी पनी नेग पदिसायन पित्त हगावनो डटकनारे-क्रि. स. [ भनु.] जोर से बजाना। है।-भारवेंदु . बा .६१८ । उदहा-सका पुं० [से हुएड्भ ] एक सर्प । रहा । पार- [सं० ] १.कुत्त या भाडये का वरदका एक बहो--सहा श्री.देश] एक प्रकार की मछनी। मांसाहारी पर। उड़ियाना-कि० स० [हिं० डाडा बनाना ! डाँडे के समान करना । विरोप-यह पए रातको विकार को सोग में निकलता है रही -सा खा. [ देश, पाहि. ही पक्ति। उ.-मन में और कमो कभी बस्ती से कुों, बकरी के पन्नों मादि प्रावै तो दो ग्डोच लिख भेजना।--श्यामा०, पु०६२। को उठा ले पाता है। पह कई प्रकार का होता है; पर मुन्य भर दोपित्तीवाला पौरबारीबासा। यह एशिया उडद-वि० [सं० दग्ध, प्रा० दड्ड, 8 ] दम्य । जला हुमा। । मोर पझोका के बारे भायों में पाया जाता है। यह संता ०ि] 1 देखने में रावना गार परता है। इसका पिछला डढार'--संहा पुं॰ [सं० दष्ट्राल, प्रा. डडाल ] दे० माल'। पर छोटा भोर प्रगहामारी होता है। गरदन ली और उ.-डिढन रहे उड्डार वाघ बनचर वन पल्लिय।-सूदन मोटी होती है, पर सवाल होते हैं। इसके दांत (पान्द०)। बात ने पोर देर होते हैं। यह बानवर स्पोक भी बढ़ा डड्ढार-वि० [सं० वष्ट्रा, हिं० सद, डाढ़ी] बड़ी डाढ़ी रखनेवाला। होता है। यह मुरदे खाकर नी रहता है। इसका कत्र में विशेष-मध्य काल मे भोर माज भी बड़ी डाढ़ी रखना वीरों का पोमुरबाना प्रमित है। देश समझा जाता है। २.मोटागाका दुबदा घोड़ा। उडढाला-सका पुं० [ से० दष्ट्रात, प्रा. डाल ] वाराह । शूकर । उगा--0t [हिं० नंगी टागों का बखा घोदा। उ०-टुढत भढाल उड्डाल निय मुक्कारन बह नुककरहि ।- दर-पु.[40] हाथरसबाहारका निवासी। पू. रा०,६११.२ । पु० (उ०), पृ० १२२ । पट-7Rg. रा.] निशाना। ढडढार-वि० [सं० दृढ, प्रा. डिट हिहिद ] हृदय का। स्टना--- म. [सं० मातृ हि. ठाट या ठार . जमकर साहसी। सदा होना । मना। ठहरा रहना । जैसे, ये सबेरे से मैले सदन -सा सो [सं० दग्ध, प्रा० उड, या सं० दहन ] जतन । ताप । १०-भक्ति लता फेलन लगी दिन दिन होत पाप को संयोकि०-वाना। -साइटना। डढन !-देवस्वामी (शब्द०)। THAT सामना करने या हिना डढ़ना -कि. म. [० दग्ध, प्रा. ड+ना (प्रत्य०) ] पदा रहना । न हटना । मुहनमोरना। डटकर साना- जलना । सुलगना । बसना । 30- मनु रूप समैं बह रूप। पर पेट भर साना । गड़े जिमि केयफ है महि भूप।-सुदन (पाब्द.)। २ २.मिनासा जानाजाना। ३. मन्या लगना। फवना । जमना । ताप रो पीड़ा होना । जलन होना। 30-मधवत बदनाल -कि.ग. [सं० रष्टि, हि. औट ताना देखना। पय ठाती जब लाग्यो रोपत जोभि डदै ।-सूर०, १९७४ । 3.--() उर मानिकी उरवनी उटत पटत गदागा उदार-संक्षा पु० [सं० दास] 'हार"। १५५ बाहर कमिनो पिय हिसको अनुराग। इदारा--वि० [हिं० दाद] १. हाढवाला। जिसे बाढ़ हो। संकि मसिटकत पमत रटन मुकुट को बाहे। पटरु २ गडीवाला। मागोनट मिचि गयो, पटक मटक का माह-बिहारी डदारा-वि० [हि. ] १. ठारवाला। वह जिसके रा हो। दांतवाला। २. पह जिसे डाड़ी हो।। timsहि ना १ हटाने का काम । २. रटाने दाल -समा. [सं०६ष्ट्राल, प्रा. डाप ] दे० 'गार' । - सोमेस सुतत मासेट र म बाल उस सह पहि।-पु. दाना--f. . . ना . एक वस्तु को सरी वस्तु रा०,६१०१।० स० (30,१०१२३ । ने जपान) घटाना। गाना। २ एक वस्तु को दूसरी दिया-० [हिं० बादी] डाडोवाला जिसके बडो गरी हो। स मागरमागको मोर टलना। ओर से मिशाना। हमार-ta.[.पाबरगेहपका ठेलमा मोटम ३ माना। मरना। मगदूतो के लिये लगाया जाता है।