पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२९१

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बढढना-क्रि० स० [सं० दग्ध, प्रा० बुद्ध+हि ना(प्रत्य॰)]जलाना। डफनी--सहा मी० [प्र.फ ३० "उफनी' । उ-मदि मदि पदा सब्योरा-वि० [हिं० डाढ़ी गढ़ीवाला। उ.--सित पसित अपनी एक दुमि दौस मु पोट जाया है।-पाकर म., हढपोरे दीह तन सजि सनेह रोसन सने ।-सूदन (शब्द०)। पु० २६७। स्पट'-सा श्री [सं० दपं ] सैट । झिडकी। धुरकी। डफर-~-सा झापर ] जहाग के एक तरफ का पाल । उपट:-- सी. [हिं० रपट दौड़। घोड़े की तेज पाल। डफला-- पुं० [प० दफ़ ] इफ नाम का बाजा। - सरपट चाल। सफलो--संशा सोप्र. बोटा इफ। इंजरी। रंपटना--क्रि० स० [हिं० हपट+ना (प्रत्य॰)] डोटना। क्रोष में मुद्दा०---अपनी गपनी उफली अपना भगना राग जितने लोग ) जोर से बोलना । कड़े स्वर से बोलना । उतनी राय उपटना-क्रि० म० [हिं० रपटना ] तेज दौड़ना । वेग से जाना। न डफाप.-सपा पुं० [सं० दम्मन, दम्भना, फा० उमणा, कुमा० स्पोरसंख-संक पुं० [अनु. पोर (= बढा)+सं० प. प्रा. ४फाण, पु.हि. वभाग] पाखड। भाडंबर । म । उ०- संस] १. जो कहे वहुत, पर कर कुछ न सके। डींग मारने. काहे रे ना करह उफाण, भतिकासि घर गोर मसाए।- वाला। दादू०, पू. ४८४। विशेष-इस शब्द सबध में एक कहानी प्रचलित है। एक डफारा-सा नी मनु० ] चिघाड । जोर से रोने या पिल्ला ब्राह्मण ने दरिद्रता से दुखी हो समुद्र की माराधना की। उठने का शब्द । 30-तवसन रतनसेन पति परा। बोदि समुद्र ने प्रसन्न होकर उसे एक बहुत छोटा सा सख दिया। डफार पाय ले परा।--जायसी (पाद)। मौर कहा कि यह ५००) रोज तुम्हें दिया करेगा। जव उस ब्राह्मण ने उस संख से बहुत सा धन इकटठा कर लिया तब Pा लिया तक फारना -कि० अ० [अनु.] चिल्लाना। पहाडमारना । जोर एक दिन अपने गुरु जी को बुलाया और बढी धूम धाम से से रोना या चिल्लाना। उ०-- जाय विहगम समुद डफारा। चनका सत्कार किया। गुरु जी ने उस संख का हाल जान जरे मच्छ, पानी भा द्वारा।-जायसी (सन्द०)। लिया पौर दे धीरे से उसे उठा ले गए। ब्राह्मण फिर दरिद्र डफालची-ज्ञा पुं० [हि. उफना] रे "उफाली। हो गया भौर समुद्र के पास गया । समुद्र ने सव दाल सुनकर उफाली-सपा पुं० [हिं० दफला ] 'इफला बजानेवाला । एक एक बहुत बड़ा सा सख दिया और कहा कि इससे भी गुरु जी मुसलमान जाति । के सामने रुपया मांगना, यह खूप बढ़ चढ़कर वाठे करेगा, विशेष-यह जाति उफला रजाती तथा दफ, ताशे ढोल मादि पर देगा कुछ नही। जब गुरु जी इसे मांगें तो दे देना और चमड़े के बाजों की मरम्मत करती है। अवध में उफाली पहलेवाला छोटा सम्ख मांग लेना' ब्राह्मण ने ऐसा ही किया। दफसा धमाकर गाजी मियों के गीत गाते पौर भीख मांगते जब ब्राह्मण ने गुरु जी के सामने उस संख से ५०.) मांगा फिरते हैं। तर उसने कहा-'५०.) पगा मांगते हो, दस वास पनास डफोरता --क्रि०म० मिन.] हाक देना। चिल्लाना : ललकारना। हजार मांगों'। गुरु जी को यह सूनकर लालप हमा और उन्होंने गरजना । उ.---वचन विनीत कहि सौता को प्रमोष करि वह सस लेकर छोरा सस माह्मण को लौटा दिया। गुर जी तुमसो नियुट चदि कहत डफोरि के।-तुससी (शब्द॰) । एक दिन उस बड़े सख से मांगने बैठे। पर वह उसी प्रकार और मांगने के लिये कहता पाता, पर देवा कुछ नहीं था। दफोला-सहा पुं० [हि. उपोर ] बकवास । निरर्थक पात | उ.-- ६ जब गुरु जी बहुत व्यग्र हुए, तब उस रहे सख ने कहा-'गता मोटे मीर कहावते, करते बहुत डफोल !-सुदर , मा. सा शखिनी, विप्र! या ते कामान् प्रपूरयेत् । मह उपोरश. १, पृ० ३१॥ खास्यो वदामि न ददामि ते'। उफ्फा --सपा [म. दफ, हिउफ ] ३० इफ'। 10-बीती २ चढे डीखोल का पर मुखं । देखने में सयाना पर बच्चा की जात पहार संबत लगने पर माया। सीजे उपफ बजाय सुमग सी समझवाला। मानुप तनया या---पलटू०, मा० पू०२०। उप्पू-वि० [देश॰] बहुत बड़ा । बहुत मोटा । डब-Hश पुं० [सं० द्रव ] तरल 1 4, पांखों का उब व होना। फ-सा . [म. बफ ] १. चमड़ा मढ़ा हुमा एक प्रकार का विशेष---इस पाब्द का स्वतंत्र प्रयोग नहीं मिलता। उदक, डसना, हा पाजा जो सकड़ी से बजाया जाता है। उफला । 10.- उबकौंहो मादि प्रचलित शब्दों में इसका रूप मिलता है। (क) दिन फ ताल मृदंग बजावत गात भरत परस्पर छिन डव- माहि . डम्चा 1१.जेगा पैला। छिन होरी।-स्वामी हरिदास (शब्द॰) (स) कहै पदमाकर मुहा०- उब पकाकर कुछ कराना = गरदन पकड़कर कुछ काम ग्वालन के उफ राजि उठे गलगागत गा३।-पपाकर कराना गला दबाकर काम कराना। रो-पपा देगा कैसे (शब्द०)। २. सावनीबाजों का पाजा। चंग। नहीं, हर पाकर लुगा । उस में माना = बस में होना। विशेप-पहलकामी के गोल बढ़े मेंउरे पर चमड़ा मढ़कर बनाया कावू में माना। जाता है। होली में इसे बजाते हुए निकलते हैं। २ फुप्पा बनाने का पमा।